कानपुर से एक बुज़ुर्ग पत्रकार हैं. मेरी मित्रता सूची में भी हैं. उनकी लेखनी से स्पष्ट समझा जा सकता है कि ये कॉमरेड हैं, साथ ही प्रो कांग्रेसी.
ख़ैर कामरेड होना या कांग्रेसी होना मेरे लिए विरोध करने का कभी कारण नहीं रहा, ना ही हो सकता है. मैं विचारों पर प्रतिक्रिया देता हूँ. कई बार कोई कॉमरेड यदि कुछ सही बात करता है तो समर्थन कर आता हूँ.
सो जानिये कई बार XYZ शुक्ल जी की पोस्ट मुझे अच्छी लगतीं हैं क्योंकि उनमें कुछ ना कुछ जानकारी होती है, अच्छी भी और विचारधारा के विपरीत भी, पर बिना आपा खोए उसे तथ्यों पर परखता हूँ तब जाकर कोई राय बनाता और प्रतिक्रिया देता हूँ.
तो बात ये है कि शुक्ला जी ने कल एक पोस्ट लगाई थी कि कान्यकुब्ज… सॉरी… ‘कुलीन’ कान्यकुब्ज ब्राह्मण मकर संक्रांति के दूसरे रोज़ सकठ चौथ के अवसर पर बकरा काटा करते थे….
अब इन्होंने लिख तो दिया पर जैसे ही हम इनकी पोस्ट पर गए कि महाराज बकरा काटा जाता था… चलिए मान लेते हैं, पर कोई कालखण्ड तो होगा? और किस स्थान विशेष में ये कुप्रथा थी ये भी बताइये…. कोई साक्ष्य या प्रमाण हो तो बताएँ… बस किसी कामरेड किताब का हवाला ना दीजियेगा बाकी हम चेक कर लेंगे क्योंकि हम भी कान्यकुब्ज़ ब्राह्मण हैं, और पिछली 5-7 पीढ़ियों का तो पता ही है कि हमारे यहाँ कहीं दूर-दूर तक बकरा नहीं काटा जाता था…
उत्तर में महाराज ने सिर्फ इतना कहा कि ‘कुलीन’ कान्यकुब्जों के यहाँ ही ऐसी प्रथा थी…
यानी अब हमारे यहाँ बकरे की घिंचिया (गर्दन) नहीं काटी जाती थी, तो हम या तो दोयम दर्ज़े के कान्यकुब्ज हुए या फिर इनकी हाँ में हाँ मिलाकर अपनी इज़्ज़त बताते फिरते….
हमने कहा, चलिए शुक्ला जी हम कुलीन कान्यकुब्ज ना सही… पर आप अब साक्ष्य दीजिये और कालखण्ड बताइये नहीं तो आपका अल्लाह ही मालिक है… (बड़े आदर पूर्वक)
कई घण्टों तक इंतज़ार करता रहा, अभी कुछ देर पहले उनकी वॉल पर गया तो देखा वो पोस्ट ही नदारद है….
आप उनकी मंशा समझ सकते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों लिखा रहा होगा? यदि वो सच होता तो साक्ष्य देने में क्या आपत्ति थी, पर इनके पास कोई ठोस तर्क या तथ्य हो तब ना?
बेचारे पोस्ट हटाकर अपनी विद्वता का परिचय दे गए…. अब इनकी बुजुर्गियत का ही ख़याल है कि मैं इतने अच्छे शब्दों में पोस्ट लिख रहा हूँ, नहीं तो शुक्ला जी की कसम… मैं उन्हें I Love you ज़रूर कहता… हालाँकि उन्होंने पोस्ट हटाकर एक तरह मुझे सही ही साबित किया.
पर इतना अवश्य कहूँगा, अरे चचा कम से कम अपने कहे पे अडिग तो रहा कीजिये, यूँ पीठ दिखाना ‘किरान्तिवीरों’ को शोभा नहीं देता… स्वीकार कर लीजिए कि आप केवल झूठ और अनर्गल ही प्रलापते हैं.
बाकी सब जानते ही हैं कि कामरेड हैं तो ऐसे ही होंगे…. ऐसा लिखा कीजिये जिससे चैन से बुढापा कट जाए…. ठरक इस उम्र में शोभा नहीं देती.