कालीन के अंदर गंदगी को छिपाकर, पांच किलोमीटर के पटना को टेंटों में बसाकर, अधिकतर पैसों की खामखां बर्बादी को नहीं बताकर और लेज़र शो की जगमग में लोगों को चौंधिया कर तुगलक कुमार ‘प्रकाश-पर्व’ की सफलता (?) पर लहालोट हो रहे थे.
अभी पत्रकारों की हत्या या दिनदहाड़े अपराध पर भी बात नहीं करूंगा. तुगलक कुमार की शराबबंदी के बाद बिहार में अपराधों में 13 फीसदी का उछाल आया है, यह भी कोई चर्चा का विषय नहीं. यहां बात दियारा में कल मरे हतभाग्यों की हो रही है. यह सीधा-सादा हत्या का मामला है.
तुगलक के पर्यटन निगम ने अखबार में विज्ञापन दे के लोगों को आमंत्रित किया. आयोजन स्थल पर सुबह से ही अराजकता चरम पर थी. पर्यटन निगम का एक 40 सीटों वाला जहाज पिछले कई दिनों से खराब था. कल भी किसी ढंग से मात्र दो फेरे ले पाया और बंद हो गया.
दियारा में जो जेट्टी बनाई गई थी, वो डेढ़ बजे दिन में ही टूटने लगी थी. इधर पर्यटन निगम की बीस लोगों की क्षमता वाली एक बोट काम कर रही थी. इनलैंड वाटरवेज़ से बीस-बीस सीटों वाली दो नाव ली गयी. इनके अलावा निजी नावें तो चल ही रही थीं, जो भाड़ा लेकर लोगों को ला रही थीं.
सुबह से ही लोगों को ताबड़तोड़ ले जाया गया, ताकि भीड़ दिखा कर आयोजन की सफलता को बेचा जाए. यहां तक कि पहले दियारा में 2 बजे दोपहर तक ही लोगों को ले जाया जाता था, मगर इस बार 3 बजे शाम तक लोग गए.
कार्यक्रम समाप्त हुआ, तो सारे आलाधिकारी बोट मंगा के स्वयं फरार हो गए. सारे मतलब सारे अधिकारी. चार बजे इनलैंड वाटरवेज़ वाले दोनों जहाज भी फरार हो गए, और पर्यटन निगम का जो इकलौता जहाज था, वो पर्यटन निगम के अधिकारियों और कर्मियों को ढोने में व्यस्त हो गया.
अब जो हजारों लोग उधर फंसे थे, उनमें घबराहट बढ़ी और फिर निजी नावों पर लोग बैठने लगे. एक नाव पर 60 से 70 आदमी.
पर्यटन निगम एवं अन्य प्रशानिक अधिकारी वहां से पहले ही फरार थे. दियारा में कोई बचा ही नही था, जो इस भीड़ को, जिसमें अधिकांशतः महिलायें और बच्चे थे, को नियंत्रित कर सकता.
आखिरकार, तुगलक कुमार की हवस और लापरवाही से 50 से अधिक जानें चली गयीं.

यह जानकारी किसी पुष्ट स्रोत से मिली है, पर उनके अनुरोध पर उनका नाम नहीं दे रहा हूं. कुछ फोटो भी दे रहा हूं, जो बताएंगी कि तुगलक कुमार ने बिहार को पिछले 6 महीनों में किस तरह अराजकता के हवाले कर दिया है.
