MODIfy India : नाक वालों को ही पता चलेगी विकास की महक

modi with muslim lady making india

सुमनिया क माई हमारे यहाँ झाड़ू पोंछा करती है और वो गरीब है. कितनी गरीब है? बनारस के जिस एरिया में हम लोग रहते हैं वहाँ मुख्य सड़क के पास आपको शहर वाली ज़रा सी फीलिंग आएगी क्योंकि अब तो बहुत सी दुकानें खुल गयी हैं तथा ‘अ’भूतपूर्व डीएम साहब प्रांजल बाबू ने तीन साल पहले ही सड़क बनवाई है.

लेकिन जब आप सड़क से अंदर की तरफ आयेंगे तो आज भी खेत हैं. यहाँ ज़मीन खरीदकर निजी मकान बनवाने के बावजूद कॉलोनी की औरतें ग्राम देवता को पूजने जाती हैं. हम अपने घर के पते में नरायनपुर लिखते हैं जो कि गाँव का नाम है. इस बात की तस्दीक बड़े भाई ललित कुमार जी कर सकते हैं जो पिछले महीने ही बड़े सौभाग्य से हमारे घर पधारे थे.

हाँ तो हम सुमनिया क माई की बात कर रहे थे. तो साहब वो इतनी गरीब है कि गाँव के दूधवालों से 30/लीटर के हिसाब से दूध नहीं ले सकती इसलिए हमारे यहाँ काम करने के बाद दूध की चाय पीती है. शहर में दूध का रेट कहीं ज्यादा है.

सुमनिया क माई का मरद कुछ नहीं कमाता, पहले शराब पीता था लेकिन जब से भोलेनाथ का भक्त हुआ है पीना छोड़ दिया है. दोनों के शायद चार बच्चे हैं जिसमें से दो बेटियों का ब्याह पहले ही हो चुका है. तीसरी सन्तान सुमनिया है चौथे नम्बर पे लड़का है जो थोड़ा बहुत इधर उधर कमाता है.

सुमनिया क माई का राशन कार्ड, बीपीएल कार्ड अधार पधार सब बन गया है. उज्ज्वला योजना के तहत उसको मुफ़्त गैस सिलिंडर मिलने वाला है. इसके अलावा उसका कच्चा टुटहा घर पक्का बनने वाला है और घर में ही शौचालय भी बनने वाला है. इस बाबत परधान जी से सब लिखा पढ़ी हो चुकी है. सुमनिया बड़ी प्रसन्न है क्योंकि ब्याह का अगला नम्बर उसी का है.

सड़क से अंदर हमारी तरफ पक्का रास्ता नहीं है बल्कि खड़ंजा है यानी खड़े ईंट का बना रस्ता. पहले यहाँ रात में रौशनी नहीं होती थी. लेकिन अब तीन तीन खम्बों पर सरकारी एलईडी जलता है. आम के बगीचे के आगे ग्राम देवता के मन्दिर के पास सोलर पैनल लगा दिया गया है.

कुछ लोगों को इस बात से निराशा हुई थी कि WTO में भारत के राष्ट्रीय सोलर मिशन के प्रस्ताव को नकार दिया गया था क्योंकि 2022 तक 100 gigabyte ऊर्जा पैदा करने के लिए भारत ने सोलर उपकरण स्वयं बनाने की बात कही थी जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कुछ समझौतों का उल्लंघन होता.

सीधा मतलब ये कि अमेरिका जैसे देश हमें स्वावलंबी होते नहीं देख सकते इसीलिए इस तरीके के समझौते करवाते हैं जिससे हम उनकी तकनीक खरीदें और खुद न बनाएं. इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति कहाँ तक पहुँची मुझे नहीं पता लेकिन जब एक रात अचानक मेरी मोटरसाइकिल की हेडलाईट खराब हो गयी थी तो उबड़ खाबड़ खड़ंजे पर सोलर पैनल से जलने वाले एलईडी ने ही मुझे रस्ता दिखाया था.

शहर में चल रहे खोदाई अनुष्ठान में Integrated Power Development Scheme (IPDS) ने भी योगदान देना शुरू कर दिया है जिसका शुभारंभ पिछले वर्ष ही हमारे सांसद और प्रधानमंत्री जी ने किया था. सारे बिजली के तार भूमिगत किये जाएंगे और छोटे छोटे बिजली घर नए बनाये जाएंगे. रास्ते चलते थोड़ी दिक्कत होती है लेकिन इतना तो पता है कि भविष्य प्रकाशमय होगा. जब माया से मुल्लायम तक सभै सड़क खोद डाले तो मोदी क्या चीज़ हैं.

पहले आइसक्रीम खाने के लिए कम से कम पाँच सात किमी दूर जाना पड़ता था या कहीं से खरीद कर पान सिंह तोमर की भाँति गाड़ी दौड़ानी पड़ती थी लेकिन अब घर के पास में ही एक जने अमूल की दूकान खोल लिए हैं. उसमें दूध, बढ़िया आइसक्रीम, छाछ, अमूल कूल, दही इत्यादि बेच रहे हैं.

किसी से पूछने पर पता चला कि दुकान के मालिक ने भी किसी ‘मोदी वाली योजना’ के तहत ही लोन लिया है. दुकान अच्छी चल भी रही है. शायद मुद्रा योजना होगी या छोटे उद्यमियों के लाभ के लिए कोई दूसरी योजना लेकिन है मोदी ब्रांड की, इतना यकीन है.

विकास का पता कैसे चलता है? उसकी महक क्या होती है? बहुत पहले जब हरदेव सिंह बनारस के डीएम रहे तो एक मुस्लिम बहुल इलाके में आधी रात को पक्की डामर वाली सड़क बन रही थी. लोग जाग गए और बाहर निकल आये. क्या बूढ़े क्या जवान सबने हाथ से छू कर सड़क पर लगे कोलतार की गरमी को महसूस किया और जाने कहाँ से ढेर सारा माला फूल ला कर रोलर और उसके चालक को पहना दिया.

आदरणीय अटल जी की सरकार के समय में ही आज के नरेन्द्र मोदी के संसदीय कार्यालय और विश्वविद्यालय को जोड़ने वाली सड़क के बीच नाले के ऊपर पुल बना था. प्रदेश में शायद राजनाथ थे या माया मुझे ठीक ठीक याद नहीं लेकिन उस जमाने में बिना केंद्र की सहायता के ये काम नहीं हो सकता था.

चार महीने बाद फिर 26 मई आने वाली है और अभी यूपी चुनाव है ही….. कुछ तो लोग कहेंगे ही. यही कहेंगे कि ज़मीन पर कुछ नहीं हुआ. ऐसे लोगों को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है. वे सपने में भी ये नहीं सोच सकते कि गैस सिलिंडर, शौचालय, पक्का मकान, बिजली के तार, सोलर पैनल ये सारी चीजें ज़मीन पर ही होती हैं. आसमान तो बेहतर भविष्य की कल्पना करने के लिए खुला होता है.

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