जिस राज बब्बर को पिटवाया, अब उन्हीं के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे अखिलेश!

बड़ी चर्चा थी इस बात की, कि इस बार यूपी चुनाव में काँग्रेस प्रियंका वाड्रा को उतार सकती है. तुरुप का इक्का बचा कर रखा है काँग्रेस ने. मुख्यमंत्री की उम्मीदवार भी हो सकती है.. आखिर दिल्ली का रास्ता यूपी होकर ही तो जाता है!

पहले राज बब्बर को जोर शोर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया. लगा काँग्रेस सीरियस तो है कम से कम इस चुनाव को लेकर. फिर उनको किनारे कर शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया. तो लगा काँग्रेस ने दाँव बदला है लेकिन यूपी छोड़ने वाली नही है आसानी से.

लेकिन काँग्रेस की सारी हेकड़ी निकल गयी जब 105 सीट लेकर समाजवादी पार्टी के कदमों में काँग्रेस पार्टी बिछा दी.

अब सवाल ये है कि बिहार में काँग्रेस का जिस जदयू और आरजेडी से गठबंधन है और वो मंत्रिमंडल में भी है… उस जदयू के साथ काँग्रेस ने यूपी में गठबंधन क्यों नही किया है?

जदयू क्यों अजीत सिंह के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है यूपी में? काँग्रेस के साथ क्यों नही? यानि बिहार में सिर्फ अवसरवादी गठबंधन था? या काँग्रेस कि हालत उस नगरवधु जैसी हो गई है, जिसे जो अच्छा रेट देगा वो उसके साथ चली जायेगी?

इसी तरह स्वघोषित विकास पुरुष अखिलेश यादव का जब काम बोल रहा है तो उसे काँग्रेस की बैसाखी की ज़रूरत क्यों पड़ी? 300 सीट जीतने का दावा करने वाली सामाजवादी पार्टी 295 सीटों पर ही चुनाव क्यों लड़ रही है?

सीधी सी बात है… काम किया होता तो गठबंधन की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. साफ नज़र आ रहा है कि दलित और ओबीसी वोट भाजपा के पाले में जा रहे है… सारी लड़ाई मुस्लिम वोट बैंक की है. अखिलेश की नैय्या डूबती देख ये वोट बसपा की तरफ जा रहा है… सिर्फ इसी को रोकने के लिये सपा को काँग्रेस से गलबहियां करना पड़ रही है.

4 महीने पहले सपा की गुंडागर्दी के खिलाफ प्रदर्शन करने पर लखनऊ में जिस राज बब्बर की पिटाई अखिलेश यादव ने करवायी थी… अब वही दोनों आपस में मिलकर चुनाव लड़ेंगे…

मतलब जनता को बेवकूफ समझ रहे हो… जिसे कुछ समझ में नही आ रहा है? सपा , काँग्रेस और बसपा… इन तीनों को सिर्फ मुस्लिम वोट की चिंता है.

सबसे मजेदार बात तो ये होगी… जब काँग्रेस का ‘तुरुप का इक्का’ प्रियंका वाड्रा अमेठी और रायबरेली में समाजवादी पार्टी के लिये वोट मांगेगी.

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