आजादी के संघर्ष में वीर सावरकर एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे दो बार आजीवन कारावास की सजा दी गई थी, अर्थात उन्हे 50 वर्ष जेल में रहने की सजा हुई.
सावरकर जी को 1911 में अंडमान यानी कालापानी भेज दिया गया जहाँ उनके बङे भाई पहले से ही आजीवन कारावास की सजा में बंदी थे. यद्यपि दोनों सावरकर बंधु एक ही जेल में थे किन्तु वे आपस में मिल नहीं पाते थे. कालापानी अर्थात सेलुलर जेल में सभी क्रांतिकारियों के साथ अत्यंत कठोर अमानवीय व्यवहार किया जाता था. सजा ऐसी कि जिसका इंसानियत से कोई नाता नही था.
वहाँ निम्न श्रेणी का खाना और बदबुदार पानी पीने को दिया जाता था. जिसको खाने से प्रायः अधिकांश कैदी बीमार हो जाते थे. बीमारी के बावजूद कैदियों से नारियल के छिलके कुटवाने का काम करवाया जाता था, जिससे हाथों में छाले पङ जाते थे. कोल्हू में बैल की जगह क्रांतिकारियों को बाँधा जाता था और तेल निकलवाने का कार्य किया जाता था.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यों को अंग्रेजों द्वारा मुंबई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया था. गिरफ्तारी के बाद गांधी जी को पुणे के आगा खान पैलेस में दो साल तक नजर बंद रखा गया. आगा खान पैलेस से बापू के जीवन के दो कड़वे अनुभव जुड़े हुए हैं. इसी पैलेस में उनके 50 साल पुराने सचिव महादेव देसाई का दिल का दौरा पड़ने से निधन हुआ और इसी महल में 22 फरवरी 1944 को उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी ने अंतिम सांस ली.
यरवदा जेल में भी बापू कुछ दिनों के लिए कैद हुए थे, वहीँ जवाहरलाल नेहरु, नेताजी सुभाष बोस, बाल गंगाधर तिलक और वीर सावरकर समेत कई बड़े नेताओं को भी गिरफ्तार कर यहां रखा गया था.
मैंने पुणे स्थित आगाखान महल की भव्यता देखी है, गाँधी जी का वो विशाल कमरा मैंने देखा है, वेस्टर्न स्टाइल का गाँधी का बाथरूम एक आम मध्यम वर्गीय परिवार के बेड रूम से बड़ा है. गाँधी इतने उच्च कोटि के कैदी थे कि उनके साथ उनका सचिव, उनकी पत्नी, सरोजनी नायडू और जेपी की पत्नी प्रभावती देवी कैद होती थी. पूरे शानो शौकत में गाँधी एक आलीशान महल में कैद होते थे, जिनके ऊपर एक थप्पड़ भी अंग्रेजो नहीं उठाया.
दूसरी तरफ सेलुलर जेल में कैद वीर सावरकर को अनेक वर्षों तक यह पता ही न चल सका कि उनका भाई भी इसी जेल में है.