छिन्नमस्ता या ‘छिन्नमस्तिका’ या ‘प्रचण्ड चण्डिका’ दस महाविद्यायों में से एक हैं. छिन्नमस्ता देवी के हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर है तथा दूसरे हाथ में कटार है.
इस महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है. महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती त्रिपुरसुंदरी का ही रौद्र रूप है. सुप्रसिद्ध पौराणिक हयग्रीवोपाख्यान का (जिसमें गणपति वाहन मूषक की कृपा से धनुष प्रत्यंचा भंग हो जाने के कारण सोते हुए विष्णु के सिर के कट जाने का निरूपण है) इसी छिन्नमस्ता से संबद्ध है.
शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर आप स्थित हैं. आप एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए हैं. अपने कटे हुए स्कन्ध से रक्त की जो धाराएं निकलती हैं, उनमें से एक को स्वयं पीती हैं और अन्य दो धाराओं से अपनी वर्णिनी और शाकिनी नाम की दो सहेलियों को तृप्त कर रही हैं. इडा, पिंगला और सुषुम्ना इन तीन नाड़ियों का संधान कर योग मार्ग में सिद्धि को प्रशस्त करती हैं. विद्यात्रयी में यह दूसरी विद्या गिनी जाती हैं.
देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कन्धे पर यज्ञोपवीत है. इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं. उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है.
दिशाएं ही इनके वस्त्र हैं. इनकी नाभि में योनि चक्र है. छिन्नमस्ता की साधना दीपावली से शुरू करनी चाहिए. इस मंत्र के चार लाख जप करने पर देवी सिद्ध होकर कृपा करती हैं. जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश ब्राह्मण और कन्या भोजन करना चाहिए.