वामपंथी इतिहासकारों ने प्रायः इतिहास को लिखा नहीं है, उसे अपनी इच्छानुसार ‘गढ़ा’ है. नालंदा बौद्ध विहारों की क्षति में हिन्दुओं का हाथ दिखा देने के लिए और तुर्क आक्रमणकारियों पर पर्दा डाल देने के लिए क्या क्या फरेब नहीं किये गए!
वामपंथी इतिहासकार डी एन झा लिखते हैं : “तिब्बती परंपरा-कथा बताती है कि कल्कुरी के राजा कर्ण ने मगध में कई बौद्ध मंदिरों और विहारों को नष्ट कर दिया. तिब्बती ग्रन्थ ‘पग सैम जॉन जैंग’ में एक उल्लेख है कि नालंदा के पुस्तकालय को कुछ ‘हिन्दू उन्मादियों’ द्वारा जला दिया गया ”. झा अपने इस वक्तव्य के समर्थन में बी एन एस यादव द्वारा उनकी (यादव की) पुस्तक में लिखे गए तिब्बती ग्रन्थ के उस अंश का हवाला देते हैं. अब गौर कीजिये :-
पहला फरेब : यादव ने अपनी पुस्तक में उपरोक्त लिखित दो वाक्यों के बीच में दरअसल एक और वाक्य लिखा : “यह कहना बहुत मुश्किल है कि ये बात कहाँ तक सत्य हो सकती है”. मगर डी एन झा ने पुनर्प्रस्तुति में यादव के इस वाक्य को बड़ी चालाकी से छोड़ दिया.
दूसरा फरेब : यादव ने ये लिखा : “पग सैम जॉन जैंग’ में एक संदिग्ध उल्लेख है कि नालंदा के पुस्तकालय … जला दिया गया.” लेकिन झा ने बड़ी चालाकी से इसमें से “संदिग्ध” शब्द को हटा कर इसे प्रस्तुत किया.
तीसरा फरेब : झा ने ‘हिन्दू उन्मादियों’ अभिव्यक्ति को उद्धरण चिह्न के साथ लिखा मानो तिब्बती ग्रन्थ में इसी अभिव्यक्ति का प्रयोग हुआ हो. जबकि ऐसा नहीं है. इसके लिए अगला फरेब देखें.
चौथा फरेब : उस ग्रन्थ में “हिन्दू” और “उन्मादी” जैसे शब्द न हो कर एक “चमत्कार” की चर्चा थी कि कैसे दो “गैर-बौद्ध भिखारियों” (यही शब्द थे) ने एक दुर्व्यवहार की प्रतिक्रियास्वरुप एक चमत्कारी शक्ति से पुस्तकालयों में आग लगा दी. यादव ने इन “चमत्कारी भिखारियों” को “हिन्दू उन्मादियों” लिख दिया जिसे डी एन इसे झा ने मूल शब्द के तौर पर प्रस्तुत कर दिया.
पांचवा फरेब : 500 वर्ष बाद लिखे ग्रन्थ में वर्णित एक “चमत्कार” को झा प्रमाण मानते हैं लेकिन नालंदा की घटना के समकालीन प्रख्यात विद्द्वान मौलाना मिन्हाज़ुद्दीन की विश्व भर में प्रमाणित पुस्तक ‘तबाकत-इ-निसारी’ –- में उल्लिखित मुहम्मद बख्तियार की सेना के द्वारा नालंदा के विद्ध्वंस के वर्णन को बड़ी चालाकी से दरकिनार कर देते हैं.
छठा फरेब : यादव के इस वाक्य को भी ,“…बौद्ध धर्म को निःसंदेह तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा बेहद नुक्सान पहुंचाया गया जिसने मगध और बंगाल के बौद्ध विहारों को ध्वस्त कर दिया… ” झा गड़प कर जाते हैं.
सातवाँ फरेब : धर्मस्वामिन नामक उस तिब्बती भिक्षु के मुस्लिम आक्रान्ताओं के कारण वहां व्याप्त भय आदि संबंधी अनुभवों को भी दरकिनार कर दिया जाता है जिस पर शोध प्रसिद्ध रूसी विद्वान जोर्ज रोरिच ने किया है जो मोस्को के ओरिएण्टल स्टडीज इंस्टिट्यूट में विभागाध्यक्ष थे.
जब आप वामपंथियों के हाथों लिखा भारतीय इतिहास पढ़ रहे होते हैं तो, याद रखिये, आप इतिहास नहीं बल्कि अक्सर वामपंथियों की मक्कारी की मिसाल पढ़ रहे होते हैं!
(सन्दर्भ : भारतीय इतिहास शोध परिषद् के अध्यक्ष के तौर पर डी एन झा द्वारा दिया गया अभिभाषण “Looking for a Hindu Identity” का पृष्ठ 34; बी एन एस यादव की पुस्तक Society and Culture in Northern India in the Twelfth Century (पृष्ठ 346-347); मौलाना मिन्हाज़ुद्दीन की तबाकत-इ-नासिरी (पृष्ठ 548-547); तिब्बती ग्रन्थ Pag Sam Jon Zang के उस अंश का अनुवाद प्रसिद्द बौद्ध विद्द्वान और दलाई लामा के आधिकारिक अनुवादक गेशे दोरजी दाम्दुल द्वारा; जोर्ज रोरिच की Biography of Dharmaswamin – –Chag la tsa-ba chos-rje-dpal (पृष्ठ 19); और इन सबका विवरण अरुण शौरी ने अपनी पुस्तक Eminent Historian : Their Line Their Fraud में दिया है)