उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी और उनकी समाजवादी पार्टी क्या यह बताएंगे कि :
जिस उत्तर प्रदेश सूचना विभाग का सालाना बजट 98 करोड़ हुआ करता था, जिससे पूरे साल सरकार की योजनाओं का प्रचार प्रसार हुआ करता था : किन वजहों से आपने और आपकी सरकार ने बढ़ा कर 600 करोड़ सालाना कर दिया?
कहीं यह, जनता के टैक्स के रुपयों से छ: गुना बढ़े इस सालाना मीडिया मैनेजमेंट फंड का कमाल तो नहीं, जो पूर्वांचल से लगायत बुंदेलखंड तक….. कोई भी मूलभूत सुविधा, उद्योग के काम हुए बिना भी, खबरों की ज्यादातर पेशेवर दूकानों में आसमानी विकास ही विकास दिख रहा है?
सत्ता से मीडिया के सवाल क्यों गायब हैं? पांच सालों के कामों का हिसाब मांगने की चौथे खंभे की जिम्मेदारी कहाँ फरार है?
खुद के पेशे के प्रति समर्पित इस सरकारी फंड के आश्चर्यजनक बढ़त पर सवाल की जगह चुप्पी क्यों?
क्या 98 करोड़ से 600 करोड़ सालाना की बढ़ी भूख ने उत्तर प्रदेश के मीडिया जगत को स्व विकास का चश्मा चढ़ा दिया है?
क्या यूपी के सूचना विभाग ने सरकारी तिजोरी को छ: गुना खोल कर… अखबारों, चैनलों, विज्ञापन फर्मों, न्यूज एजेंसियों के लिए अच्छे दिनों का इंतजाम किया?
अगर नहीं, तो सवाल प्रदेश, राष्ट्रीय प्रिंट-विजुअल मीडिया और अखिलेश सरकार के सूचना विभाग प्रमुख नौकरशाह नवनीत सहगल से भी :
उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के जिन सालाना रुपयों से सरकारी विज्ञापन जारी किये जाते हों… उनमें छ: गुना की ये बढ़त किस आधार पर की गयी? और बढ़े हुए रूपये किनकी जेबों में गये जो जुबानें खामोश हैं?
2012 से आज तलक 600 करोड़ – 98 करोड़ =502 करोड़ सालाना के हिसाब से × 5 साल =2510 करोड़ जनता के टैक्स वाले रुपयों के समाजवादी “बिकास” का सवाल है बिकास कुमार जी, जवाब तो देना पड़ेगा.
देर से ही सही सवाल पूछने का नैतिक जिम्मा मीडिया उठाये, सोशल मीडिया यह जिम्मा निभा ही रहा है.