केजरीवाल को दुबई-क़तर से क्यों मिला इतना ज़्यादा चुनावी चन्दा?

नोटबंदी की मंदी और उस से उपजी शान्ति के बाद यहां पंजाब का चुनावी माहौल एक बार फिर गरमाने लगा है. नामांकन भरे जा रहे हैं.

एक बार जब नामांकन के बाद नाम वापस लेने की प्रक्रिया पूरी हो जायेगी तो तस्वीर साफ होगी. पर फिलहाल जो माहौल है, उस से ये समझ आ रहा है कि पंजाब के इस चुनाव का संचालन UK, Canada और अन्य देशों में बैठे खालिस्तानी कर रहे हैं.

नोटबंदी के झटके से उबर के नयी रणनीति तैयार है. विदेशों में बैठे खालिस्तानियों ने अपनी पूरी ताकत AAP के पीछे झोंक दी है.

1994 के बाद भारत सरकार और पंजाब सरकार सफलतापूर्वक पंजाब के अलगाववादी खालिस्तान आंदोलन को कुचलने में कामयाब रही. ये काम तब की कांग्रेसनीत बेअंत सिंह सरकार ने किया था.

तब से आज तक, चाहे अकाली दल के सरदार प्रकाश सिंह बादल साहब रहे हों या फिर कांग्रेस के अमरेंद्र सिंह…. इन दोनों ने कभी खालिस्तानियों को पंजाब में वापस सर नहीं उठाने दिया. अंततः खालिस्तानियों का इन दोनों पार्टियों से मोहभंग हो गया.

खालिस्तानी एक अरसे से किसी ऐसी तीसरी पार्टी की तलाश में थे जो उनके एजेंडे को आगे बढाए. उन्हें अरविन्द केजरीवाल के रूप में वो मोहरा मिल गया है.

खालिस्तानियों को लगता है कि यदि वो AAP की सरकार पंजाब में बनवा लेते हैं तो वो एक बार फिर पंजाब में खालिस्तान मूवमेंट शुरू कर सकते हैं.

इस पूरी योजना में निश्चित रूप से पाकिस्तान की ISI और Middle East की वहाबी इस्लामी ताकतें इन खालिस्तानी तत्वों को समर्थन दे रही हैं. सोचने वाली बात है कि आखिर केजरीवाल को इतना ज़्यादा चुनावी चन्दा दुबई-क़तर से क्यों मिला?

अब चूँकि हवाला रुट पर मोदी की सख्त नज़र है इसलिए UK और Canada जैसे देशों में बैठे खालिस्तानी सोशल मीडिया के जरिये ज़बरदस्त अभियान छेड़े हुए हैं.

पंजाब का शायद ही कोई घर होगा जिसका कोई सदस्य यूरोप अमेरिका कनाडा ऑस्ट्रेलिया में न बैठा हो…. वहाँ से अपील आ रही है कि AAP को वोट दो. विदेशों से जहाज भर भर के लोग यहां अमृतसर एयरपोर्ट पर उतर रहे हैं और लोगों को mobilize कर रहे हैं.

पिछले दो महीने में ऐसा लग रहा था कि AAP पंजाब में पिछड़ के तीसरे नंबर पर चली गयी है पर अब जबकि चुनावी माहौल फिर गर्माया है, ठण्ड में अकड़ा हुआ अजगर फिर हिलने लगा है.

अकाली दल – भाजपा की सरकार 10 साल की anti incumbency से जूझ रही है. कांग्रेस यहां पंजाब में अकाली दल का एक स्वाभाविक विकल्प रही है.

ऐसे में अब जबकि AAP के कारण लड़ाई त्रिकोणीय हो गयी है, ये देखना मज़ेदार होगा कि कौन किसके वोट काट रहा है.

स्वाभाविक रूप से AAP को मिलने वाला वोट या तो कांग्रेस का होगा या अकाली दल का…. सवाल ये कि AAP किसका वोट ज़्यादा काट रही है? अकाली-भाजपा का या कांग्रेस का?

मज़े की बात ये कि Anti incumbency अकालियों के खिलाफ बहुत ज़्यादा है और भाजपा के खिलाफ मामूली….

ऊपर से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में हुई सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी का लोगों पर सकारात्मक असर है और मोदी / भाजपा की स्थिति में निखार आया है. चंडीगढ़ के निकाय चुनावों में इसकी झलक मिल चुकी है.

ऐसे में ये त्रिकोणीय मुकाबला दिलचस्प होगा.

वैसे अंतिम दिन, अगर अकाली दल और भाजपा को लग ही गया कि हम हार रहे हैं तो वो पंजाब के हित में कांग्रेस को जिताना पसंद करेंगे बनिस्बत AAP के. कुल मिला के पंजाब की चाबी हिन्दू वोटर के हाथ में है.

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