धोखाधड़ी का नमूना : ‘मोदी’ के नाम का दुरुपयोग

फ्रॉड, चीटिंग और लोगों को मूर्ख बनाकर उनसे लम्बी चौडी राशि कबाड़ना यह धन्धा दुनिया में कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में चला आ रहा है. जोड़तोड़ करके पैसा कमाना भी एक कला होती है. यह कला मेहनत पसीने से ईमानदारी से कमाने पर पुरूषार्थ की श्रेणी में आती है. पर जब लोगों की कमजोरियों का फायदा उठाकर उनके भोलेपन का नाजायज फायदा बटोरकर पैसा लूटा जाता है तो यह “धोखाधड़ी” की श्रेणी में आता है. कुछ लोग ऐसी धोखाधड़ी इतनी चतुराई से करते हैं कि उनकी बदमाशी कानून के फन्दे में नही आ पाती है.

इलेक्ट्रानिक मीडिया में भारी भरकम विज्ञापन देकर कुछ नामी धोखेबाज बाबा, लोगों को खुले आम बेवकूफ बना रहे हैं. कुछ तो ऐसे हैं जो मूर्ख लोगों की परेशानी का हल सुलझाने के लिए पूछते हैं – आज सबेरे तुमने क्या नाश्ता किया था? ‘ जी समोसा खाया था ‘ अच्छा तो बताओ समोसे में कौनसी चटनी डाली थी लाल या हरी? जी लाल चटनी डाली थी. अच्छा अब जाओ हरी चटनी डालकर शाम को एक और समोसा खा लेना, तुम पर कृपा हो जायेगी तुम्हारी नौकरी लग जायेगी. मूर्ख व्यक्ति बाबा जी को प्रणाम करके खुश होकर चला जाता है.

चालाकी से घूंस लेकर या बेवकूफ बनाकर धन अर्जन की कहानियां सदियों से चली आ रही हैं. उस समय कायदे कानून इतने प्रभावी नहीं होते थे. आज तो हेर फेर करने वालों की खैर नहीं है. फिर भी लोग आपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं.

हवा का रूख पहचान कर ऐसी जुगाड़ करने में नहीं चूकते हैं कि सामने वाला कोई बेवकूफ उनके जाल में फंस भी जाए और कानून की किसी धारा में धोखेबाज कतई नहीं फंसे. ऐसा ही कारनामा THE MODI AWARDS नाम के षड़यन्त्र का है. देखने में मोदी नाम से लोग इसे भारत के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम का इनाम या सम्मान समझेंगे. पर मोदी जी से इसका कोई लेना देना नहीं है.

इसका अर्थ है मेकिंग ऑफ़ डेवलप इन्डिया अवार्ड (MODI). फिर षड़यन्त्रकारी लोगों द्वारा भारत का नक्शा और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का दुरूपयोग बहुत चालाकी से किया गया है. यह सरासर धोखाधड़ी है. मोदी जी के नाम का छद्म उपयोग करके तिरंगे को बीच में फंसाकर बदमाशी से ऐसा प्रपन्च रचा गया है कि मानो यह सब अवार्ड समारोह सरकारी तौर पर हो रहा है और यह जरूर कोई राष्ट्रीय स्तर का अति सम्माननीय अवार्ड होगा.

इस षड़यन्त्र में बार बार टेलीफोन करके, या पत्र लिखकर या ई मेल करके लोगों को फंसाया जाता है और उनसे हजारों रूपए वसूल करके अवार्ड के नाम पर एक खिलौना और प्रमाणपत्र पकड़ा दिया जाता है. उस अवार्ड या सार्टिफिकेट की पूरी दुनिया में न तो कोई मान्यता है ना ही ऐसी अवार्ड़ का कोई महत्व होता है.

इस धोखेवाजी के अवार्ड में पढ़े लिखे और अपने को होशियार समझने वाले लोग अक्सर फंस जाते हैं. आयोजक हर साल मार्केटिंग करके करोड़ों रुपये कानून की आँखों में मिर्ची झौंक कर खुले आम कमा रहे हैं.

Comments

comments

LEAVE A REPLY