ऐसे भाजपाइयों से तो बेहतर हैं बसपा कार्यकर्ता

प्रधानमंत्री के खिलाफ फ़तवा देने वाला मौलाना नूर-उर-रहमान बरक़ती, साथ में ममता बनर्जी

एक नेता ने किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती के बारे में अनौपचारिक तौर पर अक्सर कही जाने वाली बात को औपचारिक तौर पर कह दिया.

यूपी से सँसद तक ऐसा बवण्डर चला कि चार दिनों तक न्यूज़ चैनलों के पास बस एक ही खबर थी.

लखनऊ की सड़कें बसपा के समर्थकों से पट गयीं. भाजपा नेता दयाशंकर सिंह का राजनैतिक कैरियर समाप्त हो गया. उनका परिवार दहशत में जीने को मजबूर हो गया.

सँसद में वित्त मंत्री को क्षमा भी माँगना पड़ा.

ये सब किसके लिए हुआ???

एक छोटे से दल की अध्यक्षा के लिए, जो किसी संवैधानिक पद पर भी नहीं है… लोकसभा में उस दल का प्रतिनिधित्व भी नहीं है.

देश के सर्वोच्च पद पर बैठे एक नेता के बाल और दाढ़ी काट कर मुंह पर काली स्याही पोतने का फ़तवा खुलेआम जारी करने के दो दिनों बाद तक कुछ लोगों के व्यक्तिगत खून खौलने के अलावा देश में सब कुछ सामान्य गति से चल रहा है.

विश्व में सबसे ज्यादा सदस्यों की पार्टी के नेता की बस इतनी सी औकात है क्योंकि सदस्य सबसे ज्यादा है पर सब परजीवी हैं और परजीवी कोई काम नहीं करते हैं… पता है न!

भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी पार्टी है जिसमें मुठ्ठी भर काम करने वाले नेता हैं, बाकी सारे नेता और सदस्य परजीवी हैं.

परजीवियों का काम होता है दूसरे की मेहनत का खा कर स्वयं को आगे बढ़ाना और ये जिसकी मेहनत की कमाई को खाते हैं उसको नष्ट भी कर देते हैं.

इसलिए इनको अपने आश्रयदाता के सुख-दुख, मान-अपमान से कोई लेना-देना नहीं होता है.

सिर्फ अपनी सुख-समृद्धि से मतलब रहता है… टिकट सबको चाहिए… जमीन पर काम तभी करेंगे जब उससे कुछ आर्थिक लाभ हो.

यदि भाजपा के पास भी बसपा की तरह कार्यकर्ता रहते तो आज देश के हर राज्य में भाजपा की सरकार होती…. और किसी ऐरे-गैर की हिम्मत नहीं होती प्रधानमंत्री के विरुद्ध कुछ भी बोलने की.

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