1967 शिशु मन की धुंधली तसवीरों में एक दो बैलों वाला चौपहिया उभरता है… बैलों के ऊपर रंगीन झूल डली हुयी है, हारमोनियम तबले वाले बैठे हुये हैं, लाउडस्पीकर पर एक व्यक्ति गा रहा होता है –
“भूल ना जाना भारत वालों किसी की होड़ा होड़ी में,
देखभाल कर मोहर लगाना दो बैलों की जोड़ी पे”
और दूसरी जगह लाउडस्पीकर पर आवाज़ आ रही है –
“हर हाथ को काम, हर खेत को पानी,
हर घर में दीपक, जनसंघ की निशानी”
एक दिन भिड़ंत होती है –
इधर – “इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं”
उधर – “जली झोंपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल”
“गली गली में शोर है, (दीपक वाला, बरगद वाला, हाथी वाला, बैलों वाला, हलधर वाला) चोर है”
इधर – “गली गली में झंडी है, इंदिरा गांधी …… है”
उधर – “गली गली में झण्डा है, अटल बिहारी …….. है”
चुनावी नारों की इस परंपरा में 1971 में इंदिरा जी के तमाम रिफॉर्म्स की उपलब्धियों और नीलम संजीव रेड्डी वाले प्रकरण पर कांग्रेस विभाजन के बाद हुए “गरीबी हटाओ” नारे के बीच नारे आए –
“खा गयी राशन पी गयी तेल, ये देखो इंदिरा का खेल”
“स्वर्ग से नेहरू रहे पुकार, अबकी बिटिया जइयो हार”
1974 के यूपी चुनावों में नारों की फिर धूम रही –
“झूठ बोले हलधर वाला गईया बछड़ा सै डरियो
दीपक पे मोहर लगाऊँगी तुम देखते रहियो”
और जब प्रचारक टोली आमने सामने भिड़तीं तो –
“दीपक बुझ गयो वा भई वा हल टूट गयौ वा भाई वा,
गाय विचर गयी वा भाई वा, बछड़ा खुल गयौ वा भाई वा
अरे बरगद टूटी वा भाई वा, वो हाथी भागौ वा भाई वा”
“अटल बिहारी बोल गया, इंदिरा शासन डोल गया”
1977 इमरजेंसी के बाद –
“सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है”
और “इंदिरा भारत हैं और भारत इंदिरा है”, “इमरजेंसी अनुशासन पर्व” के नारों के बीच देश पुकार उठा –
“इमरजेंसी के तीन दलाल, विद्या संजय बंसीलाल”
“संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी”
“बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है”
”जमीन गई चकबंदी में, मकान गयौ हदबंदी में,
द्वार खड़ी बइयर चिल्लाए, मेरौ मर्द गयौ नसबंदी में”
और बहुत ही जल्दी इंदिरा जी लौटीं चिकमंगलूर उपचुनाव के साथ –
“एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर”
1980 में बाबू जगजीवन राम को पीएम बनाने के संघ के इरादों वाले माहौल में – “अपना हक लेके रहेंगे ….” वाले नारे की तीव्र प्रतिक्रिया के साथ नारे उठे –
“इंदिरा लाओ देश बचाओ”
“इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर”
“जात पे ना पांत पे, मोहर लगेगी हाथ पे”
“आधी रोटी खाएँगे, इंदिरा को वापस लाएंगे”
और 1984 में इंदिरा जी की हत्या के बाद तो दो नारों ने ही तूफान ला दिया –
“जब तक सूरज चाँद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा”
“इंदिरा तेरा ये बलिदान, नहीं भूलेगा हिंदुस्तान”
और “उठे करोड़ों हाथ हैं, राजीव जी के साथ हैं”
1989 में बोफार्स दलाली की छाया और रामजन्म भूमि आंदोलन के बीच दो नारों ने एक बार पुनः गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री दिया तो भाजपा को भी एक नयी ताकत दी –
“राजा नहीं फकीर है, भारत की तकदीर है”
“सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे”
1991 की राम लहर में तो पूरी फिज़ा में –
“जय श्री राम”
का नारा एक मंत्र बन कर छा चुका था, अयोध्या आंदोलन के नारे भाजपा के लिए प्रयुक्त होने लगे –
“बच्चा बच्चा राम का, बीजेपी के काम का”
“बीजेपी के काम ना आए, वो बेकार जवानी है”
जैसे नारों के साथ जब हाथ उठा कर “जय श्री राम” का नारा उठता तो मीलों दूर उसका वायब्रेशन पहुंचता था.
लेकिन इसी चुनाव के बीच राजीव जी की हत्या के साथ ही स्थिति बदली और 84 वाले नारों में इंदिरा जी के नाम की जगह राजीव जी का नाम आ गया और राम लहर वापस लौट गयी.
“जब तक सूरज चाँद रहेगा, राजीव तेरा नाम रहेगा”
“राजीव तेरा यह बलिदान, याद करेगा हिंदुस्तान” …आदि.
इसी चुनाव में यूपी का एक नारा था –
“जिसने कभी न झुकना सीखा, उसका नाम मुलायम है”
बाबरी ध्वंस के पश्चात 1993 में भाजपा इस नारे के साथ बड़ी उम्मीद से उतरी –
“ये तो पहली झांकी है, मथुरा काशी बाकी है”
लेकिन,
“मिले मुलायम कांसीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम”
का नारा भाजपा और यूपी की राजनीति पर भारी पड़ा.
1996 लोकसभा चुनाव में –
“सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी”
“लाल किले से उठी चिंगारी, अबके देखो अटल बिहारी”
आदि नारों ने एक बार तो अटल जी को प्रधानमंत्री बना ही दिया… और 1997 विधान सभा में BSP का नारा था –
“बाबा साब का मिशन अधूरा, माया भैंन करेंगी पूरा”
1998 में भाजपाइयों में इस नारे ने जोश भरा –
“अटल आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान”
इसी चुनाव का ये नारा याद आता है तो आज भी रोमांच से भाजपाइयों के रोंगटे खड़ा कर देता है –
“राजतिलक की करो तैयारी, आ रहे हैं अटल बिहारी”
1999 लोकसभा चुनाव एक वोट की हार और कारगिल उपलब्धि के साथ नारा हावी रहा –
‘कहो दिल से, अटल फिर से”
2002 में यूपी में बीएसपी पूरी तैयारी से उतरी और कहा –
“बनिया हाफ, ठाकुर साफ, ब्राह्मण माफ”
और ब्राह्मणों ने भी कह दिया –
“पत्थर रख लो छाती पर, बटन दबाओ हाथी पर”
2004 का चुनाव नारों की दृष्टि से नीरस रहा, भाजपा ने बेतुका नारा लगाया,
“शाइनिंग इंडिया” “फील गुड”
तो कांग्रेस केवल
“आम आदमी को क्या मिला”
कह कर सत्ता पा गयी.
2007 में मुलायम राज की अराजकता के मध्य हुये चुनाव में नारे उठे –
“चढ़ गुंडन की छाती पे, मुहर लगेगी हाथी पे”
“ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी चलता जाएगा”
और भैंनजी की पूर्ण बहुमत की सरकार बन गयी.
और 2009 में कांग्रेस और भाजपा में
“जय हो …..”, “भय हो…….”
का युद्ध चला.
वहीं बीएसपी ने कहा –
“यूपी हुयी हमारी है, अब दिल्ली की बारी है’’
और 2014 में कांग्रेस –
”हर हाथ शक्ति, हर हाथ तरक्की”
”जनता कहेगी दिल से, कांग्रेस फिर से”
के नारे के साथ उतरी. तो वहीं भाजपा के
“ट्विंटल-ट्विंकल लिटिल स्टार, अबकी बार मोदी सरकार”
नारे ने ना जाने कितनी चीजों के साथ
“अबकी बार मोदी सरकार”
जोड़ दिया। इसी चुनाव में भाजपा की सामूहिक भावना और परिवारमय वातावरण वाली राजनीति को –
“हर हर मोदी घर घर मोदी”
नारे ने व्यक्तिवादी राजनीति में बदल दिया.
और नारों की परंपरा के लिए जानी जाने वाली भाजपा पर बस एक नारा रह गया –
मोदी मोदी मोदी मोदी मोदी…
वैसे इस नारे के उभरने की उम्मीद बन रही है जो कि यदा कदा हंसी मजाक में चल रहा है –
अब तौ भैना गुल्लक तोड़ी, मोदी ने नोटबंदी में