सात फेरों वाली शादी सात पत्थर का सितोलिया खेल थी…
किस्मत की गेंद पत्थरों पर पड़ती
और मैं दोबारा गेंद पड़ने से पहले उसको जल्दी से जमा कर
दाम से मुक्त हो जाना चाहती …
पहला पत्थर तो बड़े प्रेम से रखा
दूसरा संस्कार से…
तीसरे ने खुद ही परम्परा का रूप धर लिया
चौथा जमते जमते समझौता हो गया …
पांचवां पत्थर रखने गई
तो हाथ में फंस गया
छठा शक की नींव बन गया
सातवाँ हाथ में ही था कि
किस्मत की गेंद ने धप्प से पीठ पर जड़ दिया…
मैं संभल पाती इससे पहले ही
पत्थर हाथ से फिसलकर उन छः पत्थरों पर गिर गया…
सात फेरों वाली शादी सात पत्थर का सितोलिया खेल थी…
मैंने पूरी ईमानदारी से खेला
न जाने कौन चीटिंग कर गया…
– माँ जीवन शैफाली