विशेषज्ञों के अनुसार यह जानकारी सामने आ गयी है कि पहले ढोलकल पर अवस्थित प्रतिमा को हथौड़े अथवा किसी भारी वस्तु से प्रहार कर तोड़ने की कोशिश की गयी. जब इसमें सफलता हाथ नहीं लगी तब सब्बल आदि से इसे धकेल कर पहाड़ी से नीचे गिरा दिया गया.
इस घटना को अंजाम देने के पश्चात कई कहानियाँ ध्यान भटकाने के लिये लाल-आतंकवाद समर्थकों द्वारा भी प्रसारित की गयीं मसलन हैलीकॉप्टर थ्योरी. अब तो कतिपय जहरीली कहानियाँ भी तुष्टीकरण के लिये फैलने लगी हैं. ऐसा जहर इन हवाओं में है जो जान बूझ कर इतिहास को चकनाचूर करने को आमदा है.
वह साक्ष्यों को तोडता है और गल्पों को गढता है. यथार्थ यह है कि बारह सौ वर्षों से जो प्रतिमा दक्षिण बस्तर के गौरवशाली अतीत का शीर्ष बन कर खड़ी थी उसे जान-बूझ कर तोड़ा गया है. अगर किसी को साजिश की बू नहीं आ रही तो रतौंधी का इलाज अवश्य करा सकता है. कोई शरारती तत्व हथौडे और सब्बल ले कर प्रतिमा ध्वंस के लिये नहीं चढ सकता. अब कोई दूसरा संदेह नही, यह अपने अस्तित्व को इस क्षेत्र में संरक्षित करने के प्रयास के लिये नक्सल घटना ही है. यह इतिहास की योजनाबद्ध हत्या है.
अपील: – यह कोई आंचलिक घटना नहीं है जिसके लिये इतनी खामोशी और संवेदनहीनता हो. आज अगर इस विद्द्वंस की इस घटना पर आप नहीं बोले तो धीरे धीरे वह सब भी ध्वस्त हो जायेग जो बस्तर की अतीत को समझने का ही कारक नहीं इस देश के इतिहास के पन्नों में लिखावट है.
मेरी अपील दिल्ली से है कि हमारे विरोध का स्वर बनें. यह घटना किसी भंसाली को पड़े थप्पडों से अधिक बड़ी है और इसके निहितार्थ बहुत गंभीर हैं. हमारी आवाज बनिये. हमें हमारा ढोलकल लौटाने में कृपया देश के हर कोने से उठती हुई आवाज बनें. विनम्र अपील है देश के इतिहासकारों, लेखक-साहित्यकारों और कलाकारों से……
– राजीव रंजन प्रसाद
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