मेरा सदैव से मानना रहा है, कि हमारे शास्त्रों में वर्णित जो भी श्लोक हैं उन्हें साधारण तरीके से पढ़ने मात्र से कुछ नहीं होता, वे स्वर की शक्ति के बिना केवल शब्द मात्र हैं, वे मन्त्र तभी बनते हैं जब उनमें स्वर भरा जाता है. मन्त्रों की शक्ति भी तभी प्रभावी होती है जब उन्हें लय और स्वर में ही पढ़ा जाए, अन्यथा वे शब्द मात्र हैं.
कई बार मैंने किसी पूजा पाठ आदि में अनुभव किया कि पंडित जी लोग इतने बेसुरे ढंग से श्लोकादि बोलते हैं कि तत्काल वहाँ से उठकर भाग जाने का मन करने लगता है…. चूँकि मैं संगीत प्रेमी हूँ, थोड़ी बहुत समझ भी है और अध्यात्म से भी नाता है सो संतों और ज्ञानियों से यही सुना और समझा है कि ‘नाद ही ब्रह्म है’ नाद अर्थात स्वर, वाइब्रेशन अगर बराबर है तो सीधा प्रकृति से जुड़ जाता है.
स्वर यदि सटीक लग रहा है तो वो ना केवल कर्णप्रिय होता है बल्कि मन मष्तिष्क में गहरी छाप भी छोड़ता है…. आप जब भी अच्छा संगीत सुनते हैं तो काफी शांत और एकाग्र अनुभव करते होंगे? शायद यही कारण रहा कि हमारे मनीषी यज्ञ हवन आदि में अपने मन्त्रों की शक्ति से असंभव को संभव कर जाते थे, ये अपने आप में गूढ़ विज्ञान है…. जिसे हमारे विद्वानों ने ना केवल समझा बल्कि सिद्ध भी किया है.
बहरहाल आप सबसे कहा था कि पूज्य गुरु जी का कंठ अवश्य सुनवाऊंगा, पिछले दिनों आश्रम गया था तब महाराज जी शिव वंदना कर रहे थे, हम भी बैठे थे मंदिर में तभी रिकॉर्ड किया था, मुझे अर्थ नहीं समझ आ रहा था पर इतना सुरीला लग रहा था कि बैठे बैठे आनंद से सुनता रहा और उस समय काफी सकारात्मक व ऊर्जावान भी अनुभव किया….
(शांति से सुनियेगा आवाज़ थोड़ा धीमी है, पर मैं क्या कहना चाहता हूँ आप सुनकर समझ पाएँगे.)