शाहजहां-औरंगज़ेब तो नहीं कादर खान-शक्ति कपूर की मशहूर फिल्म आती है याद

नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दामाद जैरेड कुशगर को अपना ‘सीनियर सलाहकार’ नियुक्त किया है… जबकि भाई भतीजावाद/ वंशवाद को रोकने के लिये 1967 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन ने ‘नेपोटिज्म लॉ’ बनाया था.

इस क़ानून के द्वारा 15 तरह के रिश्तेदारों की नियुक्ति पर रोक लगाई गयी थी… लेकिन इस कानून से बचने के लिये विशेषज्ञों की सलाह लेकर नियुक्ति की जा रही है ताकि मंजूरी के लिये ‘सीनेट’ की जरूरत न पड़े…

धुर अमेरिका विरोधी साम्यवादी राष्ट्र क्यूबा में भी फिदेल कास्त्रो के बाद उनके भाई राउल कास्त्रो राष्ट्रपति बनाये गये… दूसरे अमेरिका विरोधी राष्ट्र उत्तर कोरिया में भी ‘किम जोंग इल’ के बाद उनके बेटे ‘किम जोंग उन’ को दिसम्बर 2011 में नया राष्ट्रपति बनाया गया…

वंशवाद आधुनिक राजनीति का सच बन गया है… भारत में भी सभी दल पूर्ण या आंशिक रूप से इससे ग्रस्त है… कांग्रेस के नेहरू से लेकर DMK के करुणानिधि तक और RJD के लालू से लेकर शिवसेना के बाल ठाकरे तक… अकाली दल, पीडीपी से लेकर नेशनल कॉंफ्रेस तक राजनीतिक दल के रूप में वंशवाद की दुकान चल रही है…

पर इस वंशवादी सिद्धांत से इतर इटली के विचारक ‘मेकियावेली’ ने अपने ग्रंथ ‘The Prince’ जो 1532 में उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ था, में लिखा है…

“मनुष्य तब तक ही किसी का सम्मान या प्रेम करता है जब तक उसका स्वार्थ पूरा होता है… मनुष्य अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिये अपने पिता का वध करने में भी संकोच नही करता।”

मुलायम-अखिलेश अभी शायद इस दौर से ही गुजर रहे है… अनेक राजनीतिक विचारक इसे ‘शाहजहां-औरंगजेब’ का यादवी संस्करण बता रहे है…

वैसे मुलायम-अखिलेश या शाहजहां-औरंगजेब का राजसत्ता पर कब्जा करने के लिये यह कोई पहला या आखिरी पारिवारिक संघर्ष नही है… इतिहास के अलग-अलग काल में पिता पुत्र के संघर्ष जारी होते रहे हैं…

ज्ञात इतिहास में पहला संघर्ष बिम्बिसार-अजातशत्रु के बीच हुआ… बिम्बिसार 14 साल की आयु में 544 ई पू. में मगध का शासक बना… इसने अनेक राज्यों को जीता…

इसके राज्य में 80 हजार नगर थे… किंतु 492 ई पू. में उसके पुत्र अजातशत्रु ने बिम्बिसार की हत्या कर राज्य पर अपना कब्जा कर लिया।

अजातशत्रु ने वैशाली के लिच्छवियों से 16 साल तक युद्ध लड़ा… अंत में मगध विजेता बना… पर जैसी कहावत है कि जो जैसा बोता है वैसा ही काटता है…

अजातशत्रु इसका सबसे बड़ा उदाहरण है… अजातशत्रु के पुत्र उदायिन ने 462 ई पू. में अपने पिता की हत्या कर राज्य पर अपना कब्जा कर लिया।

मध्यकाल में आरामशाह-इल्तुतमिश से परिवारिक संघर्ष की शुरूआत हुई… कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के बाद उसका पुत्र आरामशाह 1210 मे लाहौर का सुल्तान बना…

पर राजकाज चलाने में असफल होने के कारण इल्तुतमिश, जो आरामशाह का जीजा और कुतुबुद्दीन का दामाद था, ने आरामशाह की हत्या कर सत्ता पर कब्जा कर लिया।

जलालुद्दीन खिलजी भारत मे ‘खिलजी वंश’ का संस्थापक था… इसकी राजधानी किलाबूरी थी…

अलाउद्दीन के पिता की मृत्यु होने के कारण जलालुद्दीन ने ही अलाउद्दीन का लालन-पालन किया… तलवारबाजी, घुड़सवारी सिखाई…

उसकी सैनिक प्रतिभा से खुश होकर उसने अपनी पुत्री का विवाह कर उसे दामाद बना लिया… पर सत्ता लोभ के लिये 1296 मे इस भतीजे/ दामाद ने अपने ससुर/ चाचा से गले मिलने के बहाने छल से सर काटकर हत्या कर दी।

आधुनिक इतिहास में सबसे कुख्यात संघर्ष शाहजहां-औरंगज़ेब में हुआ… शाहजहां 1628 में मुगल बादशाह बना… दिल्ली का लाल किला और आगरे का ताजमहल इसने ही बनवाये…

इसके पुत्र औरंगज़ेब ने अपने सभी भाईयो की हत्या कर शाहजहां को बंदी बना लिया… ताजमहल के सामने यमुना पार बने किले से ताजमहल को देखते हुए शाहजहां ने दुनिया से विदा ली।

इनके अलावा अशोक और चंद्रगुप्त ने अपने पिता की तो नही की परंतु अपने भाईयों की हत्या कर अपनी राजसत्ता कायम की।

मुलायम-अखिलेश, रामगोपाल, शिवपाल के पारिवारिक सियासी संघर्ष को हम इसी परम्परा की अगली कड़ी मान सकते है…

पर इस परिवारिक संघर्ष के मुख्य पात्र मुलायम-अखिलेश जिस तरह से रोज़ सुर बदल रहे है और मुलायम जिस तरह अखिलेश के पक्ष में बयानबाजी कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि यह शाहजहां-औरंगज़ेब संघर्ष का यादवी संस्करण न होकर कादर खान-शक्ति कपूर की एक मशहूर हिंदी फिल्म के भोजपुरी संस्करण से अधिक कुछ नहीं है.

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