परिणय को मंगल बनाने के लिए आवश्यक पाँच स

भारतीय संस्कृति में विवाह सबसे पवित्र संस्कार माना जाता है, जिसमें स्त्री और पुरूष एक दूसरे से बंधन में बंध कर भी एक दूसरे के पूरक बन जाते हैं. परंतु जीवनपर्यंत चलने वाले इस रिश्ते की भी अपनी मर्यादाएँ और कुछ अपेक्षाएँ होती हैं जो स अक्षर से प्रारंभ होती है.

सबसे पहला स जो विवाह को सुखी बनाता है वह है एक दूसरे के प्रति सम्मान.

दूसरा स है स्वीकार का. एक दूसरे के गुणों अवगुणों को स्वीकार करना और एक दूसरे की आदतों को बदलने की जिद न करना.

तीसरा स है समझौते का. दूसरे की भावना को प्रधानता देना ही समझौते की ओर बढ़ाया गया पहला कदम होता है, और यह कदम यदि साथ साथ उठाया जाए तो बात ही क्या.

चौथा स है संतुष्टि का. विवाह में यह तत्व सबसे अधिक मायने रखता है, इसमें दैहिक और आत्मिक दोनों संतुष्टि का समावेश आवश्यक है.

और पाँचवा सबसे महत्वपूर्ण स है समर्पण का. विवाह एक दूसरे के प्रति पूर्ण निष्ठा के साथ समर्पण का ही दूसरा नाम है.

तो आप भी मंगल परिणय की सुखद कल्पना को इन पाँच स की मदद से साकार करें.

परंतु इन सबके ऊपर जो छठा तत्व है उसे कभी न भूलें और वह है स्वतंत्रता. यदि पति पत्नी दोनों एक दूसरे को पूर्ण विश्वास के साथ स्वतंत्रता दें, तो किसी भी विवाह में कभी भी अलगाव जैसा शब्द नहीं आएगा.

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