ऐसे आओ
जैसे तपती धूप में
बारिश की पहली फुहार
ऐसे आओ
जैसे हहराते पतझड़ में
मदमाती वासंती बयार
ऐसे आओ
जैसे रेगिस्तानी झुलसन में
झूमती बरखा बहार
ऐसे आओ
जैसे रुकी हुई जिंदगी में
दरिया की ताज़ी धार
ऐसे आओ
जैसे ढ़लती आयु में
यौवन का श्रृंगार
ऐसे आओ
जैसे अँधेरे जीवन में
उजालों का संसार
ऐसे आओ
जैसे रिश्तों के बियाबान में
भरोसे का आधार
ऐसे आओ
जैसे बेगानों की भीड़ में
नेह का आगार
ऐसे आओ
जैसे जीवन के शोर में
संगीत का सितार
ऐसे आओ
जैसे बंजर जमीं पर
फूट पड़े फ़सलें अपार
ऐसे आओ
जैसे गूँगों के देश में
वाणी का उपहार
ऐसे आओ
जैसे निर्जन भटकन में
अपनों की पुकार
ऐसे आओ
जैसे चिर वियोग के बाद
मिले हों पहली बार
दसों दिशाओं में
गूँज उठे राग-मल्हार
ऐसे आओ
जैसे छेड़ता आए
कोई संवेदनाओं के तार
जिसका स्पर्श पाते ही
पोर-पोर में बज उठे
चेतना की झंकार
ऐसे आओ
जैसे महक उठे हों
समग्र धरती-संसार
न कोई अपना,न बेगाना
हर तरफ दिखे
बस प्यार ही प्यार
ऐसे आओ
जैसे………………