शकुन शास्त्र – 5 : सूक्ष्म जगत की वस्तु का स्थूल जगत में प्रकटीकरण

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हमने पहले बताया है कि जड़वादियों के लिए भी पशु-पक्षी आदि से ज्ञात शकुन मान्य होने चाहिए, परन्तु जड़वाद को मानकर इन अद्भुत शकुनों का कारण पाया नहीं जा सकता. पाषाण में या धातु, काष्ठादि की मूर्तियों में हास्य, रोदन, गति, स्वेद तथा आकाश से रक्त, चन्दन आदि की वृष्टि का कारण जड़वाद से पाना शक्य नहीं.

जैसे किसी भावुक भक्त ने भगवान को मानसिक पूजन के समय कोई नैवेद्य अर्पित करना प्रारम्भ किया और उसे किसी ने उसी समय चौंका दिया तो नैवेद्य बाहर गिर पड़ा. अब वह नैवेद्य कहाँ से आया, इसे वैज्ञानिक नहीं बता सकेगा. इसी प्रकार ये घटनाएं भावलोक से सम्बन्ध रखती हैं.

जो सम्बन्ध हमारे शरीर और शरीर की चेतना में है, वही सम्बन्ध पदार्थों एवं उनके अधिष्ठाता देवताओं में है. पदार्थ का स्थूल रूप देवताओं का व्यक्त पदार्थ भाव ही है, जैसे बाजीगर का भाव कुछ क्षण के लिए कोई प्रकट कर देता है. जैसे भय, आशंका, आश्चर्य आदि से हमारे शरीर में स्वेद, रोमांच, अश्रु, हास्य प्रकट होते हैं, वैसे ही देवताओं में भी.

शोक या क्रोध की अधिकता में हमारे रोम कूपों से रक्त कण निकल सकते हैं और रक्त वमन भी हो सकता है. मूर्तियों में भक्तों की भावना तथा प्राण प्रतिष्ठा के कारण देव शक्ति का सानिध्य स्थापित होता है. विश्व में कोई बड़ी घटना होनेवाली हो तो उसका प्रभाव देव शक्ति पर पड़ता है और प्रभाव प्रबल हो तो शोकादि के लक्षण स्थूल जगत में प्रकट हो जाते हैं.

देवता जब प्रसन्न होकर अपने आराधन को कोई पदार्थ देते हैं तो वह पदार्थ कहीं से आता नहीं, अपितु देवताओं का भाव ही पदार्थ के रूप में मूर्त हो जाता है.

पांडवों को वनवास के समय सूर्यनारायण से एक पात्र मिला था. महाभारत में वर्णन है कि द्रौपदी जब तक भोजन न कर ले, तब तक उस पात्र से चाहे जितने व्यक्तियों को भोजन करने योग्य पदार्थ प्राप्त हो सकते थे.

पात्र में इतने पदार्थ नित्य भरे नहीं होते थे, पात्र देते समय देवता का जैसा संकल्प था, वह शक्ति उस पात्र में मूर्त हो गयी थी. संकल्प से वस्तु निर्माण करने वाले पुरुष इस समय भी देखे जाते हैं. इसी प्रकार देवताओं के हर्ष, शोकादि के चिह्न स्थूल जगत में मूर्तिमान हो जाते हैं. उनकी दिव्य दृष्टी जगत में किसी बड़ी उथल-पुथल का प्रत्यक्ष करती है तो भूकंप आदि होते हैं. इसी से चन्दन, रक्तादि की वृष्टि या मूर्तियों में क्रियाएं प्रकट होती हैं.

पहचानिए पंजों में खुजली के संकेत

अनेक बार हमारे शरीर के विभिन्न अंग फड़कते हैं या हथेलियों अथवा पैरों के तालों में खुजली होती है. ये बातें शरीर में वायु आदि दोष से भी होती हैं और शकुन के रूप में भी. प्राय: शकुन के रूप में ये लक्षण तब प्रकट होते हैं, जब हम किसी कार्य, वस्तु या व्यक्ति के सम्बन्ध में सोच रहे हो. ये शकुन उसी सम्बन्ध में सूचना देते हैं. बिना हमारी इच्छा के या हम किसी सम्बन्ध में न सोचते हो तो भी अंग-स्फुरणादि शकुन हो हो सकते हैं. ऐसे समय वे प्रभाव की महत्ता सूचित करते हैं.

जैसे विश्व के समस्त पदार्थों के विभिन्न अधिष्ठाता देवता हैं, वैसे ही हमारी शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के भी अधिष्ठाता देवता हैं. समष्टि में व्यापक रूप से कोई अद्भुत घटना होनी होती है तो उसमें उस देवता का प्रभाव प्रकट होता है और हमारे जीवन की भावी घटना का प्रभाव हमारे शरीर में प्रकट होता है. कारण दोनों स्थानों पर एक ही है.

दोनों ही स्थानों पर क्रिया देवशक्ति से हुई है. जैसे समष्टि में घटना की महत्ता तथा अल्पता के अनुसार लक्षण प्रकट होते हैं, वैसे ही शरीर में भी छोटे या बड़े लक्षण दीख पड़ते हैं.

अंगस्फुरण, हथेलियों अथवा पादतल की खुजलाहट और छींक – ये सामान्य लक्षण हैं. इनके अतिरिक्त और भी लक्षण शरीर में प्रकट होते हैं, किन्तु जैसे संसार में रक्तवर्षण या मूर्ति हास्यादि कभी-कभी होते हैं, वैसे ही शरीर के ये लक्षण भे कभी-कभी किसी में प्रकट होते हैं.

पहने हुए आभूषण अकारण टूट या गिर जाए, फूलों की माला अस्वाभाविक ढंग से म्लान हो जाए, किसी अंग से स्वेद बहने लगे, बिना कारण रुलाई आए और अश्रु गिरें, शरीर से अकारण रक्त निकले, कार्यारम्भ में हाथ के उपकरण गिर पड़ें, शरीर फिसल जाए- इस प्रकार के बहुत से लक्षण शास्त्रों ने बतलाए हैं. कभी-कभी तो ये शकुन के रूप में प्रकट होते हैं और कभी-कभी प्राकृतिक कारणों से -जैसे प्रमादवश हाथ के उपकरण गिर सकते हैं या पैर फिसल सकता है. सब समय इनको शकुन मानना भी ठीक नहीं होता.

जानिए मृत्यु के पहले के संकेत

जब देव शक्तियां हमारे जीवन के साधारण कार्यों की सूचना देती हैं, तब यह कैसे संभव है कि वे जीवन के परिवर्तन की सूचना न दें. मृत्यु के परिवर्तन तो प्रत्येक व्यक्ति में प्रकट होते ही हैं.

यदि हम उन्हें समझ सकें तो मृत्यु का पूर्व अनुमान करना कठिन नहीं होता. मृत्यु-शकुनों में चारों प्रकार के शकुन होते हैं. पशु-पक्षियों द्वारा सूचना, मानसिक सूचना, स्वप्न तथा अंग लक्षण.

मृत्यु शकुनों के समान ही बहुत बड़े संकट या रोग की सूचना भी होती है. अनेक बार तो घोर कष्ट के शकुन और मृत्यु के शकुन में इतना सूक्ष्म अंतर रह जाता है कि दोनों का भेद जानना सरल नहीं होता. जैसे काक-रति देखना बहुत बड़ी बीमारी की सूचना तो है ही, स्थान, काल दिशादि के भेद से वह मृत्यु-शकुन भी हो सकता है.

इसी प्रकार मस्तक पर कौए, गिद्ध या चील का बैठ जाना बड़ी आपत्ति और मृत्यु दोनों का सूचक हो सकता है.

अनेकों पुरुष ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपना मृत्युकाल पहले से बतला दिया और वह ठीक ही निकला. यह कोई आवश्यक नहीं है कि ऐसे मनुष्य योगी या बड़े संयमी ही रहे हों.

मृत्यु से पूर्व मन की एक विचित्र स्थिति हो जाती है और जो उसे समझने का प्रयत्न करते हैं, वे मृत्युकाल जान लेते हैं. स्वभावत: मनुष्य अपने मन की खिन्नता से पिण्ड छुड़ाने का अभ्यासी होता है, अत: वह मृत्यु के समय की खिन्नता को भी समझना नहीं चाहता.

मृत्यु से कुछ पूर्व नासिका का अग्रभाग, भौहें और ऊपर का ओष्ठ- ये अपने आपको दिखलाई नहीं पड़ते. धूलि में पड़े हुए पदचिह्न खंडित होते हैं. अपनी छाया में छिद्र जान पड़ते हैं. छाया-पुरुष का मस्तक कटा हुआ दिखता है. इस प्रकार के बहुत से लक्षण हैं. ऐसे ही जिसकी मृत्यु निकट आ जाती है, वह स्वप्न में अपने को तेल लगता, प्रेत से पकड़ा जाता, भैंसे या गधे पर बैठकर दक्षिण की यात्रा करता हुआ देखता है.

स्वप्न शकुन

स्वप्न के समय हमारा अंतर्मन स्थूल शरीर के बंधन से स्वतन्त्र होता है. हमारे स्वभाव, विचारादि के प्रभाव उस पर बंधन नहीं लगा पाते, केवल प्रेरणा देते हैं. ऐसे समय वह प्रकृति की सूक्ष्म सूचनाओं को बहुत स्पष्ट रूप से ग्रहण करता है.

स्वप्न में देखे हुए दृश्यों के शुभाशुभ विचार अत्यंत विस्तृत हैं और इस विषय पर स्वतन्त्र ग्रन्थ भी हैं. यहाँ इतना ही जान लेना चाहिए कि सब स्वप्न शकुन ही नहीं होते, उनमें और भी बहुत से तात्पर्य तथा कारण होते हैं. जागने पर जो स्वप्न भूल जाते हैं, वे तो केवल मन की कल्पना हैं. जो नहीं भूलते, उनमें भी बहुत से हमारी शारीरिक आवश्यकता या स्थिति को सूचित करते हैं.

जैसे प्यास लगी हो या शरीर को जल की आवश्यकता हो तो स्वप्न में हम जल पाने का प्रयास करते हैं. इसी प्रकार यदि स्वप्न में हम आकाश में उड़ते या भोजन करते हैं तो इसका अर्थ है कि शरीर में वायुतत्व विकृत है अथवा अजीर्ण है. कफ एवं पित्त के विकार से जल तथा अग्नि देखे जाते हैं.

स्वप्न में जैसे शरीर की विकृति एवं आवश्यकता की सूचना रहती है, वैसे ही मानसिक विकार के लिए भी सूचना रहती है. स्वप्न में हम जिस प्रवृत्ति या कार्य को करते हैं, उस पर ध्यान दें तो पता लगेगा कि जीवन में हमें किस और जाने का वहां संकेत है.

जैसे एक व्यक्ति साहित्य का अध्ययन करता है और स्वप्न में श्लोक गिनता, जोड़ता है तो इसका अर्थ है कि वह गणित में लगने पर विशेष उन्नति कर सकेगा. स्वप्न के द्वारा भय, उद्वेग आदि मानसिक दुर्बलताओं का कारण भी जाना जाता है.

स्वप्न-विज्ञान पर पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत विचार किया है. हमारे शास्त्रों में भी इस पर विस्तृत आलोचना है. तात्पर्य इतना ही है कि स्वप्न में से कौन-सा स्वप्न शकुन-संबंधी है, यह निश्चय करना सरल नहीं है.

ब्रह्म मुहूर्त में देखे गए स्वप्न, जिनके पश्चात् पुन: निद्रा न आयी हो, शकुन की दृष्टी से महत्वपूर्ण माने गए हैं. यदि एक ही प्रकार के दृश्य स्वप्न में बार-बार दिखाई दें तो उन पर विचार करना चाहिए. वे शारीरिक सूचना हों या शकुन- दोनों ही प्रकार से उपयोगी हैं. स्वप्नों पर विचार करते समय पहले यही देखना चाहिए कि वे शारीरिक सूचना या मानसिक स्थिति से प्रेरित तो नहीं हैं. इसके पश्चात् ही उनका शकुन-विचार उचित है.

स्वप्न के समय हमारी स्थिति भावलोक में होती है. अतएव जागृत-दशा की अपेक्षा उस समय देवदर्शन एवं देवताओं के आदेश या सूचनाओं का प्राप्त होना सरल होता है. अधिकारी पुरुषों को ऐसी अनुभूतियाँ होती भी हैं, फिर भी स्वप्न में मन की भावना साकार हुई या देव दर्शन हुआ, यह जानना सरल नहीं है.

इसलिए स्वप्न की भविष्यवाणियों पर विश्वास करना बहुधा भ्रमपूर्ण होता है. स्वप्न के आदेश यदि निष्ठा, शास्त्र एवं आचार के प्रतिकूल हों तो उन पर ध्यान देना ही नहीं चाहिए.

– गीताप्रेस गोरखपुर की पुस्तक कल्याण के ज्योतिषतत्त्वांक में प्रकाशित डॉ श्री सुदर्शन सिंह जी “चक्र” के लेख से साभार

शकुन शास्त्र – 4 : अनुभव करें प्रकृति के सूक्ष्म प्रभावों को

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