जाट आरक्षण : नौकरी हैं नहीं तो आरक्षण से क्या होगा?

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जाट आरक्षण के लिए फिर आंदोलन किया जाएगा. आइए इस आरक्षण के एक और पहलू पर विचारें कि यह आया क्यों?

हर बार आपको संविधान का वास्ता दिया जाता है. एक प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या हमारा संविधान नागरिकों के लिए है या नागरिक संविधान के लिए? इसके इतिहास को जानने के लिए आइये समझें कि भारत का संविधान कैसे बना?

The Constituent Assembly नाम की इकाई बना कर इस संविधान की संरचना की गयी. लोगों के मध्य एक अर्धसत्य प्रचलित है कि संविधान की रचना मात्र भीमराव अंबेडकर जी ने की थी.

दरअसल इसके लिए कई कमेटियाँ गठित की गयी थीं. उनमें से जिस कमेटी ने प्रारूप बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी उसमें अध्यक्ष थे जवाहर लाल नेहरू और साथ में आसफ अली, के टी शाह, के एम मुंशी इत्यादि थे.

उन्होने इस का प्रारम्भिक स्वरूप बनाया. फिर भीमराव जी की समिति को अंतिम प्रारूप बनाने के लिए दिया गया.

संविधान का प्रारूप बनाते हुए कभी भी भारतीय समाज से प्रेरणा नहीं ली गयी अपितु इसे बनाने में कनाडा, अमेरिका, ब्रिटानिया, आयरलैंड इत्यादि के संविधानों को सामने रखा गया. इसलिए हमारे संविधान और अंग्रेजों के संविधानों में मूलभूत अंतर नहीं है.

पिछले 400 से अधिक वर्षों के विदेशी राज्य में भारत के समाज का सबसे अधिक नकारात्मक विभाजन अंग्रेजों के 100 सालों में हुआ.

हमारी जाति व्यवस्था जो मूलरूप से कर्मप्रधान थी और समाज के लिए एक परिसंपत्ति के रूप में काम करती थी, उसे एक रोग के रूप में जन्मप्रधान बना कर समाज के लिए बोझ बना दिया गया.

इसी कारण देश का सामाजिक ताना-बाना तहस-नहस हो गया. उन्नीसवीं सदी के आते आते एक सोची समझी साजिश के तहत सरकारी नीतियों ने समाज का विभाजन कर दिया था.

आरक्षण के नाम पर दलित या शोषित वर्ग को एहसान के रूप में भीख दे दी गयी. संविधान के अनुसार यह मात्र 10 वर्षों के लिए दिया गया था और सरकार को यह निर्देश दिया गया था कि इन दस वर्षों में पूरे भारत में समान शिक्षा इत्यादि कि सुव्यवस्था कर दी जाये जिससे कोई शोषित या दलित वर्ग न रहे.

अब सरकारों की प्राथमिकता हमेशा से divide and rule की रही और इसी के चलते उस समाज को तोड़ते रहे जिससे उन्हे लोकतन्त्र में वोट मिलते रहें.

भारतीय सरकार अपनी अक्षमता को छुपाने के लिए 10 वर्षो के काम को 67 वर्षों तक पूरा नहीं कर सकी बल्कि इसलिए आरक्षण को बढ़ावा देती रही है.

अब इस आरक्षण से क्या कुछ लाभ हो रहा है, इसको भी समझें. IIT Delhi की रिपोर्ट के अनुसार जितनी भी सीटें आरक्षित होती हैं उनमें से मात्र 15% ही भरी जाती हैं. बाकी खाली रह जाती हैं. यह हर सरकारी कॉलेज की कहानी है.

दूसरे जो भी आरक्षित श्रेणी के विद्यार्थी हैं, उनके अंक दूसरों से कम होने पर भी उनको प्रवेश दे दिया जाता है. इसके बाद आप इस देश से कैसे इंजीनियर या डाक्टरों की अपेक्षा कर सकते हैं?

शिक्षा के क्षेत्र में इससे बहुत हानि हुई है क्योंकि इसके कारण योग्य विद्यार्थी को स्थान नहीं मिल पाता.

अब आइये इसे रोजगार के क्षेत्र से समझते है.अधिकांश लोग जो आरक्षण के लिए लड़ाई कर रहे हैं, रोजगार के प्रति आशावान है. उनकी नज़र सरकारी नौकरी पर है.

अब जान लें कि WTO के दबाव और अपने खर्चों को कम करने के लिए सरकार प्रति वर्ष अपना सारा काम धीरे-धीरे oursource कर रही है. अब नौकरी हैं नहीं तो आरक्षण से क्या होगा?

आज देश में लगभग 5 करोड़ बेरोजगार युवा रोजगार कार्यालय (employment exchange) में पंजीकृत है. प्रति वर्ष इसमें लगभग 20 लाख की वृद्धि हो रही है. पिछले कई वर्षों के आंकड़े के अनुसार सरकार 3 लाख से 6 लाख प्रति वर्ष रोजगार के विज्ञापन निकालती है.

युवा मोटी-मोटी रिश्वत दे कर इन नौकरियों को प्राप्त करते है. स्थिति यहाँ तक है कि अभी हाल में उत्तर प्रदेश में सफाई कर्मचारी की कुछ जगह निकाली गयी और BA, BCom ही नहीं BTech, MBA तक के लोगों ने आवेदन किया.

आप बेरोजगारी का अंदाज़ा लगा सकते हैं. ऐसे ही 368 चपरासी के स्थान निकले परंतु इसके लिए 23 लाख युवाओं ने आवेदन दिया जिसमें से 1.5 लाख स्नातक थे जबकि इस नौकरी के लिए आवश्यकता है मात्र पाँचवी कक्षा तक पढ़ाई और साइकल चलाने का कौशल.

अब जो लोग आंदोलन करना चाहते है वह समझें और देश में सकारात्मक काम करें. सब राजनैतिक दल तो आपसे अपना लाभ उठाएंगे ही. हर बार चुनाव से पहले यह प्रश्न उठेंगे और देश को फिर तोड़ा जाएगा.

इस आरक्षण की बीमारी का मुख्य कारण है कि शिक्षा में सीटें कम हैं और विद्यार्थी अधिक हैं. नौकरी की संभावनाएं कम हैं परंतु स्वरोजगार के बहुत अवसर हैं.

हालांकि लोगों को आज सस्ते ब्याज पर पूंजी नहीं मिल पाती. यदि सस्ते ब्याज पर पूंजी उपलब्ध हो जाये तो आज भी देश का युवा अपने आप आगे बढ़ जाएगा. इसी लिए अर्थक्रांति जैसे प्रयासों की आवश्यकता है.

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