आज की नायिका : ये हैं हमारे समाज की नयी नायिकाएं

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कुछ दिनों पहले मेरी माँ से महिलाओं की सामाजिक स्थिति पर बातचीत हो रही थी. बातों बातों में माँ ने मुझे दो कहानियां बताई जो इस तरह थीं.

माँ की एक सहेली की लड़की की शादी करीब 5 साल पहले पक्की हुई. लड़की खूब पढ़ी लिखी थी. शादी में दिए जाने वाले दहेज़ की भी बात पक्की हुई. ये तय हुआ की दहेज़ में आल्टो कार दी जाएगी. शादी से कुछ दिन पहले लड़की के चाचा ने हौंडा सिटी कार खरीदी.

इस पर खुद लड़के ने नयी मांग पेश कर दी कि उसे आल्टो कार देकर धोखा दिया जा रहा है. उसने दहेज़ में अब हौंडा सिटी कार की मांग रखी. लड़की के परिवार ने इस मांग को पूरा करने में असमर्थता व्यक्त की. लड़के ने अपनी मांग के लिए दबाव बढ़ाया और शादी तोड़ने की धमकी दी.

इस नयी मांग और धमकी से आजिज आयी लड़की ने शादी खुद तोड़ दी.

आज 5 साल हो गए , उस लड़की के लिए फिर कोई नया रिश्ता नहीं आया. कुछ ही महीनो में उस लड़के की दूसरी शादी हो गयी.

लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. पढ़ी लिखी थी, उसने जॉब शुरू कर दी. आज अच्छी कंपनी में है, अच्छी सैलरी है. खुश है. बस शादी नहीं हुई है.

ऐसी ही एक दूसरी कहानी.

माँ की एक दूसरी सहेली थीं. अच्छा धनवान परिवार था. उन्होंने अपनी लड़की की शादी एक CA लड़के से तय की. खूब दान दहेज़ दिया.

लड़के ने शादी के दो साल बाद नौकरी छोड़ दी और कहा कि वो अपना खुद का बिजनेस करेगा. लड़की के पिताजी ने भी सहयोग दिया. सहयोग अर्थात पैसा दिया.

लड़के ने बिजनेस तो शुरू नहीं किया. दारु और जुए में पैसा उड़ाकर ख़तम किया. फिर उसने लड़की पर दबाव डाला कि वो पैसा लेकर आये.

एक दो साल ऐसे ही चला. लड़की मार पीट का शिकार होती थी. उसके घरवाले अपनी लड़की के सुख के लिए हमेशा पैसा दे देते थे. अब तक दो बच्चे भी हो चुके थे.

फिर एक दिन उस लड़की ने बगावत कर दी.

उसने घर नहीं छोड़ा न अपने पति को छोड़ा. वो पढ़ी लिखी थी. उसने टीचर की नौकरी ज्वाइन कर ली.

उसने अपने धनी माता पिता से कहा कि अब वो उसके पति को एक पैसा नहीं देंगे. वो अपने परिवार अपने बच्चों की जरूरते खुद पूरी करेगी.

कम कमाती है लेकिन अब वो हाथ नहीं फैलाती. स्वाभिमानी है. अपने पति अपने बच्चो की जरूरते पूरी करती है. पति अब भी नहीं कमाता. लेकिन अब वो अपने घर वालों से मदद नहीं लेती.

मेरी माँ ने मुझसे पूछा कि इन दो महिलाओं की आज समाज में क्या स्थिति है?

क्यों उन पर बेचारगी और रहम का ठप्पा लगा है? क्यों वो तिरस्कृत हैं. समाज का अहम् अंग नहीं हैं?

मैंने उत्तर दिया कि ये दोनों हमारे समाज की नयी नायिकाएं हैं. आने वाले समय में ऐसी ही लड़कियां नए रोल मॉडल बनेंगी.

जो समाज दहेज़ के लालची लड़के को फिर से अपनी लड़की दे देता है और एक साहसी लड़की का तिरस्कार करता है वो सड़ रहा है. उसे बदलने की जरूरत है.

जैसे जैसे ऐसी लड़कियों की तादाद बढ़ेगी जो आत्म निर्भर होंगी. जो पढ़ी लिखी होंगी. आर्थिक रूप से सशक्त होंगी वही इस समाज को बदल पाएंगी.

हमें ऐसी लड़कियों की सराहना करनी चाहिए. उनको सम्मान देना चाहिए. उनको नयी नायिकाओं के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहिए.

मैं इन दोनों लड़कियों और ऐसी तमाम लड़कियों को आज नमन करता हूँ.

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