गोडसे को आराध्य मानूं या गांधी को, इससे शासन को क्या सरोकार?

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माननीय राजनाथ सिंह जी, बहुत अच्छा लगा कि आपने गांधी के वधिक (आपके शब्दों में ‘महात्मा’ गांधी के हत्यारे) को महिमामंडित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देशित किया है. (गत 4 मार्च 2016 के समाचारों के आधार पर)

बिलकुल ठीक किया आपने, आप अब संघ के स्वयंसेवक नहीं, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता नहीं, आर्यावर्त वासी यानी आर्य यानी हिन्दू नहीं, सिर्फ और सिर्फ इंडिया के होम मिनिस्टर हैं. (आशा है ध्यान देंगे कि भारत के गृहमंत्री नहीं लिखा)

एक बात आपने अनुभव तो की होगी कि जब एक आम आदमी बाहर से दुत्कार-फटकार खाकर या अपमानित होकर लौटता है तो उसका क्रोध घर के लोगों पर निकलता है. कहीं इस बार भी कुछ वैसा ही मामला तो नहीं?

अब आपको गोडसे की प्रशंसा, ‘भारत की आज़ादी तक…. भारत तेरे टुकड़े… और कश्मीर-केरल की आज़ादी तक…‘ जैसे ज़हरीले नारों से ज़्यादा खतरनाक लगने लगी है.

आपके शब्दों में ‘भारत के अभिन्न अंग’ जम्मू-कश्मीर में लगने वाले नारों की बात करके मैं आपको लाजवाब नहीं करना चाहता, क्योंकि आपसे जवाब चाहिए है.

पम्पोर में आतंकवादियों से लड़ते हमारे जवानों पर पथराव करते स्थानीय लोगों और मुठभेड़ के दौरान हमारे जवानों का हौसला पस्त कर देने की नीयत से मस्जिद से लगाए जा रहे नारों से क्या अधिक घातक है हुतात्मा गोडसे का महिमामंडन?

लेकिन आप गृहमंत्री हैं, आपका आदेश-निर्देश शिरोधार्य, क्योंकि हम हिन्दू हैं सो law-abiding citizens हैं, हिन्दू हैं सो सहिष्णु भी हैं, हिन्दू हैं सो निष्ठा भी राष्ट्र के प्रति है, पर हिन्दू हैं तो क्या सवाल भी न पूछें…

सिर्फ एक सवाल कि क्या इंडिया के होम मिनिस्टर को ये नहीं पता कि ‘गांधी-वध क्यों?’ और ‘गांधी-वध और मैं’, जैसी पुस्तकें कहां मिलती हैं. मैंने जहां से ली हैं, वहां का पता बता कर आपको शर्मिन्दा करना मेरा उद्देश्य नहीं है.

महोदय, किसी को अपना आराध्य मानना, न मानना उसका अपना निजी विषय है, जब तक कि उससे क़ानून-व्यवस्था भंग न होती हो, उसमें शासन (state) का हस्तक्षेप अनुचित होता है.

मैं अपने घर अथवा कार्यालय में, गांधी की प्रतिमा लगाऊँ, कि आपकी लगाऊँ या नाथूराम गोडसे की, इससे शासन को क्या सरोकार?

कहीं ऐसा तो नहीं कि वामपंथियों से जूझते-जूझते (वैसे कब?) अनजाने में ही उनके तौर-तरीके अपना लिए हों?

आपके आश्वासन कि ‘देश में अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है’ पर भरोसा करके यह सब लिखने का साहस जुटाया है.

जय हिंद.

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