उत्तर दिशा में बड़ा सा एक मकान था जिसका मालिक हर 5 घंटे के लिए, घर में रह रहे जीवों को सुरक्षा, सृजन एवं परिचालन की जिम्मेदारी देकर सो जाता था.
इस बार ये जिम्मेदारी छोटे-मोटे कीट पतंगों को साफ़ करने का दावा (वादा) कर के ‘छिपकली’ ले उड़ी.
पांच घंटे बाद जब मालिक जागा तो देखा सब कुछ अस्त-व्यस्त था. रसोई सारी बिखरी हुई, ‘राशन’ सब गायब.
सारे घर में मकड़ियों के अवैध जाले ही जाले. मालिक ने कांच में देखा तो अपने सारे कपड़े भी काटे हुए, अलमारियों के कपड़ों का भी यही हाल.
जैसे ही अपने पैरों पर खड़ा हुआ तो तलवे दर्द से कराह उठे, ‘अरे ये चूहे तो मेरी चमड़ी तक खा गए.’
‘छिपकली! ये सब क्या है? ओह मैंने तुम्हें क्यों सौंपा अपना घर इन 5 घंटों के लिए.’
छिपकली बोली – ‘हुजूर ये समाजवाद है. आप तो सोये रहते हैं, आप को नहीं मालूम. आजकल सभी का कल्याण करना पड़ता है, किसी को कुछ कह नहीं सकते. यही समाजवाद है.’
मालिक – ‘अरे मेरी प्यारी विकास की चिड़िया के अंडे कहां गए?’
‘मालिक, उन्हें तो सांप खा गए’, संविधान से बंधा खाकी नेवला सर उठाके बोला.
‘क्या! अब यहां सांप भी घूम रहे हैं?
छिपकली बोली, ‘यह झूठ है हुजूर, हमेशा की तरह. नेवला इस पद के लिये हमेशा ‘सांप’ का डर दिखाता है.’
खिड़की के पास एक पेड़ की ‘दिल्ली’ से झांकता गिरगिट रंग बदलता हुआ बोला – ‘देखिये जी. ये छिपकली मेरी जितनी ईमानदार तो नहीं है लेकिन इस साम्प्रदायिक नेवले से तो बेहतर ही है, इसे पांच घंटे और दिए जाएं.’
मालिक ने नेवले से पूछा – ‘तुम सब सच-सच बताओ?’
नेवला बोला, ‘मालिक आपके सोते ही इसने अपने सभी भाई बंधुओ को बुला लिया और छक के रसोई से सारा राशन साफ़ कर दिया. चूहों को बुलवाया कि अगली बार मेरा समर्थन करना और सब कुछ तुम कुतर सकते हो. सांप आया तो छिपकली लड़ने से डर गई. मैंने कहा मुझे आजाद कर दे, मैं इस सांप को भगा दूंगा और फिर अपनी जगह चला जाऊंगा. लेकिन उसने मना कर दिया. विकास के अंडे खाने के बदले अपनी सुरक्षा का सौदा कर लिया महाराज. और…’
बाजी पलटती देख छिपकली अजीब सी आवाज निकालने लगी. मालिक उसे देखने लग गए. नेवले की बात अधूरी रह गई.
छिपकली बोली, ‘ये साम्प्रदायिक नेवला झूठ बोल रहा है. मैंने ही सांप और चूहों से लड़ते हुए उन्हें घर में घुसने ही नहीं दिया इसलिए मेरी ये हालत हुई है, मैं घायल हूँ और इस बार आप मौका देंगे तो जान भी कुर्बान कर दूंगी स्वामी.’
कहते कहते ही छिपकली ने अपना परम स्वांग रचा और अपनी टीपू ‘पूंछ’ अपने शरीर से अलग कर ली. कटी पूंछ जोर से तड़पने लगी.
मालिक का गुस्सा स्मृतिभ्रम का शिकार हो गया. मालिक कन्फ्यूज़ हो गया… क्या करे?
मालिक की बुद्धि तो नेवले को ही प्रभार सौंपना चाह रही है क्योंकि वही, सांप-चूहों-गिरगिट से घर को बचा सकता है और घर का कुछ ऐसा नहीं जिसमें उसका निजी स्वार्थ हो, ‘ना खायेगा और ना किसी को खाने देगा.’
और एक तरफ ये छिपकली का स्वांग.
मेरी इस तीसरी कहानी के वास्तविक किरदारों को आप समझ ही गए होंगे.
[पहली कहानी : Demonetization : विक्रमादित्य की अद्भुत कथा]
[दूसरी कहानी : खेल अधूरा छूटे ना..]
अब आपकी जिम्मेदारी है कि अपने और अपने पड़ोस के उस उत्तरी मकान के मालिक को द्वंद्व से निकलना है क्योंकि स्वभावतः छिपकली की पूंछ तो फिर से उग आएगी, आप जानते है.