इण्डिया, भारत, हिंदुस्तान के अलावा एक नाम आर्यावर्त भी था हमारे देश का.
आर्यावर्त नाम क्यों पड़ा होगा…. क्या सिर्फ इसलिए कि आर्य आए, मूल निवासियों को मार पीट कर देश पर अधिकार कर लिया और देश का नाम भी बदल दिया.
देश का नाम बदलने के पहले इसका कोई नाम तो रहा ही होगा….. क्या नाम था मूल निवासियों के देश का???
आर्य शब्द की उत्पत्ति री धातु में आ प्रत्यय लगा कर हुई है…. री धातु का अर्थ होता है, मूल वस्तु को बढ़ाना, संवर्धन करना, संगोपन करना.
आर्य कोई जाति नहीं है, आर्य धर्म है….वैदिक, सनातन या हिन्दू जीवन प्रणाली ही आर्य धर्म है.
आर्य जीवन-प्रणाली का उद्देश्य होता है सत्य बोलना, स्वच्छ रहना, सेवा करना, परोपकार करना आदि मूलभूत दैवी भावना को विकसित करते हुए आत्मा को महात्मा और महात्मा को परमात्मा में लीन कर लेना.
ऐसा उद्देश्य रखने वाला और उसके अनुरूप आचरण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति आर्य कहलाता था और कहलायेगा, चाहे वो किसी भी देश का, वर्ण का या कद का हो…. सिर्फ अंग्रेज या यूरोप के वो लोग जिनका रँग गोरा है, नाक सीधी है, ऊँचा लंबा कद है, आर्यवंशी नहीं हैं.
पश्चिमी जगत की थोपी हुई मान्यता का कोई आधार नहीं है…. द्रविड़ हों या Druids अर्थात् भारत के हों या यूरोप के, आर्यधर्मी ही हैं.
आर्य और द्रविड़ विरोधी नहीं हैं.
यह एक गलत धारणा है…. वास्तव में आर्य धर्म की निगरानी और मार्गदर्शन करने वाले ऋषि-मुनि द्रविड़ कहलाते थे.
यूरोप में भी Druids पुरोहित होते थे.
1858 में प्रकाशित पुस्तक India 3000 Years Ago में डॉ जॉन विल्सन ने लिखा है “विद्यमान सारे दर्शनशास्त्री इस बात को मानते हैं कि अंग्रेज तथा आर्य एक ही स्रोत के लोग हैं.”
बिना सोचे विचारे हम डॉ जॉन विल्सन की बात को मान लें तो मूलनिवासी सिद्धान्त के अनुसार अंग्रेजों के आने से पहले ही अंग्रेज आ गए थे और मूलनिवासियों पर अत्याचार कर दिया था. बाद में अपने सगे भाइयों को ब्रिटेन से बुला कर अपने ऊपर ही शासन भी करवा लिया.
परंतु गहराई से सोचेंगे तो समझ पाएँगे की इंग्लैण्ड में भी आर्य धर्म या वैदिक संस्कृति ही थी।
वहाँ तो छठी शताब्दी में ईसाई धर्म आया तो उसके पहले कौन सा धर्म मानते थे वो लोग?
इसकी चर्चा फिर कभी.
अभी तो बस इतना समझ लीजिए कि आर्य कोई जाति नहीं है इसलिए किसी को भी इनके मूल देश, भाषा, लिपि आदि के बारे में पता नहीं है.
आर्य, द्रविड़ और मूल निवासी की कहानी बस कपोलकल्पित कथा है, पर कथा बहुत प्रभावी है. ठीक वैसी ही जैसे, 2002 का दंगा नरेंद मोदी ने करवाया था और 15 लाख देने का वादा भी किया था…. प्रमाण किसी के पास नहीं है पर आरोप लगाने वालों की कमी नहीं है.
इसलिए किसी भी बात पर विश्वास करने से पहले प्रमाण नहीं ढूंढ सकते तो कम से कम तर्क-वितर्क तो कर ही सकते हैं। सच होगा तो तर्क-वितर्क के मंथन से प्रमाण निकल ही आएगा.