चुनावी वादों से गूंजती मंहगाई की आहट, व्यापारियों के लिए स्टॉक कर मुनाफा पीटने का मौका

व्यापारी बंधु ध्यान दें… चुनावी वादों में घी-चीनी फ्री या सस्ता देने के जो भी वादे शामिल हैं, उनको इन जिंसों के भावों में आने वाली तेजी की गारंटी मान कर आप अपना व्यापार कर सकते हैं.

PDS (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) में जो भी चीज वितरित की जाती है, उसमें तेजी आना एक अकाट्य तथ्य है.

बात शायद अटपटी लगे लेकिन देख लीजिये… खाद्यान्न सुरक्षा योजना में चीनी 10 रुपये, गेहूं 2, चावल के 3 रुपये के भाव भी खुले बाजार में इनकी तेजी को रोक ना सके…

इन जिंसों के राशन की दुकानों में आते ही, कई सालों से मरे पड़े इनके भावों में तेजी शुरू हो गयी…

दरअसल सरकार वितरण हेतु इन चीजों का जब क्रय करती है तो एक बल्क क्वान्टिटी का ग्राहक बाजार में होने से तेजी स्वतः ही बन जाती है…

वैसे भी सरकारी अधिकारी अपने विभाग की खरीदी हुई किसी भी जिंस में मंदा नहीं बनने देते… जिससे कि उनके विभाग के माथे पर घाटे का कलंक न लगे…

और इधर चीनी या राइस मिल वाले उनके प्रोडक्शन का एक निश्चित हिस्सा सरकारी क्रय में जाने से अतिरिक्त स्टॉक के तनाव से मुक्त हो खुल के बैटिंग कर लेते हैं.

गेहूं की तेजी का अनाड़ीपन तो समाचार चैनलों के पत्रकारों की व्यापार की कम जानकारी के कारण ही छुपा हुया है… पारदर्शिता की आड़ में हो रहे अनाड़ीपन से गेहूं में तेजी बनी.

पहले खुले बाजार में तेजी आने पर सरकार अपना गेहूं बाजार की चालू कीमत से कम वाली एक फिक्स रेट पर बेचती थी, जिससे निजी स्टॉकिस्टों मैं घबराहट बन जाती और मंदी आ जाती…

लेकिन अब ये गेहूं ऑक्शन द्वारा जारी होता है… इस ऑक्शन में छोटे और मध्यम व्यापारी तो भाग भी नहीं ले पाते… बड़े डायनोसोर हावी रहते हैं.

वे तेज से तेज कीमत में उक्त गेहूं पर कब्जा कर बाजार पर अपनी मोनोपॉली बना अपने स्टॉक का गेहूं या तैयार आटा-मैदा भी तेज कर लेते हैं…

अब इन चीजों में घी और शामिल होने जा रहा है… व्यापारी इसमें निश्चित तेजी मान कर स्टॉक का जुआ खेल सकते हैं.

ध्यान रहे, कोई मंत्री अक्ल से काम ले गया तो ये तेजी ना रुके, ये भी असंभव नहीं है…

उदाहरण के लिए आज चीनी को ही लिया जाय. यदि केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान मेरी बात पर ध्यान देकर PDS में से चीनी खत्म करने की साहसिक घोषणा कर देते हैं तो देखिये…

सट्टा बाजार में एक झटके की हल्की तेजी के बाद किस प्रकार इसके भाव आहिस्ता आहिस्ता नीचे आ जायेंगे… बिना ही किसी बड़े उपाय के….

या फिर केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली संभावित आयात शुल्क कटौती की बजाय निर्णय लें कि PDS में वितरित की जाने वाली चीनी, सरकार विदेश से स्वयं मंगा कर राशन की दुकानों पर देगी… तब देखिये इसका कितना बड़ा प्रभाव पड़ता है मूल्य नियंत्रण में.

कारोबार-व्यापार आधारित टीवी चैनल या जन सरोकार का दम भरने वाले सारे टीवी चैनल्स मेरे दिये गए सुझाव पर विशेषज्ञों की बहस करा कर देख लें, यही निष्कर्ष निकलता है या नहीं.

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