किसी भी इस्लामी राष्ट्र में संगीत, काव्य, कला, फिल्म इत्यादि ललित कलाओं के किसी भी भद्र स्वरूप का अभाव है. इस्लामी राष्ट्रों में संयोग से अगर ऐसा कुछ है भी तो उसके ख़िलाफ़ इस्लामी फ़तवे, उद्दंडता का प्रदर्शन होता रहता है? विभिन्न दबावों के कारण अगर ये साधन नहीं होंगे तो समाज उल्लास-प्रिय होने की जगह उद्दंड हत्यारों का समूह नहीं बन जायेगा?
यहाँ ये पूछना उपयुक्त होगा कि बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में सारे विश्व में मुसलमान सामान्य रूप से अधिक क्यों पाये जाते हैं? उनके नेतृत्व करने वाले सामान्य ज्ञान से भी कोरे क्यों होते हैं? क्या ये परिस्थितियां ऐसे हिंसक समूह उपजाने के लिए खाद-पानी का काम नहीं करतीं?
ऐसा क्यों है कि इस्लाम सारे संसार को अपना शत्रु बनाने पर तुला है? यहूदियों के ऐतिहासिक शत्रु ईसाइयों को ग़ाज़ा में इज़रायल के बढ़ते टैंक अपनी विजय क्यों प्रतीत होते हैं?
क्या इसका कारण आचार्य चाणक्य का सूत्र ‘शत्रु का शत्रु स्वाभाविक मित्र होता है’ तो नहीं है? ईसाइयों ने यहूदियों से शत्रुता हज़ारों साल निभायी, निकाली, मगर इस्लाम के विरोध में वो एक साथ क्यों हैं?
सामान्य भारतीय मुसलमान इस्लाम के बताये ढंग से नहीं जीता. मुहम्मद जी के किये को सुन्नत ज़रूर मानता है मगर उसे अपने जीवन में नहीं उतारता.
इस्लाम ऐसे अनेकों काम पिक्चर देखना, दाढ़ी काटना, संगीत सुनना, शायरी करना इत्यादि के विरोध में है मगर आप इन विषयों में उसकी एक नहीं मानते तो इन राष्ट्र विरोधी कामों के विरोध में क्यों नहीं खड़े होते?
जितने हंगामों की चर्चा मैंने पहले की है उनमें सारा भारतीय मुसलमान सम्मिलित नहीं था मगर वो इन बेहूदगियों का विरोध करने की जगह चुप रहा है.
देश में फैले लाखों मदरसों और लाखों मुल्लाओं के प्रचार के बावजूद ईराक़ जाने वाले 20 लोग नहीं मिले जबकि संसार के अन्य देशों से ढेरों लोग सीरिया और ईराक़ गए हैं. अभी तक मुल्ला वर्ग अपने पूरे प्रयासों के बाद भी अपनी दृष्टि में आपको पूरी तरह से असली मुसलमान यानी तालिबानी नहीं बना पाया है.
आपने उनकी बातों की लम्बे समय से अवहेलना की है मगर अब पानी गले तक आ गया है. आपको उनके कहे-किये-सोचे के कारण उन बातों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, आप जिनके पक्ष में नहीं हैं. आपको आपकी इच्छा के विपरीत ये समूह अराष्ट्रीय बनाने पर तुला है.
आपको अब्दुल हमीद की जगह मुहम्मद अली जिनाह बनाना चाहता है. मैं समझता हूं कि आपको संभवतः मुल्ला पार्टी का दबाव महसूस होता होगा. देश बंधुओं इनका विरोध कीजिये. आपके साथ पूरा राष्ट्र खड़ा है और होगा.
भारत में प्रजातान्त्रिक क़ानून चलते हैं. यहाँ फ़तवों की स्थिति कूड़ेदान में पड़े काग़ज़ बल्कि टॉयलेट पेपर जितनी ही है और होनी चाहिए. भारत एक सौ पच्चीस करोड़ लोगों का राष्ट्र है. यहाँ का इस्लाम भी अरबी इस्लाम से उसी तरह भिन्न है जैसे ईरान का इस्लाम अरबी इस्लाम से अलग है. यही भारतीय राष्ट्र की शक्ति है.
आप महान भारतीय पूर्वजों की वैसे ही संतान हैं जैसे मैं हूं. ये राष्ट्र उतना ही आपका है जितना मेरा है. आप भी वैसे ही ऋषियों के वंशज हैं जैसे मैं हूं. आपको राष्ट्र-विरोधी बनाने पर तुले इन मुल्लाओं को दफ़ा कीजिये, इन से दूर रहिये और इन पर लानत भेजिए. आइये अपनी जड़ों को पुष्ट करें.
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