नेता जी सुभाष चन्द्र बोस पर सारी बातें उनकी मौत से शुरू होती है. एक विलक्षण भारतीय राजनेता जिसने भारत को अपनी मौत में ही उलझा रखा है. लेकिन नेता जी की मौत या तथाकथित मौत, एक ऐसी अनबूझी पहेली है जिसने अब तक, 72 साल के बाद भी एक रहस्यमयी धुंध में सत्य को भारत की जनता से छुपा के रखा है.
इस धुंध के पीछे कुछ साफ़ न दिखने की दो वजह है.
एक यह कि हम में घटनाओं को तटस्थ हो कर देखने की प्रवृत्ति नहीं है. हम सब अपने-अपने ही विग्रह से लिपटे हुए अपने-अपने सत्य को गढ़ते है और फिर उस सत्य को खोजते है.
दूसरी सबसे ख़ास वजह यह है कि इतने सालों में हमें यह मालूम हो चुका है कि 40, 50, 60 और 70 के दशक में लिखा इतिहास बिलकुल भी ईमानदार नहीं था. शासक वर्ग के प्रश्रय में, शासक वर्ग और वामपंथ के चश्मे से लिखा हुआ इतिहास हम को अपनी ही सरकारों द्वारा सूचनाओं को गुप्त रखने की जरुरत पर अविश्वास का बोध दिलाता है.
जो इतिहास लिखा गया, जिसको पढ़ कर हम बड़े हुए, वो हमारी पीढ़ी के अंतिम पायदान पर चढ़ने तक झूठ का पुलिंदा लगने लगा. घटनाओं को शासक वर्ग (कांग्रेस) और अपनी विचारधारा (इतिहासकार) को अग्रसर करने हेतु उन घटनाओ को सत्य का लिबास पहनाया गया.
जो हुआ उसे तो लिखा गया लेकिन हूबहू नहीं लिखा गया. जो प्रिय था, वो सामने था और जो प्रिय बनाना था वो या तो अर्धसत्य का सहारा लेते हुए सत्य बना दिया गया या फिर झूठ को नए कलेवर में सत्य के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया गया.
मामला यही नहीं रुका, जो सत्य कड़वा था, जो सत्य आज के वर्तमान को अपनी ही नजरो में हीन बनाता था, उसे एक सिरे से ही या तो नकार दिया गया या फिर उसको मोटी मोटी पोथियों में चंद लाइनो में दफ़न कर दिया गया.
ऊपर कही गयी सभी बातों को लिखने के पीछे मेरा सिर्फ एक ही मकसद है और वह यह कि हम सब लोग यह याद रखें कि इसी पृष्ठभूमि में ही हम सबने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथ गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाना है.
यदि किसी को नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की मौत पर 72 साल से पड़ी धुंध को हटाना है तो सबसे पहले शुरुआत हमें शुरू से करनी होगी. हमको 20 वी शताब्दी के उत्तरार्ध में जाना होगा और इस यात्रा की शुरुआत वहीं से करनी होगी.
हमको यह देखना होगा नेता जी का उदय कहाँ से हुआ? उनके समकालीन कौन थे? और फिर क्यों और 1940 के आते-आते क्या हुआ जिससे गांधी, नेहरू और पटेल से वो अलग थलग पड़ गए?
इन सबको देखने और समझने से पहले यह भी ध्यान देना होगा कि हमको उस काल के हिसाब से आंकलन और अन्वेषण करना होगा. हमे आज के वैचारिक चश्मे और आज के पूर्वाग्रहों को तिलांजलि देनी होगी. यह यात्रा सिर्फ आपकी नहीं है यह मेरी भी है यह भारत एक खोज नहीं है यह मृत्यु के जन्म की खोज है.
क्रमशः 3