“वेदों ने” – प्रसिद्ध भौतिकविद जॉन ग्रिबिन लिखते हैं -“क्वांटम भौतिकी की स्थापना में एर्विन श्रोडिन्गर को बहुत प्रभावित किया. श्रोडिन्गर हिन्दू दर्शन और वैदिक ज्ञान से बहुत प्रभावित थे. वे अपने लेख ‘माय व्यू ऑफ़ द वर्ल्ड’ में वेदान्त की चर्चा, क्वांटम के सन्दर्भ में, विस्तार से करते हैं …(क्वांटम के) कई विरोधाभाषों को वे वेदों की एकात्मकता की अवधारण से हल करते हैं …क्वांटम-भौतिकविदों का विश्व नजरिया वेदों में निहित नज़रिए से अलग नहीं है.”
उपनिषदों में आधुनिक विज्ञान, विशेषकर क्वांटम, के निष्कर्षों के होने की पुष्टि इनके अध्ययन से और क्वांटम-भौतिकी के संस्थापकों के वक्तव्यों से होती है. इस सन्दर्भ में ये आपत्ति – कि अगर वेदों में विज्ञान था तो फिर प्राचीन भारत में विमान, रेलगाड़ी, आदि क्यों नहीं थे – इसलिए निराधार है कि विज्ञान (साइंस) और प्रौद्द्योगिकी (टेक्नोलोजी) दो अलग विषय हैं.
विज्ञान केवल सत्य जानने की जिज्ञासा से प्रेरित होता है, जबकि ‘टेक्नोलोजी’ उनके प्रायोगिक उपयोगों से प्रेरित होती है. प्राचीन मिश्र-सभ्यता ’टेक्नोलोजी’ में आगे थी (पिरामिड, स्याही आदि) लेकिन उनसे सम्बंधित ‘विज्ञान’ पर उसकी कोई पकड़ नहीं थी; जबकि समकालीन ग्रीक सभ्यता ‘विज्ञान’ में आगे थी (सूर्य आदि की परिधि की गणना आदि) लेकिन उस समय उनकी कोई ‘टेकनोलोजिकल’ उपलब्धियां नहीं थीं.
विख्यात गणितज्ञ, भौतिविद, और ‘टेक्नोलोजिस्ट’ हेनरी पोइन्करे ने भी कहा था, “वैज्ञानिक प्रकृति का अध्ययन करता है, इसलिए नहीं कि यह ‘उपयोगी’ है बल्कि इसलिए कि उसे उसमें आनंद आता है”.
‘टेक्नोलोजी’ की अनुपस्थिति के आधार पर प्राचीन भारत में “विज्ञान” की उपस्थिति के मुद्दे को खारिज नहीं किया जा सकता. प्राचीन भारत में ‘विज्ञान’ की उपस्थिति मगर ‘टेक्नोलोजी’ की अनुपस्थिति को इसी प्रकाश में देखा जाना ही इस सन्दर्भ में वैज्ञानिक दृष्टिकोण है.
(सन्दर्भ : (1) नोबेल विजेता श्रोडिंगर की जॉन ग्रिबिन लिखित बायोग्राफी “Erwin Schrodinger and the Quantum Revolution”; (2) विख्यात विज्ञान लेखिका सिमॉन लिखित “Big Bang”)