डॉक्टर्स के सिक्योरिटी फंड का हिस्सा तो नहीं आप!

‘डॉक्टर साहब, मेरी बहू को पिछले दस-पंद्रह दिनों से बुखार आ रहा है और भूख बिलकुल नहीं लगती, दिन भर सुस्त पड़ी रहती है. इसको दवा गर्म ना लिखियेगा, ढाई महीने चढ़े हुये हैं.’ लड़की के साथ आई अधेड़ महिला, जो शायद उसकी सास थी, ने बताया.

लड़की की उम्र सोलह-सत्रह से अधिक नहीं थी, चेहरा एकदम निस्तेज, आंखें पीली और वजन सिर्फ अड़तीस किलो.

‘इतनी कम उम्र में मां बनने वाली है. इसके खाने पीने पर ध्यान दीजिये. मैं पैथालॉजी से किसी को बुला रहा हूं, वह इसका खून जांच के लिये ले जायेगा. तब तक मैं कुछ दवा लिख रहा हूं. समय-समय पर देती रहियेगा और हां इंजेक्शन अभी लगवा लेना.’

उन दोनों के जाने के लगभग दो घंटे बाद सात-आठ बाइक और एक ऑटो क्लीनिक के बाहर धड़धड़ाते हुये रुके और एक युवक ऑटो रिक्शा से उसी लड़की को गोद में उठाये अंदर लाकर लिटा कर तीखे स्वर में बोला – ‘कैसा इंजेक्शन लगा दिया इसको, तब से इसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है?’

तब तक साथ आये युवक भी अंदर आ गये.

‘अगर बीमारी समझ में ना आई थी तो साफ इंकार कर देते. हम किसी और को दिखा लेते.’

‘डाक्साब अगर हमारी भौजी को कुछ हो गया तो समझ लो तुम्हारी खैर नहीं.’

‘अरे अच्छी भली चल कर आई थी, ना जाने कैसा इंजेक्शन लगाया जो रोशनी चली गई, इसकी डिग्री चेक करो कहीं फर्जी तो नहीं.’

‘इसको तो उठा ले चलो भैसों वाले तबेले में बंद कर दो, जब तक भौजी की रोशनी वापस ना आये छोड़ना मत.’

‘अरे भाई आप लोग ऐसे ही बोलते रहेंगे, मुझे कुछ करने देंगे कि नहीं’, मैंने बिगड़े माहौल के अनुरूप नम्रता से कहा.

‘अरे तुम्हारे कुछ करने का अंजाम तो देख लिया. अब क्या भाभी को ऊपर पहुंचाओगे.’

‘ऐसे ही हमारी चच्ची को डाक्टर ने गलत इंजेक्शन लगा दिया था. उनकी भी आखों की रोशनी चली गई थी. फिर अलीगढ़ में इलाज कराया. साठ हजार पूरे लगे तब उनकी तीन महीने में रोशनी आई.’

‘साठ नहीं भइया, अस्सी हजार से ऊपर ही खर्च हुआ. आने-जाने, रहने-खाने का तो तूने जोड़ा ही नहीं. सात बार तो बुलेरो बुक करा कर ले गये चच्ची को अलीगढ़.’

‘भौजी तो वैसे ही पेट से हैं. इनको तो इनोवा में ले जाना होगा हर बार, बुलेरो में झटके बहुत लगते हैं ना.’

मैं उन जाल बुन रहीं मकड़ियों के इरादे स्पष्ट भांप चुका था. मैं इनकी शर्त मान लूं तो अस्सी नहीं तो भी चालीस-पचास हजार का चूना तो लगेगा ही अन्यथा कोर्ट कचहरी की तारीखों में समय भी खराब होगा और पैसा भी.

‘अरे आप सब यह पंचायत बाद में करना… पहले मुझे उसको देखने तो दीजिये’, मैंने लास्ट ट्राई मारा.

उनमें से अधेड़ उम्र का व्यक्ति जो संभवतः उस लड़की का श्वसुर था और इन सब दांव पेंचों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, तुरंत बोला – ‘आप ही देखो डाक्साब, आपने ही इंजेक्शन लगाया आप ही उसकी काट जानते होंगे. हम इधर-उधर तभी जायेंगे जब आप कहोगे.’

अन्य युवक ,जो मन ही मन सैर सपाटे का प्रोग्राम बनाये हुये थे, सबकी बोलती बंद हो गई उस व्यक्ति की बात सुन कर.

मैं इस लड़की के पास पहुंचा तो सब इधर उधर हट गये. मैंने बीपी. पल्स देखा… सब ठीक था. फिर मैंने टार्च की रोशनी उसकी आखों पर डाली, रिफ्लेक्शन एक्युरेट थे.

यह केस तो इश्चेमिक ऑप्टिक न्यूरोपैथी का था. ऑप्टिक नर्व को ब्लड सप्लाइ और न्यूट्रियेंट सप्लाइ ना होने से सडन विज़न लॉस हुआ था.

बताते चलें कि ऑप्टिक नर्व ही आंख द्वारा देखे गये चित्र संदेश को ब्रेन तक पहुंचाती है. और इस केस में लड़की के कुपोषित होने से यह स्थिति आई.

मैंने एक फास्ट सलाइन उसको लगा दी और उसके फोरहेड और आसपास के हिस्से को उंगलियो से मसाज करने लगा. दस बारह मिनट में ही वह स्ट्रोक से उबर गई और उठ कर बैठ गई – ‘अब मुझे सब कुछ दिखने लगा है, मैं आप सब को साफ-साफ देख रही हूं.’

मेरे चेहरे पर संतोष की मुस्कान थी. इनोवा बुक कर अलीगढ़ तफरीह करने के सपने देखने वाले एक-एक कर क्लीनिक के बाहर बाइक स्टार्ट कर रहे थे.

अब इस पूरी घटना को इस नज़र से भी देखिये –

आप सभी को शिकायत रहती है कि डॉक्टर्स अनावश्यक टेस्ट, अल्ट्रासाउंड सीटी स्कैन वगैरह अपने कमीशन के चलते लिखते हैं…

तो भइये ये उनका सिक्योरिटी फंड है ऐसी घटनाओं से निबटने के लिये. भला कौन अपनी पसीने की गाढ़ी कमाई से ऐसे लोगों को पैसे दे सकता है?

और ऐसे लोग हमारे समाज से ही हैं जो डॉक्टर्स की ज़रा सी मानवीय भूल को तिल का ताड़ बना कर उनका दोहन करते हैं. आप उनका ना तो तिरस्कार करते हैं, ना ही उनका बहिष्कार.

और रोज सुबह अखबार में फलाने डॉक्टर को अस्पताल में घुस कर भीड़ ने पीटा, डॉक्टर के खिलाफ मरीज से यौन दुर्व्यवहार की रिपोर्ट दर्ज जैसी खबरों पर, ‘वाह मज़ा आ गया’ जैसी प्रतिक्रियायें देते हैं तो इस सिक्योरिटी फंड में आपका भी हिस्सा बन जाता है.

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