हमारी यात्रा शुरू हुई थी आकर्षण के अतल से
जाकर रुकी थी विस्मरण के वितल तक
और सुतल में सुप्त होकर गुज़ार दिए थे तीन जन्म अकेले…
चौथे जन्म में तकरार के तलातल से आगे बढ़े थे हम
और पांचवे में पहुंचे थे मोह के महातल तक…
छठे में तुम मुझे रसों के रसातल में डुबो ले गए थे
सातवें में मैंने पाताल तक प्रेम का फूल खिला दिया….
मेरा प्रेम गुरुत्वाकर्षण जैसा है
कि अंतरिक्ष में लटके हुए भी जो गिरने नहीं देता..
पैर जमे रहते हैं धरती के सात तलों में
सात जन्मों की यादों की तरह…
आओ सूरज ने खोल दिए हैं सातों घोड़े
कि जिस पर सवार होकर हम ढूंढ लाएं
सात तालों में बंद पड़ी
उस रहस्य की चाभी
जो बता दें
कि पहले जन्म के पहले हम कहाँ थे…..
क्रमश:….
– शैफाली