Sun Therapy : रंगीन बोतल में बंद सेहत का जिन्न

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आपने अभी तक तो यही सुना है, जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि. लेकिन एक जगह है जहां ये कहावत ही उलट हो जाती है. वो है हमारा शरीर और उस पर सॉरी किरणों का प्रभाव.

हम बात कर रहे हैं सूर्य चिकित्सा की. हमारा शरीर पाँच महाभूत तत्वों से बना है. ये हैं- आकाश, वायु, अग्नि, जल ओर धरती. जब मानव ने जन्म लिया तो उन पाँच तत्वों मे विकार के कारण जो तत्व क्रमश: उत्पन्न होते गये उनमें से प्रत्येक तत्व अपने से पहले उत्पन्न तत्वों की तुलना मे स्थूल थे, जैसे- सूक्षतम भगवान से आकाश स्थूल है, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल ओर जल से धरती स्थूल है.

इन पाँच तत्वों को मिलाकर मानव के स्थूल शरीर का निर्माण हुआ है. इस कारण पंच तत्व निर्मित हमारे शरीर की रक्षा व स्वास्थ केवल भोजन से संभव नहीं है बल्कि इसके लिए पाँचों तत्वों की ज़रूरत है अथार्थ पाँच तत्व हमारे शरीर के लिए पाँच भोजन की तरह है. इन भोजनों में से किसी की भी कमी होने पर शरीर रोगी हो जाता है. उस समय हम जिस तत्व की कमी से रोग हुआ है उस तत्व से बुद्धिमानी की साथ इलाज के रूप में काम लेकर लाभ प्राप्त कर सकते है. हम आपको पाँच तत्व में से अग्नि तत्व (सूर्य)के बारें में बात कर रहे हैं.

सूर्य चिकित्सा के सिद्धान्त के अनुसार रोगोत्पत्ति का कारण शरीर में रंगों का घटना-बढना है. सूर्य किरण चिकित्सा के अनुसार अलग‍-अलग रंगों के अलग-अलग गुण होते हैं. लाल रंग उत्तेजना और नीला रंग शक्ति पैदा करता है. इन रंगों का लाभ लेने के लिए रंगीन बोतलों में आठ-नौ घण्टे तक पानी रखकर उसका सेवन किया जाता है.

जहां सूर्य की किरणें पहुंचती हैं, वहां रोग के कीटाणु स्वत: मर जाते हैं और रोगों का जन्म ही नहीं हो पाता. सूर्य अपनी किरणों द्वारा अनेक प्रकार के आवश्यक तत्वों की वर्षा करता है और उन तत्वों को शरीर में गृहण करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं.

शरीर को कुछ ही क्षणों में झुलसा देने वाली गर्मियों की प्रचंड धूप से भले ही व्यक्ति स्वस्थ होने की बजाय उल्टे बीमार पड जाए लेकिन प्राचीन ग्रंथ अथर्ववेद में सबेरे धूप स्नान हृदय को स्वस्थ रखने का कारगर तरीका बताया गया है. उसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति सूर्योदय के समय सूर्य की लाल रश्मियों का सेवन करता है उसे हृदय रोग कभी नहीं होता.

अथर्ववेद में कहा गया है कि सूर्योदय के समय सूर्य की लाल किरणों के प्रकाश में खुले शरीर बैठने से हृदय रोगों तथा पीलिया के रोग में लाभ होता है. प्राकृतिक चिकित्सा में आन्तरिक रोगों को ठीक करने के लिए भी नंगे बदन सूर्य स्नान कराया जाता है.

वेदों में सूर्य पूजा का महत्व है. प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सूर्य शक्ति प्राप्त करके प्राकृतिक जीवन व्यतीत करने का सन्देश मानव जाति को दिया था.
सूर्य चिकित्सा पूर्ण रूप से एक प्राकृतिक उपचार है अब यह वैज्ञानिक पद्धति भी है और एक धार्मिक अनुष्ठान भी है.

जैसा कि हम जानते हैं कि सूर्य की रोशनी में सात रंग शामिल हैं.. और इन सब रंगो के अपने अपने गुण और लाभ है…

1. लाल रंग- यह ज्वार, दमा, खाँसी, मलेरिया, सर्दी, ज़ुकाम, सिर दर्द और पेट के विकार आदि में लाभ कारक है.

2. हरा रंग- यह स्नायुरोग, नाडी संस्थान के रोग, लिवर के रोग, श्वास रोग आदि को दूर करने में सहायक है.

3. पीला रंग- चोट, घाव रक्तस्राव, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग, अतिसार आदि में फ़ायदा करता है

4. नीला रंग- दाह, अपच, मधुमेह आदि में लाभकारी है

5. बैंगनी रंग- श्वास रोग, सर्दी, खाँसी, मिर् गी..दाँतो के रोग में सहायक है

6. नारंगी रंग – वात रोग. अम्लपित्त, अनिद्रा, कान के रोग दूर करता है

7. आसमानी रंग – स्नायु रोग, यौनरोग, सरदर्द, सर्दीजुकाम आदि में सहायक है.

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