बेटा कुंदन! आजकल लोग नए साल के कैलेंडर का क्या कर रहे हैं?
माई डियर पंडी! सब चर और खा रहे हैं.
[खुद को ही ‘भारत रत्न’ देने वाले दल के लोग आज एक चरखे से डर गए!]
लेकिन हल्ला क्यों हो रहा है?
जिन्होंने कैलेंडरों में दशकों चरा और खाया, वे अब अस्तित्व और बिसात की सूत उधड़ने की वजह से चिल्ला रहे हैं.
लेकिन बाबा का चरखा तो सूत कातता है बे!
कैलेंडर वाला चरखा… सूत उधेड़ रहा है बबवा.
[बिल्ली के कोसने से कभी उल्काएं नहीं गिरा करतीं]
सही है बेटा कुंदन! वे भी ओबीसी (तेली) – ये भी ओबीसी (तेली), वे भी गुजराती – ये भी गुजराती.
वे कभी छोटा स का उच्चारण नहीं करते थे (गांधी जी बोलने में छोटे स की जगह भी बड़ा श बोलते थे) सफाई नहीं… शफाई बोलते थे.
ये कभी छोटी इ की मात्रा नहीं लगते (मोदी जी उच्चारण में छोटी इ की मात्रा की जगह भी बड़ी ई की मात्रा लगाते हैं) मंदिर नहीं… मंदीर बोलते हैं.
आकाशवाणी : मित्रोंsss… चरखे से मेरा बहूत पुराना नाता है, मेरा जन्म वहीं हुआs.. जहाँ से चरखे ने दुनिया के कैलेंडर में अपनी जगह बनाई…