भारत देश अपनी परम्पराओं के कारण पूरे विश्व के लिए आदर्श रहा था. हम अपने देश की परम्पराओं को निभाते गए परंतु हमारी अधिकांश परम्पराएँ किसी न किसी वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित थी. शायद किसी समय के समाज को उस विज्ञान का ज्ञान न हो परंतु परंपरावश उनका निर्वाह होता गया और देश सुचारु रूप से चलता रहा.
आइये इसे स्वास्थ्य के संदर्भ मे समझा जाय. बरसों से इस देश मे भोजन बनाने के लिए मक्खन, देसी घी और सरसों के तेल का प्रयोग किया जाता रहा है. अचानक से विदेशी तेल बनाने वालों ने भारत के बाज़ार पर अपना कब्जा करने की ठानी. उसके लिए सरसों के तेल के प्रयोग से ड्रॉप्सी बीमारी का नाटक किया गया.
सन 1994-1995 मे जहां भारत मे 950 करोड़ का तेल आयात किया वहीं 1996 – 1997 में 2250 करोड़ का और यही सन 2004 तक 11000 करोड़ हो गया. ध्यान रहे कि 1997 में ही ड्रॉप्सी बीमारी आई थी जिसका प्रचार किया गया. यह देश सैंकड़ों वर्षों से सरसों का तेल उपयोग में ला रहा था कभी ड्रॉप्सी की बीमारी नहीं सुनी गयी.
दरअसल यह नहीं कि यह बीमारी कुछ थी ही नहीं परंतु यह सरसों के तेल को गलत ढंग से बना कर रखे रहने से देश के कुछ ही हिस्से में पायी गयी. परंतु इसका प्रचार करवा कर देश को vegetable oil की दलदल में धकेला गया. साथ ही में यह कहा गया कि देसी घी और मक्खन के कारण cholesterol बढ़ जाता है जिससे हृदय रोग हो सकते हैं और अंत में उसे दिल की बीमारी और दिल का दौरा पड़ सकता है.
भारतीय भोले होते हैं इस भ्रम में पड़ कर वेजीटेबल ऑइल के चक्कर में फंस गए. लगभग 18 महीने पहले एक सच्चाई सामने आई कि पहले तो वेजीटेबल ऑइल से बेहतर मक्खन, देसी घी और सरसों का तेल है. उसी शोध में बताया गया कि vegetable oil से बीमारी होने का खतरा अधिक है. दूसरे यह बताया गया कि खाने में प्रयोग किए तेल से बने cholesterol से स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं है.
लगभग 40 वर्षों के बाद 26 मई 2015 को इस शोध को स्वीकार कर लिया गया है अमेरिका में. परंतु दुर्भाग्य से अभी तक भारत का मीडिया इस पर खामोश है. अधिकतर चिकित्सकों या तो इस बात की खबर नहीं है या वह बिक चुके है. आप कम से कम अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग हो कर स्वयं अपना और मित्रों को सच बताएं.
सच जानने के लिए लिंक पर जाएं –
http://www.express.co.uk/life-style/health/618023/health-vegetable-oil-coconut-lard-butter
http://www.cas.usf.edu/news/a/176/