NAC (National Advisory Council) की फाइलें सार्वजनिक करने से कोई विशेष फायदा नहीं होने वाला. उसी तरह जैसे सुभाष बाबू की मृत्यु से जुड़ी फाइलें निकलवा कर भी किसी प्रकार का रहस्योद्घाटन नहीं हुआ.
यदि पब्लिक और पत्रकारों को चिल्ल-पों करने का एक अवसर प्रदान करना ही एकमात्र लक्ष्य है तो नरेंद्र मोदी की सरकार अकारण ही इन फाइलों को सार्वजनिक कर रही है. यूपीए सरकार में सभी महत्वपूर्ण निर्णय सोनिया गांधी ही लेतीं थीं यह पूरा जग जानता है.
कांग्रेस के डीएनए के बारे में CSDS (Centre for the Study of Developing Societies) के संस्थापक और प्रख्यात राजनीतिक चिंतक रजनी कोठारी ने 1964 में ही लिख दिया था. [देखें- Asian Survey Vol. 4, No. 12 (Dec., 1964), pp. 1161-1173].
आज से पचास साल पहले ही कोठारी ने लिख दिया था कि कांग्रेस एक राजनैतिक पार्टी से उपर उठ कर एक ‘व्यवस्था’ का रूप ले चुकी थी. उन्होंने कांग्रेस को Party of Consensus कहा. यानि ऐसी पार्टी जो सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखती है.
पूरे पेपर में कांग्रेस और जवाहरलाल की बड़ाई के साथ ही कोठारी ने बड़ी मजेदार बातें कही है. उन्होंने लिखा है कि नेहरू के राज में देश modernization की ओर अग्रसर हुआ. अब भगवान जाने कि बावन तिरपन सालों में आधुनिकीकरण की वह आधारशिला राम की बाट जोहती अहिल्या क्यों बन गई!
सन् 62 का युद्ध हारने के बावजूद दो साल बाद ही 1964 में प्रकाशित अपने लेख में रजनी कोठारी ने लिखा है कि कांग्रेस के राज में सैन्य-नागरिक सम्बंध (Civil-Military Relations) बड़े अच्छे थे. ये पढ़ कर हंसते-हंसते मेरा पेट फूल गया.
इसे अगस्ता वेस्टलैंड केस में हुए भ्रष्टाचार के सन्दर्भ में देखें. आपने एक पूर्व एयर चीफ मार्शल को हिरासत में ले लिया लेकिन माँ बेटे और उनकी ‘व्यवस्था’ अभी तक मजे से विदेश में न्यू ईयर मना रही है.
यदि पचास साल पहले सैन्य-नागरिक संबंध इतने अच्छे थे और 1971 में हमने युद्ध जीता तो यूपीए के कार्यकाल में उस व्यवस्था को ऐसा कौन सा कोढ़ लग गया जिसके कारण एक वायुसेनाध्यक्ष को जेल जाना पड़ रहा है?
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के मुद्दे पर दिवंगत ले. जन. एस के सिन्हा ने IDSA के जर्नल में 2007 में लिखा था कि सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों के अध्यक्ष अपनी मर्ज़ी से कोई निर्णय नहीं लेते. वे रक्षा मंत्रालय के अधिकारी नहीं होते अतः भारत सरकार की ओर से कोई आदेश जारी नहीं कर सकते.
समस्त नीतिगत निर्णय रक्षा मंत्रालय के बाबू लेते हैं जिन्हें रक्षा प्रबंधन के बारे में कुछ नहीं पता होता. ज़ाहिर है घोटाले सम्बंधित सारे निर्णय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय द्वारा लिए गये थे जिन्हें सुपर कैबिनेट NAC द्वारा निर्देशित किया गया था.
कोठारी ने पेपर के अंत में लिखा था कि भविष्य में संभवतः कांग्रेस टूटेगी और एक authoritarian व्यवस्था का जन्म होगा. कालांतर में यही हुआ भी. परन्तु जिस ‘कांग्रेस व्यवस्था’ की ओर कोठारी इंगित करते हैं मेरे विचार से उसके एक भाग वे स्वयं भी थे.
उन्होंने कांग्रेस को Party of Consensus इसीलिए लिखा क्योंकि कांग्रेस ने सदैव बुद्धिजीवियों को अपने पास बिठा कर रखा ताकि वे EPW (Economic and political weekly) में लेख लिखते जाएँ और कांग्रेस के गुण गाते जाएँ.
इसी व्यवस्था का संवर्धित स्वरूप सोनिया गांधी की National Advisory Council भी थी जिसमें ज्यां द्रेज़ जैसे ख्यातिलब्ध अर्थशास्त्री हुआ करते थे जो आज विमुद्रीकरण का विरोध करते हैं.
कोठारी द्वारा स्थापित Centre for the Study of Developing Societies के प्रोफेसर राजीव भार्गव को राजनीति शास्त्र पर अपनी पुस्तक में ‘सांप्रदायिकता’ के नाम पर राम मंदिर ही याद आता है, वे सैकड़ों मस्जिदें भूल जाते हैं जो मन्दिर तोड़ कर बनाई गई थीं.
मोदी सरकार को इस ‘व्यवस्था’ परक प्रणाली को तोड़ने में जितना भी समय लगे किंतु यह सत्य है कि बिना इस व्यवस्था को ध्वस्त किये नई राजनैतिक प्रणाली विकसित नहीं की जा सकती.