मेदपाटेश्वर भगवान एकलिंग नाथ के दीवान, सूर्यवंशी, सिसोदिया कुल गौरव, प्रखर हिंदुआ सूर्य, प्रातः स्मरणीय, महाराजाधिराज महाराणा प्रताप श्री जी की पुण्य तिथि पर आज एक कविता से उनका पुण्य स्मरण करता हूँ.
एक बार फिर से कहूँगा कि “शब्दों का कोई भी उत्तम समूह इस महापुरुष की जीवन स्तुति नहीं कर सकता.”
समस्त मातृभूमि उपासकों के प्रमुख प्रेरणा स्त्रोत, शिवाजी महाराज के आदर्श, आज़ादी के दीवानों के आदिपुरुष इस योद्धा सन्यासी की जय हो.
जय प्रताप जय जय प्रताप
जय प्रताप जय जय प्रताप।
जब मुग़ल भेड़िये छाने लगे,
सिंह हिन्द के घबराने लगे,
छोड़ सनातन ध्वज गीत यवनी गाने लगे,
शुभ्र सनातन सूर्य पर ग्रह मंडराने लगे,
तपा तभी मेवाड़ मे उज्जवल हिन्द का प्रखर ताप,
जय प्रताप जय जय प्रताप
जय प्रताप जय जय प्रताप ।।
जब शूर पीछे हटने लगे,
भगवा ध्वज फटने लगे,
छोड़ शान को राजपूत जान को तकने लगे,
परमवीर भी जब कभी सुख सुविधा रखने लगे,
छोड़ सब ऐश्वर्य राणा रहे वन मे बिन संताप,
जय प्रताप जय जय प्रताप
जय प्रताप जय जय प्रताप ।।
राणा और तुर्क मे जब ठनी,
हल्दीघाटी दुल्हन बनी,
मान जब सांख्य देख अहंकार से भर गया,
सिंहों की शक्ति का गलत आंकलन कर गया,
निकली म्यान से जब चंडी छूटे चहुओर रक्त प्रपात,
जय प्रताप जय जय प्रताप
जय प्रताप जय जय प्रताप ।
तलवार प्रताप की जब अरिप्राण हरने लगी,
धारा लहू की हर दिशा में दूर तक बहने लगी,
दामिनी बन मृत्यु की भाला प्रताप का निकल गया,
शूर वीर आमेर नृप घबरा के गज ओट मे कंही छिप गया,
सुन पराक्रम राणा का अकबर के ख्वाब उड़े बन जल की भाप ,
जय प्रताप जय जय प्रताप
जय प्रताप जय जय प्रताप ।।