नोटबंदी के नतीजों पर भाजपा के पास कहने के लिए फ़िलहाल कुछ नहीं है. उत्तरप्रदेश की राजनीति ऊबाल खाने लगी है.
सपा परिवार ने हालिया ड्रामे के दम पर प्रचार में अच्छी बढ़त हासिल कर ली है. मायावती खुलकर मोर्चे पर आ गई हैं लेकिन योगी आदित्यनाथ के हाथ कब खोले जाएंगे.
हर लड़ाई में महानायक का सहारा लेना भाजपा को नाकारा बना देगा. सोशल मीडिया पर उत्तरप्रदेश को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं, वे वास्तविकता के उतने करीब नहीं लगते.
भाजपा वहां जमीन पर काम जरूर कर रही है लेकिन मुख्यमंत्री उम्मीदवार के बिना जनता में पैठ बना पाएगी, कहना मुश्किल है.
कुछ मित्रों को वास्तविक चित्रण नकारात्मकता लग सकता है लेकिन जो सामने घट रहा है उसे नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता.
केंद्र से इतर सूबे की सियासत में नियम बदल जाते हैं. मोदी, अपने परामर्श और आम सभाओं से सहयोग दे सकते हैं लेकिन हर चुनाव में उन पर इतनी निर्भरता भाजपा को अंततः मुश्किल में डाल देगी.
अब आते हैं नोटबंदी पर. इस ऐतिहासिक निर्णय के तुरन्त बाद कहा गया था कि भ्रष्टाचारियों को बख्शा नहीं जाएगा.
इस बात पर उदाहरण देना चाहूंगा.
पूर्व केंद्रीय मंत्री पी.चिदंबरम के बेटे कीर्ति चिदंबरम पर घोटालों के गंभीर आरोप है और वे जाँच में सहयोग के लिए ही तैयार नहीं.
बंदा पिछ्ले सितंबर से झांसा दे रहा है लेकिन प्रवर्तन निदेशालय ने अब तक उसकी गिरफ्तारी करने का जिगरा नहीं दिखाया है.
हमें मोदी सरकार की नोटबंदी में पूरा यकीन है लेकिन हमें बताया तो जाए कि काले वर्सेस सफ़ेद की ये लड़ाई कैसे लड़ी जा रही है.
ठीक यही जवाब, उत्तरप्रदेश की जनता भी चुनाव से पहले चाहती है. काला धन सफ़ेद करने वाले बैंकों के खिलाफ कार्रवाई का क्या हुआ.
अब तक आरबीआई द्वारा जारी करेंसी का 70 प्रतिशत वापस आ चुका है लेकिन किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ा.
उत्तरप्रदेश में मुलायम परिवार अपने ड्रामे पर करोड़ो फूंक देता है. अधिवेशन कोई सरकार के पैसों से तो हुए नहीं होंगे.
मायावती कांफ्रेंस पर कांफ्रेंस किए जा रही है. एक कांफ्रेंस को मैनेज करना आसान नहीं होता जब नोटबंदी ने आपके हाथ जकड़ रखे हो.
इस लेख को नकारात्मक न समझकर सरकार को झिंझोड़ने का एक छोटा सा तुच्छ प्रयास समझें.
आपकी तरह मैं भी ये मानता हूँ कि मोदी सरकार ही बदलाव लाएगी लेकिन जब टॉप गियर लगाने का समय आया तो हिचक कैसी.