श्री नगर से लेह की जगह, कश्मीर से लद्धाख की यात्रा कहा जाना ज्यादा उचित होगा!
मगर ये भी काफी नहीं और भी कई नाम शब्द शीर्षक बनकर उभर रहे हैं. श्वेतामबर से पीताम्बर की यात्रा. हरियाली से रेगिस्तान. हिन्दू कथाओं से बौद्ध काल.
सुन्नी बहुल घाटी से शिया बहुल घाटी. डल से पेंगयांग. महान हिमालय से काराकोरम. नाम से गुमनाम. भव्यता से दिव्यता की यात्रा!
पुस्तक में विस्तारपूर्वक वर्णन आने पर शब्दों की इस जुगलबंदी को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा. जब इनके भावार्थ समझेंगे तो प्रकृति के अनोखे खेल को भी कुछ कुछ समझ पाएंगे.
इन्ही भावों को समेटते हुए पुस्तक का नाम रखा – स्वर्ग यात्रा- एक लोक से दूसरे लोक!
मरने के बाद का तो पता नहीं, जीते जी धरती के स्वर्ग की यात्रा कर आया.
सात दिन में 1000 किलोमीटर का सफर 5000 साल की यात्रा, जन्नत की सैर का इससे बेहतर पैकेज और क्या हो सकता है.
(पुस्तक अमेज़न एवं राजकमल प्रकाशन से ऑनलाइन उपलब्ध है)