चाय बेचने वाले ‘नरिया’ का आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर वैश्विक पटल पर एक सशक्त राजनेता के रूप में स्थापित होने के पीछे उनकी मेहनत, समर्पण तो है ही लेकिन साथ में यकीनन एक षडयंत्र भी है.
नरेन्द्र मोदी आज भी वही लड़का है जो मंदिर पर भगवा झंडा लगाने के लिए मगरमच्छ से भरे तालाब में कूद गया था. भारत की राजनीति में मगरमच्छों की कभी कमी नहीं रही, लेकिन जब जब धरती पर अधर्म बढ़ता है प्रकृति अपनी योजना में किसी धर्मयोगी का प्रवेश करवा ही देती है. जो सारी बाधाओं को पार कर भारत रूपी मंदिर में झंडा फेहरा आता है….
और ये हमारे लिए गर्व कि बात है कि वो धर्म योगी साथ में कर्म योगी भी है, इसका अनुमान उनके 24 घंटे में 16 घंटे अनवरत कार्य करने के तरीके से लगाया जा सकता है. यही नहीं उन्होंने अपनी इस कार्य शैली से लोगों को प्रेरणा देने के लिए अपने मुख्यमंत्री काल में सरकारी कर्मचारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा जगाने हेतु ‘कर्मयोगी अभियान’ भी चलाया.
अनहोनी पथ में कांटें लाख बिछाए
पारिवारिक परिस्थितियों से लेकर राजनीतिक घटनाओं तक उन पर कई इलज़ामात लगते रहे, और वो हर बार कीचड़ में खिलते कमल की तरह पाक साफ़ निकल आये.
….क्योंकि मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने वाला व्यक्ति गरीब के घर में केवल खाना खाकर किसी गरीब की पीड़ा को अनुभव नहीं कर सकता. अपनी गरीबी के दिनों में चाय बेचने वाला, और देश के लिए समर्पित संघ से जुड़े रहने के लिए कार्यकर्ताओं की सेवा में लगे रहने वाला व्यक्ति ही गरीब की सेवा और उसकी उन्नति के लिए कृतसंकल्पित हो सकता है.
….क्योंकि डिग्रियां हासिल कर, बड़े नामों वाले पुरस्कार प्राप्त करने वाला शिक्षा के महत्व को नहीं समझेगा.. शिक्षा केवल रोजगारपरक नहीं, सम्पूर्ण व्यक्तित्व को संवारने वाली हो, यह बात वही समझ सकता है जिसने शाला में अपने और अपने दोस्तों के लिए प्राचार्य तक से बहस कर ली हो…
….क्योंकि पिता से बेटे को मिलनेवाले राजनीतिक ओहदे पर बैठा व्यक्ति नहीं समझेगा राजनीति की परिभाषा… राजनीति राष्ट्रनीति से चलती है यह बात वही समझ सकता है जिसके अन्दर बचपन से ही लीडर होने के गुण होते हैं, और जो धीरे धीरे कदम बढ़ाकर लम्बी यात्रा तय करने के बाद सर्वोच्च पद पर आसीन होता है.
भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध के दौरान अपने तरुणकाल में रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा, युवावस्था में छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल होना, भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लेना, एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत होना, और फिर 2001 में मुख्यमंत्री पद से लेकर अप्रेल 2014 तक के सफ़र में मोदीजी ने जो कुछ भी सीखा, जितने भी पड़ाव पार किये… वो सब मई 2014 में उनके प्रधानमंत्री बनने की तैयारी थी… प्रकृति की योजनानुसार….
जब प्रकृति योजना बनाती है तो उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता
कहते हैं जब शिद्दत से कोई दुआ की जाए तो पूरी कायनात उसको पूरा करने के लिए षडयंत्र रचने लगती है. नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान देखने की ये हिंदुस्तान की अवाम की दुआ ही थी, लेकिन उसे पूरा करने में न केवल पूरी कायनात ने षडयंत्र रचा है बल्कि उसे पूरा न होने देने में भी काफी षडयंत्र रचे गए. लेकिन जीत उसी की होती है जिसे लाखों, करोड़ों लोगों का साथ हो.
और ये मोदी का बड़प्पन है कि इन सब षडयंत्रकारियों को जानते पहचानते हुए वो ये कहते हैं कि –
यह लोकतंत्र है, यहाँ वो भी सब स्वागत योग्य है जो साथ है और वो भी स्वागत योग्य है जो साथ नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र में विपक्षी पार्टी से कोई दुश्मनी नहीं होती बल्कि होती है मात्र प्रतिस्पर्धा. और प्रतिस्पर्धी भी यदि साथ हो ले तो जो काम हम देश की उन्नति के लिए करना चाहते हैं वो मिलकर करने से जल्दी हो जाएंगे, एक उज्ज्वल भारत के सुनहरे भविष्य के सपने को मिलकर भी पूरा किया जा सकता है.
बातें तो 2014 के चुनावी प्रचार के दिनों में इतनी हुई कि उन्हें सोशल मीडिया पर विपक्षियों द्वारा अपमानजनक उपाधि दी गयी, लेकिन आज उन्होंने उन सबके इल्ज़ामात को हवा में फेंकते हुए हक़ीक़त के धरातल पर कदम रख दिया है. देखना ये है कि कौन इस अंगद के पैर को डिगा पाता है, और देखना ये भी दिलचस्प है कि उनकी बातों को गप्प मानने वाले भी अचंभित हो रहे हैं कि कैसे चुनाव प्रचार के समय कही गयी एक एक बात वो सच साबित कर रहे हैं.
देश का प्रधानमंत्री यदि हो तो ऐसा ही हो, जिसके चेहरे पर ते़ज हो, वाणी में जनता को मंत्रमुग्ध करने की कला, और पूरी कायनात को षडयंत्र रच देने के लिए मजबूर कर देने का जादू.
– माँ जीवन शैफाली