हृदय कुण्ड के तरल प्रेम को
जमा दिया है
तेरी अबोली ठंडी परछाइयों ने
आओ अपनी साँसों की किरणों को
बाँध दो मेरे देह के कटिबंध पर
सुना है एक सौर्य वर्ष में दो बार
सूर्य तक लम्बवत होता है पृथ्वी के
ऊष्ण कटिबंध पर…
कर्क से लेकर मकर तक
सारे अक्षांशों तक अंगड़ाई ले चुके
अंगों ने प्रयास किया है
हरित ऋत के भ्रम को
बनाए रखने के लिए
लेकिन वर्ष भर की
तेरी यादों की औसत वर्षा भी
नम नहीं कर सकी है देह की माटी
आ जाओ इससे पहले कि ह्रदय कुण्ड
शीत कटिबंध पर प्रस्थान कर जाए …
और सूर्य की तिरछी किरणें भी
अयनवृत्तों को छू न पाए
मैंने देह की माटी पर
प्रेम के बीज बोए हैं
तुम अपनी प्रकाश किरणों से
उसे संश्लेषित कर जाओ….
– माँ जीवन शैफाली
मन की प्यास मेरे मन से ना निकली…. ऐसे तड़पूं कि जैसे जल बिन मछली
चित्र साभार श्री जयेश शेठ
https://www.youtube.com/watch?v=2Ynf-YxWTqY