“एक पिता ने जब अमृत का अंश इश्क के हाथों में सौंपा तो अमृत का वो अंश जीवन में पल्लवित हुआ….”
यूं तो ये अफसाना यहीं पर ख़त्म हो जाता यदि सिर्फ अफसाना होता… लेकिन ऐसे अफ़सानों को जब इश्क़ अपनी हिफाज़त में ले लेता है तो जीवन की सच्ची कहानी बन जाता है…
एक ऐसी ही कहानी जब मैंने एक पिता के मुंह से सुनी तो बेटे की उम्र में तब्दील हो गई… और जब खुद इश्क़ के मुंह से सुनी तो उसके मांग का सिन्दूर हो गई…
और जब यही कहानी मैंने दोनों से सुनकर फिज़ा के कानों में गुनगुनाई तो अमृत का अंश बनकर इश्क़ की कोख का बीज बन गई….
कहते हैं प्रकृति कान की बहुत कच्ची होती है इसलिए सच्चे दिल वालों को जब भी कोई बात कहनी हो तो सोच समझकर कहनी चाहिए….
अपने दोस्त की बेटी को देखकर मज़ाक में पिता के मुंह से निकला इसे संभालकर रखना इसे मैं अपनी बहू बनाऊंगा… तो उस पिता को बोलते समय यह ख़याल भी नहीं होगा कि उसका बोला हुआ प्रकृति ने तो सुना ही है साथ ही साथ करीब से गुज़र रही नियति के कानों में भी पड़ गई है बात …
नियति ने 18 साल की लड़की के मन की कच्ची मिट्टी को विवाह की वेदी का रूप दे दिया था इसलिए जब वो लड़के से मिली तो नियति ने उस वेदी में अग्नि का वरदान डाल दिया….
इस बीच किस्मत पिता का इम्तिहान भी लेती रही …
एक पलड़े में बेटे की ज़िंदगी और दूसरे पलड़े में जीवन भर कमाई पूंजी डाल देने के बाद भी बेटे की ज़िंदगी का पलड़ा हमेशा हल्का बना रहा… क्योंकि बेटे के शरीर के दोनों गुर्दे खराब हो चुके थे और वो उसकी ज़िंदगी से ज़्यादा भारी निकले…
पिता बेटे की ज़िंदगी बचाने के लिए उसे लेकर विदेश घूमता रहा… और जब उसकी अपनी बहन ने रक्षासूत्र की परम्परा को उलटकर उसके बेटे को दान में एक गुर्दा देकर उसके जीवन की रक्षा की तो भाई की किस्मत फिर अमीर हो गई … एक ओर बहन के प्रेम से दूसरी ओर बेटे की उम्र से…
किडनी ट्रांसप्लांट के बाद पिता अपने बेटे की ज़िंदगी को यूं संभालता रहा जैसे किसी ने बेटे की साँसों को कांच का बनाकर पिता के हाथों में थमा दिया हो…
पिता बेटे को मौत के मुंह से खींच लाया था और एक परहेजी जीवन के राजमार्ग पर चला जा रहा था…
इसी राजमार्ग पर बेटे को पिता के दोस्त की वो बेटी मिली तो नियति दूर खड़े खड़े मुस्कुराती रही और लड़की के मन की मिट्टी से बनी वेदी में इश्क की आग जलाती रही….
लड़की उसे राजमार्ग से खींचकर ले गई इश्क की पगडंडियों पर, जो खुलती है उस गाँव में जहां प्रकृति अपने पूरे यौवन के साथ प्रेम के गीत गाती है, खेतों में बालियाँ बनकर लहलहाती है और सुकून की नदी के पानी में नहाकर निर्मल हो जाती है…
और ऐसे में ही दोनों को याद आता है नियति का अग्नि वरदान, तो विवाह की वेदी की अग्नि और ज्वलंत हो जाती है…
केवल लड़की के माता पिता और समाज ही नहीं, बल्कि जीवन भी दोनों के विवाह कुण्ड में पानी डालने को आतुर हो जाता है तो दोनों खुद को असामाजिक करार देते हुए हाथ में हाथ डाले विवाह वेदी में कूद पड़ने को तटस्थ हो जाते हैं…
समाज को झुकाना कोई बड़ी बात न थी, लेकिन दोनों के इश्क़ ने मौत को भी झुका दिया…. पिता के हाथों में रखी बेटे की कांच की साँसों को उस लड़की ने अपनी कोख में बो दिया….
और जब उस पर इश्क का पानी पड़ा तो न सिर्फ बेटे की कांच की साँसें लोहे में तब्दील हुई बल्कि पिता के हाथों में जीवन अमृत का नया अंश पल्लवित हुआ…
एक बार फिर यही कहूंगी सच्चे दिल वालों को कोई भी बात सोच समझ कर बोलनी चाहिए… पता नहीं नियति कब कौन सी बात सुन ले…. और कह दे तथास्तु…..
- माँ जीवन शैफाली