बीएसएफ के जवान के वीडियो पर फेसबुक पर लोग सेंटिमेंटल हो रहे हैं… एक बात साफ़ कह दूं… होते रहिये सेंटिमेंटल…
फौज सेंटी खाने की जगह नहीं है. यह नरमदिल शायरों का मजमा नहीं है. यहाँ जूते पैरों में फिट नहीं होते, पैरों को ही जूतों में फिट होना पड़ता है…
यहाँ दाल में कंकड़ हो सकता है, रोटी जली हो सकती है… इसके लिए शिकायत भी करते हैं… नाराज भी होते हैं….पर तमाशा कोई नहीं करता.
और फौज में सूखी रोटी ही सबसे बड़ी तकलीफ नहीं है. फौज में रह कर आपको रोज ताज होटल का भी खाना मिले, तो भी फौज तो फौज ही है…
यहाँ मन मार कर ही रहना होता है. दिल पर पत्थर रख कर ही फौज में रहा जा सकता है. यहाँ तमाशे करने का, लाल झंडा लेकर खड़ा होने का कोई स्कोप नहीं है… फौजें ऐसे नहीं चलती…
बीएसएफ तो फौज भी नहीं है, पैरामिलिट्री है. फिर भी आप एक बन्दे के हाथ में बन्दूक दे रहे हैं तो उसे काबू में तो रखना होगा. और इस गफलत में ना रहें कि फौज किसी की देशभक्ति के भरोसे चलती है.
फौज में एक जगह होती है क्वार्टर गार्ड. वहाँ सजा पाए हुए लोग बंद होते हैं… छुट्टी से एक दिन लेट लौटे तो 28 दिन की क्वार्टर गार्ड… रात की फॉल इन से गायब होकर लालकुर्ती बाज़ार घूम रहे हैं तो 28 दिन की क्वार्टर गार्ड…
हर वक़्त कोई ना कोई पिट्ठू बाँध कर चक्कर लगा रहा होता है. फिर भी एक आम फौजी अपनी पूरी नौकरी क्वार्टर गार्ड की सजा खाये बिना ही गुजारता है. तो भी कुछ होते हैं जिनके लिए यह क्वार्टर गार्ड बना होता है.
ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा… ऐसा कुछ भी नहीं कहूंगा जिससे अपनी ही वर्दी पहने अपने किसी भाई की तौहीन होती हो. ज्यादा कहानियां नहीं सुनाऊंगा.
हाँ, पंगे लेने की बात हो तो मैंने भी बहुत पंगे लिए हैं. कैप्टेन होकर ब्रिगेडियर, मेजर जनरल से पंगे लिए हैं. लेकिन घर की बात घर में रहती है. उसकी कहानियाँ फेसबुक पर नहीं सुनाता…
और अगर कोई सुनाता है तो कुछ गलत है, बहुत ही गलत है. उसका इरादा चीजों को बदलने का, सुधारने का नहीं हो सकता… अगर इरादा गलत नहीं भी है तो तरीका बहुत, बहुत गलत है…