एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है…. याद है ना इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों के लिए राजीव गांधी के ये उदगार….
गांधी नाम के जिस झूले पर सवार होकर आप उस पेड़ की शाखाओं से झूल रहे थे उसकी शाखाएं अब सूख रही है… क्योंकि जो पेड़ फल देना नहीं जानते उनका एक दिन यही हश्र होता है. मान्यता ये भी है कि ऐसे पेड़ों पर प्रेत अपना घर बना लेती है… फिर कोई विवेकशील उस पेड़ के इर्द गिर्द भी नहीं मंडराता….
इसलिए अब तक जो गांधी के नाम का खाद पानी उसे मिल रहा था वो अब स्वच्छता अभियान और खादी के लिए नरेन्द्र मोदी ने निवेश करना प्रारम्भ कर दिया है. ताकि कोई और वृक्ष इससे फले फूलें, फल दें, और देश का उद्धार हो…
जो इंसान पूरे देश को थामे हुए हैं, उसका एक चरखे को छू लेना आपको इतना बुरा लग रहा है? क्या आप ये भूल गए हैं या जनता को भुलावे में डाले रहना चाहते हैं कि कभी इसी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने खुद को “भारत रत्न” भी दिलवाए हैं….
आज गांधी केवल एक इंसान नहीं रह गए हैं वो एक प्रतीक हो गए हैं…. भारत की पहचान है, आज हर व्यक्ति चाहे वो गांधी के विचारों से सहमत ना हो तब भी उसे जेब में लेकर घूमना उसकी मजबूरी है…
इसलिए आपका यह भय जायज़ भी है, क्योंकि आपने गांधी को अपनी बपौती समझ लिया था…. आपने गांधी की जिस छवि को गढ़ा था वो भी अब धुंधली होती नज़र आ रही है… आज गांधी भी बेनकाब हो गए हैं और गांधीवादी भी….
अब नई छवि उभर कर आ रही है… ध्यान देना स्वत: उभर कर आ रही है… उसे गढ़ा नहीं जा रहा… जो गांधी नाम की मजबूरी को भी सकारात्मक रूप देकर देश के उत्थान के लिए अपनाना जानता है वही उस विरासत को संभालने लायक भी है….
आपने तो गांधी के सत्य के असफल प्रयोगों को भी महिमामंडित करके प्रस्तुत किया था… आज एक आदमी सत्य और अहिंसा को गांधी की धुंधली होती छवि में फिर से धूल झाड़कर सजा रहा है…. और जो ये काम करेगा उसे गांधी को छूना भी पड़ेगा ….
और जो गांधी को छूने की कूवत रखता है वही उनकी विरासत संभालने की योग्यता भी रखता है…
खैर हमारी श्रद्धांजलि स्वीकार कीजिये…. गांधी की आत्मा अब देह बदल रही है….
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