मोदी सरकार के आने के बाद से दाल हमेशा से चर्चा में रही… कभी कीमत की वजह से कभी सोशल मीडिया की वजह से कभी किसी फौजी की दाल पतली हो जाने की वजह से..
खैर एक किस्सा दाल का मुझे याद आया जो दो साल पहले घटित हुआ था… उसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर रही हूँ…
आज सुबह सुबह एक फेसबुक मित्र की ओर से वर्चुअल पोहे खाने का निमंत्रण मिला. फोटो देखकर जी तो भर गया लेकिन पापी पेट को वर्चुअल खाना दिखाई नहीं देता उसे तो जब तक वास्तविक खाना नहीं मिलता वो मेरे हाथ को रोक कर रखता है…
जब पेट में दाना पड़ता है तो दिलो-दिमाग में मक्कई के दानों की तरह पॉपकोर्न नुमा शब्द फूटते हैं और उछल उछल कर मेरे कम्प्युटर के की बोर्ड पर ठक ठक करते हुए उछलते हैं तब जाकर कोई कहानी, कविता या लेख पकता है…
अब ये माँ जीवन शैफाली फेसबुक पर चाहे बड़ी बड़ी बातें कर लें लेकिन अपने हर छोटे मोटे काम उसे अपने हाथ से ही करने होते हैं… तो सुबह सुबह जब वर्चुअल पोहे से पेट नहीं भरा तो मैं निकल पड़ी पास के किराना स्टोर पर ब्रेड लेने के लिए… .
हालांकि इत्तफाक जैसी कोई चीज़ नहीं होती लेकिन फिर भी मैं यहाँ अपनी सहुलियत के लिए इत्तफाक कहे देती हूँ… कि इत्तफाकन एक 14-15 साल की लड़की उस दुकान पर मिल जाती है..
पिछली बार आई थी तो दुकान वाले अंकल उसे डांट रहे थे.. इतनी बड़ी हो गयी है तुम्हें ये नहीं पता मम्मी ने कपड़े धोने का साबुन मंगवाया था बर्तन मांजने का नहीं… . अगली बार से बदलूंगा नहीं याद रखना… पता नहीं कहाँ-कहाँ से चले आते हैं….
इस बार भी मुझे वही लड़की मिली… आज स्कूल ड्रेस में दिखी तो मुझसे रहा नहीं गया…
– क्या नाम है तुम्हारा
– पूजा
– कौन सी कक्षा में पढ़ती हो…
– दसवीं … अंकलजी 10 रुपये की अरहर दाल दे दो…
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ…. 10 रुपये की मुट्ठी भर दाल में पूरा घर खाना खाकर बच्ची को स्कूल में पढ़ा रहा है… उसके माता पिता पर गर्व हो आया…
इस बीच उस दुकान पर काम करने वाली बाई ने उसे 10 रुपये की अरहर दाल पकड़ा दी…
मैंने 10 रूपये की मुट्ठी भर दाल कहा… मैं गलत थी 10 रुपये में तो दो मुट्ठी दाल आ गयी लेकिन फर्क बस इतना था कि वो छोटी छोटी मुट्ठियाँ उस बच्ची की थी…
वो दाल उठाने लगी तो दुकानदार अंकल ने उसे रोक दिया और अपनी दुकान में काम करने वाली उस कर्मचारी से पूछने लगा तुमने 10 रुपये में कितनी दाल दी?
महिला बोली 114 ग्राम…
दुकानदार उस पर झल्ला गया… 85 रुपये किलो की दाल, कोई 10 रुपये की लेने आएगा तब भी तुम उसी भाव से 114 ग्राम दाल दोगी… 110 ग्राम देना चाहिए थी…..
महिला झेंपते हुए बोली लाओ में 4 ग्राम दाल कम कर देती हूँ…
अब रहने दो, अगली बार 110 ग्राम देना 114 ग्राम नहीं…
जी तो चाहा दाल के उस पैकेट से 4 ग्राम दाल निकालकर उस लड़की पूजा के सर से 4 बार वारकर उस दुकानदार की झोली में डाल दूं कि यही वो चार ग्राम दाल है जिससे तेरी दुकान में बरकत आएगी…
लेकिन हम जो सोचते हैं वो कहाँ कर पाते हैं… थोड़ा गुस्सा खुद पर भी आया कि मैं अपना पर्स साथ में लेकर क्यों नहीं निकली केवल ब्रेड के पैसे लेकर मुंह उठाए चली आई… पास में पैसा होता तो महीने भर का उसका दाल का खर्चा तो मैं उठा ही सकती थी… 110 ग्राम 1 दिन की तो 30 दिन की कितनी हुई?
ये पेट सच में पापी है…. साला एक एक दाने का हिसाब चुन चुन के लेता है… .
ब्रेड खाने का सारा मूड ही खराब हो गया..
लाओ जी लाओ वो वर्चुअल पोहा लाओ आज तो वही खाके दिन गुजारुंगी…
उस चार ग्राम दाल ही से आज तो शब्द पतली दाल की तरह की बोर्ड पर बह गए…
मुईं दाल ना हुई देश की अर्थव्यवस्था का पैमाना हो गयी… चाहे सस्ती हो या महंगी अपनी वास्तविक कीमत दिखा ही जाती है… फिर चाहे बाज़ार में आजकल 5 से 10 रूपये किलो आलू, प्याज़, टमाटर, गोभी, भटा, भाजी मिल रही हो लेकिन नहीं जी मटर पनीर या मटन पनीर छोड़कर हम तो दाल में काला ढूँढने के ही आदि हैं….
असली चटखारा दाल के स्वाद में नहीं आता हमें, इसी सब में आता है… लीजिये जनाब जहाँ चटखारे लगाना हो लगाइए… लेकिन बस याद रखना देश की छवि गढ़ रहे हैं आप विश्व के सामने… सोशल मीडिया को हलके में मत लीजिये… आपका लिखा हुआ एक एक शब्द इतिहास रच रहा है…
कहीं हमारी आने वाली पीढ़ी हमसे ये ना पूछे What is this Daal Dad/Mom?
और आप कहेंगे… Leave it baby… you have your cheese pizza, हमारे बुज़ुर्ग खाया करते थे…. बेचारी का इतना अपमान हुआ कि उसने देश ही छोड़ दिया… याद है ना वो कहानी… एक पेड़ को लोगों ने इतना दुत्कारा कि बेचारा मर ही गया…..