कुछ दिन पहले किसी सज्जन ने मुझ से एक सरल प्रश्न पूछा था –
सज्जन : अपने बेटे को NERD बनाना है या मर्द, सोच लीजिये या लड़कियों से पूछ लीजिये.
मैंने उत्तर दिया – “सर, बेटा तो अभी हुआ नहीं.. यद्यपि बेटे को मर्द बनाना है nerd नहीं! यदि मेरा बेटा कम पढ़ा लिखा भी हो तो कोई चिंता की बात नहीं, अपितु उसमें गढ़ने की क्षमता होनी चाहिए और विषम परिस्थितियों में चुनौती का सामना वह अति साहस के साथ करे.”
दरअसल, यह प्रश्न इतना सरल नहीं है. वर्तमान परिस्थितियों में समाज के अंदर और बाहर पुरुषार्थ का स्थान ‘धन’ ने ले लिया है. जबकि धन यानि कि ‘अर्थ’ चार पुरुषार्थों में से केवल एक पुरुषार्थ है. शेष, तीन पुरुषार्थ हैं – धर्म, काम और मोक्ष. भारतीय दर्शन की धुरी ये चार पुरुषार्थ ही हैं.
यहां तक कि किसी भी महाकाव्य के सृजन में इन चारों पुरुषार्थों का वर्णन अपरिहार्य होता है. 100-150 साल पहले एक पिता अपनी बेटी का विवाह क्रांतिकारी से करने में गर्व का अनुभव करता था. तबके जमाने में यह साधारण सा विषय हुआ करता था. जबकि क्रांतिकारी वर के प्राणों का कोई ठिकाना नहीं होता था कि कब किसी “टॉमी” के बंदूक की एक गोली से उसकी जान चली जायेगी. यह बात नयी तो नहीं है लेकिन इतनी पुरानी भी नहीं कि हमारी स्मृतियों से लोप हो जाये.
जैसे-जैसे समाज धन-लोलुप होता चला जाएगा, वैसे-वैसे हमारी बुद्धि प्रतिरोध के बजाय शुतुर्मुग वादिता को अपनाने लगेगी. अध्ययन होना चाहिए किंतु कायर बनने की शर्त पर नहीं. आजकल की लड़कियों को स्त्रीवादी लड़के अधिक पसन्द आते हैं, जो अधिक प्रतिरोध न करें.
भई, पुरुष कैसे सम हो सकता है? सन्यास लेगा तब ही सम होगा. ऐसे कैसे सम हो जायेगा? केवल धनसुख/देहसुख भोगने के लिए अपने जीवन का दृष्टिकोण ही परिवर्तित कर दे? होते होंगे ऐसे शोभासिंह.. लेकिन गुलामी के प्रतीकों में इनका नाम प्रमुखता से अंकित है. पुरुष के अंदर विषम रहने की सहज प्रवृति है. और यही विषमता उसे विकास का अवसर देती है. इस विषय पर विमर्श आवश्यक है.
वैसे nerd शब्द का अर्थ एक ऐसा व्यक्ति जो एकनिष्ठ अध्ययनकर्ता हो, जिसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास ना हुआ हो. मतलब दिमाग से तीक्ष्ण बुद्धि वाला होगा किंतु उस बुद्धि का उपयोग करके स्वंय से जमीन पर कुछ नहीं कर सकता.