फरवरी में पापा की मौत की खबर आई …..
कार्डियोग्राम पर बनी धड़कनों के ग्राफ को देखा है न…
रेखा सीधी हो गयी जैसे….. वैसे ही जैसे मेरे भाव…. न एक स्पंदन ज्यादा ना एक कसक कम…
छाती में पानी हिलौर मार रहा था लेकिन आँखों पर बाँध बना लिया… पानी बहा दिया तो बिजली कहाँ से बनाओगी शैफाली…..
शादी के चार साल बाद गुनाह न होते हुए भी कबूल कर लिया था… अपने ही तो है… पैरों पर गिर पड़ोगी तो भी घर की छोटी हो तो छोटी ही रहोगी ना…
जाते से ही पापा के पैरों पर गिर पड़ी थी… माँ के चेहरे से हैरत टपक रही थी मेरी आँखों से बेतहाशा आंसू…. पापा ने गले लगा लिया था… अपनी जेब में हमेशा रखे हुए मेरे फोटो को दिखाते रहे…
भाई को छूने गयी तो उसी तरह से झटक दी गयी जैसे शादी के तुरंत बाद पहली बार पिता को उनके जन्मदिन पर कुरियर से भेजा फूलों का गुलदस्ता और माफी माँगता हुआ ख़त दरवाजे से ही लौटा दिया गया था…
माँ के जन्मदिन पर अपनी फोटो फ्रेम में जड़कर यूं भेजी थी जैसे ममता को स्थूल रूप देकर आंसुओं से जड़कर दे रही हूँ…. नहीं पता उस फोटो का क्या हुआ…. लेकिन माँ ने देह में जड़े मेरे स्पर्श को भी नोंच फेंका था… उन्हें जब भी छुआ लगा बेटे के भय में जड़ हो गयी किसी पत्थर की मूरत को छू रही हूँ….
फिर कई सालों तक नहीं गयी… बस परिवार में किसी की मौत की खबर आती तो “अंतिम दर्शन” करने चली जाती… घर की एक बुज़ुर्ग की मौत पर गयी थी… पापा बाजू के कमरे में पलंग पर आँख बंद किये लेटे थे…. मैंने उन मृत बुज़ुर्ग के पास नहीं गयी… पहले पापा के पास बैठ गयी… उनका हाथ धीरे से पकड़ा… और आँखों का बाँध टूट पड़ा… पापा ने आँखें खोली… कुछ नहीं बोले… बस हम दोनों के आंसू बोलते रहे….. हम क्यों नहीं मिल सकते पापा… किससे डरता है मेरा शेर…. अपने ही पाले हुए लोगों से, उनसे जो आपसे आँखें मिलाने में डरते थे !!!
इतनी तड़प और इतनी कसक… फिर कैसी मजबूरी है ये? उनके पास कोई जवाब नहीं था…
मैं लौट आई यह कहते हुए कि अब किसी की मौत पर अंतिम दर्शन करने नहीं आऊँगी…. अपना ही बोला हुआ सामने खड़ा था…. इसलिए पापा के अंतिम दर्शन पर भी नहीं गयी…
क्योंकि उनके पास तीन तीन बेटे थे… जिन पर कभी उन्हें फक्र हुआ करता था…
मैं जानती हूँ “है” कब “था” में बदल गया उन्हें खुद भी पता नहीं चला… लेकिन मुझे हर बार पता चल जाता था… जब वो सबसे छुपकर मुझसे फोन पर बात करते थे…. तब भी पता चला था… जब उनकी ज़ुबान साथ छोड़ गयी थी लेकिन फोन पर उनका दुःख मुझ तक पहुँचता था….
मैं जानती थी पापा की याददाश्त साथ नहीं देती थी… फिर भी मुझसे बात करने के लिए घर से अकेले निकल पड़ते थे… मैं ऐसे समझाती थी जैसे किसी छोटे बच्चे को समझाया जाता है… पापा मैं हूँ ना हमेशा आपके साथ.. आप ऐसे अकेले मत निकला करो घर से… आप जब कहोगे मैं आपको लेने आ जाऊंगी… सबसे छीन कर ले जाऊंगी…. वो नहीं मानते थे और फिर पिछले साल खबर मिली थी ऐसे ही अकेले घर से निकले थे और एक्सीडेंट हो गया… दौड़कर इंदौर गयी थी….
एक घंटे की मुलाक़ात में जीवन भर की बातें करके आ गयी थी…. अंग्रेज़ी में… उन्हें बहुत अच्छा लगता था अंग्रेज़ी बोलना… मोतीतबेला की गलियों से शहर के पोश इलाके में रहने आये भौतिक शास्त्र के प्रोफ़ेसर को अपनी यात्रा के बारे में बताया- पापा, लोग बहुत सम्मान देने लगे हैं… “माँ” कहते हैं मुझको… पापा… आपकी बेटी बहुत ऊपर की यात्रा कर चुकी है…. चलो मेरे साथ…
उनका पूरा शरीर दर्द से भरा था… उनकी तीमारदारी की जा रही थी…. ये हैं उनके रिश्ते… शरीर के दर्द की तीमारदारी कर रहे थे… और आत्मा को कुरेद कुरेद कर लहू लुहान….
वो अंत तक मुझे पुकारते रहे…. किसी का दिल नहीं पसीजा….. फिर खबर आई … चले गए वो…. आओ अंतिम दर्शन करने…. मैं हंस दी … मूर्खों किसके अंतिम दर्शन को जा रहे हो…. जिसके प्यासे हलक में पानी की दो बूँद नहीं डाल सके… मरते हुए जो शरीर इतना असहाय हो गया था कि किसी से यह तक नहीं कह सका कि उसे दो बूँद पानी चाहिए….
मौत की खबर मिलने के अगले दिन कम्प्युटर टेबल पर रखा पानी का लोटा अचानक हवा में उठ गया… स्वामी ध्यान विनय ने लोटा वापस लेते हुए कहा ये नहीं ये मेरा जूठा है…. मैं कमरे में लेटी थी, ध्यान मेरे पास आये कहा एक ग्लास पानी भरकर डायनिंग टेबल पर रख दो….
रात बेरात उनके ऐसे किसी आदेश को मैं समझ जाती हूँ… एक ग्लास भर कर रख दिया…. सुबह उठकर देखा ग्लास आधा खाली था…. ध्यान ने कहा… वो पानी के लिए तरसते हुए ज़रूर गए हैं लेकिन स्थूल रूप से पानी कम होना अचंभित करता है…
मैंने कहा… आपके जैसी सिद्धि तो पाई नहीं है मैंने .. मैं तो सूक्ष्म काया के परिवर्तनों को भी स्थूल में खोजती हूँ ना… मेरी तसल्ली के लिए पापा इतना तो करेंगे ही…
उस दिन उनकी देह का दाह संस्कार हुआ…. जो शरीर जीवन भर मेरी जुदाई में जलता रहा… तुम लोग उसको और जला आये…. दो बूँद प्रेम का छिट्टा दे दिया होता तो वो आज तरसते हुए यूं मेरे पास नहीं होते…
– शैफाली टोपीवाला