Audio : अब क्या खद्दर भी छीन लोगे?

गांधी और चरखे की चर्चा से याद आया कि एक थे ‘सीमांत गांधी’. खान अब्दुल गफ्फार खान को सीमांत गांधी इसलिए बुलाया जाता था क्योंकि पख्तूनों के लिए वो बिलकुल वैसे ही थे, जैसा उस दौर के भारत के लिए गांधी थे. बंटवारे के बाद वो पाकिस्तान चले गए.

गांधी और सीमान्त गांधी की साथ-साथ की तस्वीर जरा अजीब सी लगती है. एक पांच फीट का दुबला पतला सा, तो दूसरा सवा छह फुट, सवा सौ किलो का!

गफ्फार खान बंटवारे के समर्थक भी नहीं थे, पकिस्तान विरोधी भी थे, थोड़ी सी कसर रहती थी तो पख्तूनों के लिए न्याय और हिस्सेदारी की मांग भी करते रहते थे.

नतीजा वही हुआ जो होना था! पाकिस्तान जैसा कट्टरपंथी इस्लामिक मुल्क भला अहिंसावादी को कैसे झेलता? उठा कर उन्हें कारागार में डाल दिया गया.

कहते हैं उस दौर के खैबर-पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री अब्दुल कैय्यम खान ने जिन्ना के कान भरे थे. उसने जिन्ना को पट्टी पढ़ा दी कि खान अब्दुल गफ्फार खान उनका क़त्ल करवाना चाहता है.

1948 से लेकर 1964 तक का दौर उनका जेल में ही बीत गया. ‘आज़ाद’ इस्लामिक मुल्क, पाकिस्तान उन्हें दो चार रोज़ के लिए बाहर करता भी तो फिर किसी बहाने जेल में डाल देता.

खैर सन 1964 में जब तबियत काफी बिगड़ जाने के बाद उन्हें छोड़ा गया तो वो भारत भी आये थे.

जिस इंदिरा को उन्होंने कभी गोद में खिलाया था वो अब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बन चुकी थी. लेकिन कुछ बचपन वाले संबंधों का लिहाज अब भी रहता था तो जैसे ही वो हवाई जहाज से उतर कर चले, इंदिरा गांधी ने उनकी पोटली उनके हाथ से लेने की कोशिश की.

गांधीवादी टाइप जीव के पास क्या होता ‘भारी’ पोटली में जो उनसे उठाया ना जाता? बरसों तथाकथित ‘आज़ाद’ इस्लामिक मुल्क की आजादी झेल चुके गफ्फार खान हंस पड़े. कहा, बिटिया अब बस यही तो बचा है, ये भी छीन लोगी?

देखा जाए तो 1936 में ही गांधी जी ने कांग्रेस से इस्तीफा भी दे दिया था. उसके बाद से वो वर्धा में ही रहते थे, इसलिए ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ का फैसला कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने वर्धा से ही लिया था.

गांधी का नाम हड़प लेने की कांग्रेसी साज़िश इसी दौर से शुरू हो गई थी. शायद यही वजह है कि 1942 के भारत छोड़ो, या बाद के आंदोलनों में हज़ारों लोग तो मरे मगर पुलिस की गोली-लाठी से कोई कांग्रेसी नेता नहीं मरा.

जी हां, एक भी नेता नहीं, कोई नाम नहीं निकलेगा. किसी किताब से, किसी स्रोत से निकाल लीजिये.

गांधी की ब्रांड वैल्यू, गुडविल, हड़प चुके एक राजवंश से, कुछ दिन पहले एक साम्प्रदायिक सफ़ेद दाढ़ी वाले ने, सफाई अभियान, गाँव चलो जैसी चीज़ें छीन ली थीं.

अब लगता है चरखा भी झपट लिया. तो सवाल, फिर से वही सीमांत गांधी वाला है साहेब, एक खद्दर ही तो बची थी, क्या ये भी छीन लोगे?

आनंद कुमार की आवाज़ में सुनिए इस लेख को

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