एक बार चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य आखेट हेतु वन गमन पर थे. दैववश वे अपने सहायकों से अलग हो गए. विशाल वन के किसी अनजान छोर पर उन्हें मार्ग पर एक सांप दिखा जो “उल्टा” चल रहा था मतलब सर से पूंछ की तरफ. राजा को देख वह अत्यंत ही दारुन्य अवस्था में राजा से बोला-
“राजन मैं एक दुर्धुष रोग से अत्यंत ही पीड़ित हूँ. मेरी सहायता करें. मै आपका शरणागत हूँ.
राजा द्रवित हो गए जैसा कि हिन्दू राजाओं के DNA में है. पूछा क्या उपचार है इसका.
सर्प बोला,” राजन किसी स्वस्थ व्यक्ति के उदर मे यदि मुझे 4 महीने शरण मिले तो मैं स्वस्थ हो सकता हूँ अन्यथा कोई और उपाय नहीं है जीवन का.
राजा ने परोपकार के महत्व का स्मरण कर सर्प को अपने उदर में शरण दे दी.
वन से निकलते ही राजा एक अनजान राज्य के अनजान नगर में आ पहुंचे. उदरस्थ सर्प के प्रभाव से राजा रुग्ण हो गए और शक्तिहीन होकर एक चोराहे पर गिर पड़े.
दैवयोग से तभी एक दण्डित युवती को उसके पिता द्वारा उसी चोराहे पर लाया गया और सजा के रूप में उस रुग्ण भिखारी से दिख रहे राजा से उसका विवाह करवा दिया गया.
युवती अपने पति राजा को लेकर एक खंडहर में रुकी और अपने पति को शारीरिक रूप से पुष्ट करने का प्रयास करने लगी. कुछ पारिश्रमिक भी वह लाती और खंडहर में छुपा देती.
कई दिन हो गए युवती के प्रयास को लेकिन राजा की तबियत और बिगड़ती चली गई, साथ ही रोज ही छुपाया हुआ परिश्रमिक भी चोरी हो जाता. युवती परेशान हो गई.
रोज मंदिर जाने लगी. एक दिन थोड़ा जल्दी ही अचानक अपने खंडहर आ गई. दो लोगों की आवाज़ आती देख वह ओट से छुप कर देखने लगी कि एक बिल से एक विशाल काला सर्प राजा के पास आकर एक सांप को बुरा भला कह रहा था.
“अरे दुष्ट वाम मार्गी सर्प बाहर निकल, क्यों इस तरुण सुदर्शन व्यक्ति का शरीर नष्ट कर रहा है इसके उदर में स्थित होकर. इसने तुझे आश्रय दिया और तू उसे ही निगल रहा है दुष्ट.”
ये सब सुनकर अचानक राजा के मुंह से एक विशाल हरा सर्प बाहर आया पहले पूंछ फिर सिर, बाहर आकर उल्टा चलता हुआ उस काले नाग पर प्रतिप्रहार करने लगा.
“अरे महाधूर्त काले नाग तू तो और भी निकृष्ट है जो अथाह धन पर बैठ कर रोज इस पुरुष की स्त्री द्वारा अर्जित किये हुए धन को निगल जाता है. स्त्री का कमाया धन चुराता है पापी.”
दोनों एक दूसरे पर लगातार आरोप लगा रहे थे कि अचानक कालनाग बोला,” क्या कोई नहीं जानता कि छाछ को गर्म करके उसमें कटु नीम के नरम पत्ते डाल कर इस व्यक्ति को पिलाया जाए तो तू इसके शरीर से बाहर आकर मृत्यु को प्राप्त हो जाए.
यह सुनकर वामी सर्प बोला कि यह भी सभी जानते हैं सरसों के तेल को गर्म करके उसमें कर्पूर डाल कर तेरे बिल में डाल दिया जाए तो तू भी तत्काल अपने गिरोह के साथ मारा जायेगा और सारा धन उस व्यक्ति को सिद्ध हो जायेगा.
युवती ने दोनों की बात सुन ली.वह अत्यंत हर्षित हुई. फटाफट बाजार से सभी सामान लाकर उसने राजा को छाछ पिला दी कुछ ही देर मे राजा को वमन के साथ वह वाम हरित सर्प बाहर आ गया और तड़पता हुआ मर गया. फिर युवती ने बिल में तेल डाल दिया वहां भी वह काल सर्प मारा गया और खजाना युवती ने प्राप्त कर लिया.
कुछ ही दिनों में राजा स्वस्थ हो गए. स्त्री से पूछा. स्त्री ने सब कह सुनाया. राजा ने परिचय दिया कि वे विक्रमादित्य है. युवती का बाप भी प्रसन्न हुआ और वहाँ के राजा ने दोनों को उपहार आदि देकर विदा किया.
क्रमश: इस कथा में
भारत कौन है
आपिये वामिये, देशद्रोही, कुबुद्धिजीवी कौन है
मोदी कौन है
काला धन, काली करतूतें वाले अफसर नेता कौन है
नोटबंदी, NGO बंदी क्या है
शायद सभी समझ गए होंगे.
भाई अगर दो दो खतरनाक सांप मारने है तो सरसों कर्पूर की गंध और छाछ नीम के स्वाद को सहना ही होगा. चतुर युवती पर विश्वास रखिये वह अपने काम में लगी हुई है पूरे समर्पण से.
अस्तु.