बाबर के साथ इस देश में न्याय नहीं हुआ!

“बाबर के साथ न्याय नहीं हुआ!” यह सुन कर मेरा चौकना स्वाभाविक था. नजर ऊपर की तो पाया कि सामने बैठे एक सज्जन अपने बगल में बैठे मित्रों में ज्ञान बांट रहे थे.

पुस्तक मेले के एक प्रकाशक के लेखक कॉर्नर में वो बैठे हैं तो मतलब कोई लेखक ही होंगे. और रहा सहा शक भी दूर हुआ जब उनकी आगे बात सुनी.

“… आजकल बाबर पर काम कर रहा हूँ. अकबर महान पर तो हिंदुस्तान में बहुत लिखा गया, फिल्म तक बनी, क्या शानदार फिल्म बनाई…. मगर बाबर एक ऐसा शासक है जो अब तक अछूता है और बेवजह हम हिंदुओं की नफरत का शिकार हुआ, जबकि उसने कभी किसी पर बेवजह अत्यचार नही किया.”

लेखक महोदय कहते रहे, “वैसे उसकी कहानी भी बड़ी रोचक है… मध्य एशिया में अपने पिता की गद्दी पर वो मात्र 12-13 साल की उम्र में बैठा दिया गया था, मगर रिश्तेदारों के षड्यंत्र को देख कर उसके वफादारों ने उसे वहाँ से निकल जाने की सलाह दी

जिसके कारण वो वहाँ से निकला और हिंदकुश की बर्फीली पहाड़ियों से निकल कर अफगानिस्तान होते हुए भारत आ गया और यहाँ का बादशाह बन बैठा जबकि अगर वो अपनी जमीन पर ही रहता तो शायद आराम से शांति में शायरी करता. उसमें कला की समझ थी. वैसे उसने जो कुछ भी बाबरनामा और इधर-उधर लिखा, उसमें कई जगह मानवीय पक्ष नजर आता है…”

मुझ से रहा नही जा रहा था, जबकि उसके मित्र वाह वाह में लगे थे. जब खुद को नही रोक पाया तो मैंने एक सवाल अचानक बीच में पूछ ही लिया, “वैसे ये बाबरी मस्जिद, वो चाहे जैसे बनी हो, अयोध्या में ही क्यों बनायी गयी? इस पर भी आप कुछ विचार कीजियेगा.”

बिना इजाजत, बिना जानपहचान के जबरन सवाल पूछने की गुस्ताखी तो मैं कर ही चुका था और उनकी मंडली में बह रही ज्ञान की अविरल धारा में अचानक रुकावट क्या आयी, उन्होंने गुस्से में मेरी ओर देख कर कहा,

“क्या मतलब? बादशाह हैं, जहां चाहे, जो चाहे बना या बनवा सकते हैं.”

“हाँ वो तो है, मगर आप इतना अध्ययन कर रहे हैं तो मेरे इस सवाल पर भी गौर कीजियेगा कि अयोध्या में ही क्यों?”

और उसके बाद उन्होंने बिना कुछ कहे जिस तरह से मुझे घूरा मैं समझ सकता था. क्योंकि उसके तुरंत बाद उनके बीच चर्चा का विषय ही बदल गया था और इस बात पर जोर था कि यूपी के चुनाव में साम्रदायिक शक्तियों को हराना है. जो मुझे देख कर कहा जा रहा था, मानो मैं साम्प्रदायिकता का सबसे बड़ा सरगना हूँ.

मुझे उनकी बातों में अब कोई दिलचस्पी नही थी. इन जैसो की बौद्धिक मूर्खता का ही नतीजा था कि भारत सैकड़ों वर्षो तक गुलाम रहा और आजादी के इतने सालों बाद तक भी कौन और कैसे राज करता रहा, इन बौद्धिक मूर्खों को पता ही नही चला.

यह सेक्युलर ब्रिगेड है जिसने हमेशा हिंदुस्तान के खिलाफ बौद्धिक युद्ध लड़ा और इनकी इन्हीं बातों में आकर क्या उत्तर प्रदेश, क्या बिहार बंगाल अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारते आ रहे हैं.

बहरहाल मैं भी कहा आसानी से मानने वाला था, उस वक्त मजा लेने के मूड में भी था, अपना मोबाइल जेब से निकाला और झूठ मूठ की कॉल कर के फोन पर जोर से किसी काल्पनिक को कहने लगा कि,

“आज एक नई और महत्वपूर्ण बात पता चली कि जिस तरह से देश को ग़ांधी ने अंग्रेजों से अहिंसा के द्वारा आजादी दिलाई, ठीक उसी तरह बाबर ने शायरी सुना-सुना कर देश पर शासन किया.”

मैंने इस फ़र्ज़ी फोन कॉल पर आगे कहा, “उन दिनों गंगा जमुनी धारा इतनी तेज बहती थी कि अयोध्या में हिंदुओं ने अपने हाथ से मस्जिद बनाई थी, वो भी जय श्री राम बोल बोल कर… और हां बाबर से लेकर औरंगजेब, सब सेक्युलर थे, एकदम कट्टर, जैसे कि अंग्रेज, फिर नेहरू और आगे की सूची के नाम तो तुम जानते ही हो, लिस्ट लंबी है…”

मैं उनके चेहरे पर आ-जा रहे भावों को पढ़ रहा था और समझने की कोशिश में था जो मेरे लेखन में आगे काम आने वाली थी.

हाँ, कुछ एक गुत्थियां तुरन्त सुलझ रही थी कि क्यों राणा सांगा की सेना दोगुनी से भी अधिक होने के बाद भी बाबर से हारी, जिन्होंने राणा को धोखा दिया उनकी क्या मानसिकता रही होगी.

मुझे इस बात का भी जवाब उनके चेहरे पर ही मिल गया कि बाबर के परदादा तैमूर और उस जैसे ना जाने अनगिनत लुटेरे, क्यों और कैसे आसानी से हिंदुस्तान में जब चाहे तब आ कर लूटपाट मचा कर आसानी से चले जाते थे. वही लूटपाट अगर आज भी जारी है, तो क्यों और कैसे?

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