ऐसे बयानों की कीमत सदियों तक चुकानी पड़ती है साहेब!

गुजरात दंगों के बाद मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की किस्मत का फैसला करने के लिये अटल जी गये थे. अटल जी ने प्रेस कांफ्रेंस की, मोदी पास बैठे हुए थे.

अटल जी न जाने किस सेकुलर भाव में बह गये और बोलना शुरू किया, “राजा के लिये प्रजा-प्रजा में भेद नहीं होना चाहिये, मैं नरेंद्र भाई को राजधर्म निभाने की सलाह दूँगा“.

अटल जी अपने इन शब्दों को विस्तार देने लग गये तो चतुर मोदी ने फ़ौरन उनके कान में कहा, ‘वही तो कर रहा हूँ’ और अटल जी रुक गये.

फिर 2005 में आडवाणी जी पाकिस्तान गये और वहां जिन्ना के मजार पर जा कर सेकुलर हो गये, उसे धर्मनिरपेक्ष होने का सर्टिफिकेट दे दिया.

अटल जी के बयान के बाद गुजरात दंगों की आड़ लेकर जब-जब मोदी और भाजपा को घेरना होता तो सारे सेकुलर और हिन्दू विरोधी खेमा अटल जी के राजधर्म वाले बयान की सीडी बजाने लगते थे और भाजपा समर्थकों को कोई जबाब देना मुश्किल हो जाता था.

सेकुलर और हिन्दू विरोधी खेमा कहता, आप कैसे गुजरात दंगों के लिये उन्हें दोषी नहीं मानोगे जबकि मोदी को तो आपके अपने अटल जी ने राजधर्म की सीख दी थी ?

राष्ट्रवादी खेमे को यही सब, तब फिर झेलना पड़ा जब आडवानी जी जिन्ना की आरती उतार कर आये.

अज़ीज़ बर्नी

मजे की बात ये भी है कि मई, 2014 में मोदी विजय के बाद उर्दू अखबारों के लिये मोदी को घेरने का कोई रास्ता नहीं बचा था तब अटल जी का राजधर्म वाला बयान ही था जिसने उन्हें मोदी को जलील करने की संजीवनी दी थी.

अजीज बर्नी ने अपने अखबार अजीजुल-हिन्द का पहला पेज पूरा काला रखा था सिवाय एक कोने के जहाँ उसने अटल की उस राजधर्म वाले उक्ति को जगह दी थी.

लालकृष्ण आडवाणी

अब दुःख की बात ये है कि अटल जी और आडवाणी के ऐसे बयानों के उत्तर-परिणामों से पूर्णतया अवगत और भुक्तभोगी नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी अपने इस कार्यकाल में कम से कम दो बार उसी रास्ते चल पड़े.

पहली बार गो-भक्तों के ऊपर बेहद बेसिर-पैर का बयान दिया, फिर कोझीकोड में दीनदयाल उपाध्याय की न जाने किस उक्ति को आधार बनाकर बेमतलब ये कह दिया कि हिन्दुओं को मुसलमानों से घृणा नहीं करनी चाहिये.

अब सोचिये कि लंदन या न्यूयॉर्क या इस्लामाबाद में बैठा कोई पत्रकार इस बयान के आधार पर कैसे-कैसे आलेख लिख सकता है.

क्या वो इस बयान को इस रूप में नहीं लिखेगा कि भारत में हिन्दू इतने मुस्लिम विरोधी हो चुके हैं कि देश के प्रधानमंत्री को हिन्दुओं से ये अपील करनी पड़ रही है कि वो मुस्लिमों से घृणा न करें?

आज से पचास या सौ साल बाद मोदी के कार्यकाल की समीक्षा होगी, तब समीक्षक क्या मोदी के इस बयान को अलग-अलग रूपों में हिन्दुओं को लांछित करने के लिये इस्तेमाल नहीं करेंगे?

हिन्दू दुर्भाग्य अवश्यंभावी है, इसलिये आपसे कोई अपेक्षा नहीं है. आप राजधर्म ही निभाइए साहब.

गौरक्षा के लिए अब तक आपने कुछ नहीं किया तो भगवान के लिये जो लोग कुछ कर रहें हैं उन पर फूहड़ बयानबाजी मत करिये.

आप सवा सौ करोड़ की बात करते हैं, अच्छी बात है तो फिर आपको कोई हक़ नहीं है कि 80 करोड़ हिन्दुओं को क्या करना चाहिये इसकी बेमतलब की व्याख्या करें.

और हाँ, अटल जी के उस बयान की कीमत कितनी महंगी पड़ी थी ये आपको बताना आवश्यक नहीं है, पर भगवान के लिये आप भी इसे न दुहराइये क्योंकि फूहड़ बयानों की कीमत सदियों तक चुकानी पड़ती है साहेब.

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