आयुर्वेद आशीर्वाद : साक्षात गणपति माना जाने वाला एक चमत्कारी पौधा

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मदार या आक एक औषधीय वनस्पति है. इसको मंदार, आक, अर्क और अकौआ भी कहते हैं. इसका वृक्ष छोटा और छत्तादार होता है. पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं. हरे सफेदी लिये पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं. इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है. फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं. फल आम के तुल्य होते हैं जिनमें रूई होती है. आक की शाखाओं में दूध निकलता है. वह दूध विष का काम देता है. आक गर्मी के दिनों में रेतिली भूमि पर होता है. चौमासे में पानी बरसने पर सूख जाता है.

आक के पौधे शुष्क, उसर और ऊँची भूमि में प्रायः सर्वत्र देखने को मिलते हैं. इस वनस्पति के विषय में साधारण समाज में यह भ्रान्ति फैली हुई है कि आक का पौधा विषैला होता है, यह मनुष्य को मार डालता है. इसमें किंचित सत्य जरूर है क्योंकि आयुर्वेद संहिताओं में भी इसकी गणना उपविषों में की गई है. यदि इसका सेवन अधिक मात्रा में कर लिया जाये तो, उल्दी दस्त होकर मनुष्य की मृत्यु हो सकती है. इसके विपरीत यदि आक का सेवन उचित मात्रा में, योग्य तरीके से, चतुर वैद्य की निगरानी में किया जाये तो अनेक रोगों में इससे बड़ा उपकार होता है.

आक में विष इसकी पत्तियों और दूध में अधिक होता है, अतः पत्तियों और दूध का प्रयोग बिना वैद्य की निगरानी अथवा सलाह के खाने या नाजुक अंगों पर लगाने से बचना चाहिए. जड़ का प्रयोग सावधानी के साथ किया जा सकता है.

तन्त्र जगत के जानकार कोई भी व्यक्ति आक या मदार को जरुर जानता है. इसका तन्त्र में महत्वपूर्ण प्रयोग है. इससे स्वयमेव श्वेतार्क गणपति की उत्पत्ति होती है, जो जीवन के समस्त अभाव, दुःख, कष्ट, परेशानी, असफलता समाप्त कर देता है, सुख-समृद्धि-शांति-सुरक्षा-सफलता देता है. इससे समस्त षट्कर्म आकर्षण-वशीकरण-मोहन-मारन-विद्वेषण-उच्चाटन-शान्ति-पुष्टि-कर्म किये जा सकते हैं.

यह साक्षात गणपति होता है और तुरंत प्रभावी भी. इसकी जड़ अनेक तंत्र प्रयोगों के काम आती है. धारण मात्र अभिचार मुक्त कर सुरक्षा प्रदान करता है सब प्रकार से.
अर्क, आक या मदार की तीन जातियाँ पाई जाती है-जो निम्न प्रकार है:

(१) रक्तार्क : इसके पुष्प बाहर से श्वेत रंग के छोटे कटोरीनुमा और भीतर लाल और बैंगनी रंग की चित्ती वाले होते हैं. इसमें दूध कम होता है.

(२) श्वेतार्क : इसका फूल लाल आक से कुछ बड़ा, हल्की पीली आभा लिये श्वेत करबीर पुष्प सदृश होता है. इसकी केशर भी बिल्कुल सफेद होती है. इसे ‘मंदार’ भी कहते हैं. यह प्रायः मन्दिरों में लगाया जाता है. इसमें दूध अधिक होता है. तंत्र प्रयोगों में इसका अत्यधिक महत्त्व है. इसकी जड़ को साक्षात गणपति का स्वरुप माना जाता है और इससे समस्त प्रकार के षट्कर्म सिद्ध होते हैं.

(३) राजार्क : इसमें एक ही टहनी होती है, जिस पर केवल चार पत्ते लगते है, इसके फूल चांदी के रंग जैसे होते हैं, यह बहुत दुर्लभ जाति है.

इसके अतिरिक्त आक की एक और जाति पाई जाती है. जिसमें पिस्तई रंग के फूल लगते हैं.
आक का हर अंग दवा है, हर भाग उपयोगी है. यह सूर्य के समान तीक्ष्ण तेजस्वी और पारे के समान उत्तम तथा दिव्य रसायनधर्मा हैं. कहीं-कहीं इसे ‘वानस्पतिक पारद’ भी कहा गया है.
१. आक के पीले पत्ते पर घी चुपड़ कर सेंक कर अर्क निचोड़ कर कान में डालने से आधा सर दर्द जाता रहता है. बहरापन दूर होता है. दाँतों और कान की पीड़ा शाँत हो जाती है.
२. आक के कोमल पत्ते मीठे तेल में जला कर अण्डकोश की सूजन पर बाँधने से सूजन दूर हो जाती है. तथा कडुवे तेल में पत्तों को जला कर गरमी के घाव पर लगाने से घाव अच्छा हो जाता है. एवं पत्तों पर कत्था चूना लगा कर पान समान खाने से दमा रोग दूर हो जाता है.
३. हरा पत्ता पीस कर लेप करने से सूजन पचक जाती है.
४. कोमल पत्तों के धुंएँ से बवासीर शाँत होती है.
५. कोमल पत्ते खाय तो ताप तिजारी रोग दूर हो जाता है.
६. आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है. सूजन दूर हो जाती है.
७. आक के फूल को जीरा, काली मिर्च के साथ बालक को देने से बालक की खाँसी दूर हो जाती है.
८. मदार के फल की रूई रूधिर बहने के स्थान पर रखने से रूधिर बहना बन्द हो जाता है.
९. आक का दूध लेकर उसमें काली मिर्च पीस कर भिगोवे फिर उसको प्रतिदिन प्रातः समय मासे भर खाय 9 दिन में कुत्ते का विष शाँत हो जाता है. परंतु कुत्ता काटने के दिन से ही खावे.
10. आक का दूध पाँव के अँगूठे पर लगाने से दुखती हुई आँख अच्छी हो जाती है. बवासीर के मस्सों पर लगाने से मस्से जाते रहते हैं. बर्रे काटे में लगाने से दर्द नहीं होता. चोट पर लगाने से चोट शाँत हो जाती है.
11. जहाँ के बाल उड गये हों वहाँ पर आक का दूध लगाने से बाल उग आते हैं. तलुओं पर लगाने से महिने भर में मृगी रोग दूर हो जाता है.
१२. आक के दूध का फाहा लगाने से मुँह का लक्वा सीधा हो जाता है.
१३. आक की छाल को पीस कर घी में भूने फिर चोट पर बाँधे तो चोट की सूजन दूर हो जाती है.
१४. आक की जड़ को दूध में औटा कर घी निकाले वह घी खाने से नहरूआँ रोग जाता रहता है.
१५. आक की जड़ को पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग अच्छा हो जाता है.
१६. आक की जड़ छाया में सुखा कर पीस लेवे और उसमें गुड मिलाकर खाने से शीत ज्वर शाँत हो जाता है.
१७. आक की जड़ 2 सेर लेकर उसको चार सेर पानी में पकावे जब आधा पानी रह जाय तब जड़ निकाल ले और पानी में 2 सेर गेहूँ छोडे जब जल नहीं रहे तब सुखा कर उन गेहूँओं का आटा पिसकर पावभर आटा की बाटी या रोटी बनाकर उसमें गुड और घी मिलाकर प्रतिदिन खाने से गठिया बाद दूर होती है. बहुत दिन की गठिया 21 दिन में अच्छी हो जाती है.
१८. आक की जड़ के चूर्ण में काली मिर्च पिस कर मिलावे और रत्ती -रत्ती भर की गोलियाँ बनाये इन गोलियों को खाने से खाँसी दूर होती है.
१९. आक की जड़ पानी में घीस कर लगाने से नाखूना रोग जाता रहता है.
२०. आक की जड़ के छाल के चूर्ण में अदरक का अर्क और काली मिर्च पीसकर मिलावे और 2-2 रत्ती भर की गोलियाँ बनावे इन गोलियों से हैजा रोग दूर होता है.
२१. आक की जड़ की राख में कडुआ तेल मिलाकर लगाने से खुजली अच्छी हो जाती है.
२२. आक की सूखी डँडी लेकर उसे एक तरफ से जलावे और दूसरी ओर से नाक द्वारा उसका धुंआ जोर से खींचे सर का दर्द तुरंत अच्छा हो जाता है.
२३. आक का पत्ता और ड्ण्ठल पानी में डाल रखे उसी पानी से आबद्स्त ले तो बवासीर अच्छी हो जाती है.
२४. आक की जड़ का चूर्ण गरम पानी के साथ सेवन करने से उपदंश (गर्मी) रोग अच्छा हो जाता है. उपदंश के घाव पर भी आक का चूर्ण छिडकना चाहिये. आक ही के काढ़े से घाव धोवे.
२५. आक की जड़ के लेप से बिगडा हुआ फोडा अच्छा हो जाता है.
२६. आक की जड़ की चूर्ण 1 माशा तक ठण्डे पानी के साथ खाने से प्लेग होने का भय नहीं रहता.
२७. आक की जड़ का चूर्ण दही के साथ खाने से स्त्री के प्रदर रोग दूर होता है.
२८. आक की जड़ का चूर्ण 1 तोला, पुराना गुड़ 4 तोला, दोनों की चने की बराबर गोली बनाकर खाने से कफ की खाँसी अच्छी हो जाती है.
२९. आक की जड़ पानी में घीस कर पिलाने से सर्प विष दूर होता है.
३०. आक की जड़ का धूँआ पीने से आतशक (सुजाक) रोग ठीक हो जाता है. इसमें बेसन की रोटी और घी खाना चाहिये. और नमक छोड देना चाहिये.
३१. आक की जड़ और पीपल की छाल का भष्म लगाने से नासूर अच्छा हो जाता है.
३२. आक की जड़ का चूर्ण का धूँआ पीकर उपर से बाद में दूध गुड पीने से श्वास बहुत जल्दी अच्छा हो जाता है.
३३. आक का दातून करने से दाँतों के रोग दूर होते हैं.
३४. आक की जड़ का चूर्ण 1 माशा तक खाने से शरीर का शोथ (सूजन) अच्छा हो जाता है.
३५. आक की जड़ 5 तोला, असगंध 5 तोला, बीजबंध 5 तोला, सबका चूर्ण कर गुलाब के जल में खरल कर सुखावे इस प्रकार 3 दिन गुलाब के अर्क में घोटे बाद में इसका 1 माशा चूर्ण शहद के साथ चाट कर उपर से दूध पीवे तो प्रमेह रोग जल्दी अच्छा हो जाता है.
३६. आक की जड़ की काडे में सुहागा भिगो कर आग पर फुला ले मात्रा 1 रत्ती 4 रत्ती तक यह 1 सेर दूध को पचा देता है. जिनको दूध नहीं पचता वे इसे सेवन कर दूध खूब हजम कर सकते हैं.
३७. आक की पत्ती और चौथाई सेंधा नमक एक में कूट कर हण्डी में रख कर कपरौटी आग में फूँक दे. बाद में निकाल कर चूर्ण कर शहद या पानी के साथ 1 माशा तक सेवन करने से खाँसी, दमा, प्लीहा रोग शाँत हो जाता है.
३८. आक का दूध लगाने से ऊँगलियों का सडना दूर होता है.
३९. आक की जड़ का चूर्ण गर्म और उत्तेजक होता है ,यह संतुलित मात्र में सेवन किया जाये तो बल पुष्टिकारक होता है.
४०. आक की जड़ को कानों पर रखने से पुराना बुखार उतरता है.

उपरोक्त जानकारी और चिकित्सकीय गुणों के साथ अगर आक या मदार के तन्त्र प्रयोगों और आध्यात्मिक-ईश्वरिय-दैविय गुणों को जोड़ दें तो हम पाते हैं की यह सामान्य सा दिखने वाला सर्वत्र उपेक्षित रूप से पाया जाने वाला पौधा हमारे लिए एक ईश्वरीय वरदान है ,जो हमारे समस्त कष्टों का हरण अपने अलुकिक शक्ति और गुणों से कर सकता है.बस हमें इस और ध्यान देने की जरूरत है.

नोट : हमारा करबद्ध अनुरोध है कि बिना सोचे समझे कोई भी प्रयोग केवल यह लेख पढ़कर न करने लगें, वैद्य की अवश्य सलाह लें. जहाँ खाने पीने की बात हो, कटने या घाव आदि पर लगाने की बात हो, नाजुक अंगों पर प्रयोग की बात हो. क्योकि आपकी जानकारी के लिए आक का दूध आँख में पड़ जाने पर व्यक्ति अंधा हो सकता है. अतः सावधानी और सलाह से ही प्रयोग करें.

यह लेख जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है. सीधे प्रयोग करने को प्रोत्साहित करने के लिए नहीं. यह अमृत भी है और विष भी!

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